द्बितीय भगवती- ब्रह्मचारिणी: भक्त के जीवन की बाधाएं दूर होती हैं

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द्बितीय भगवती- ब्रह्मचारिणी


यह भगवती का दूसरा स्वरूप है। यहां ब्रह्म का आशय है तप। ब्रह्मचारिणी का आशय है कि तप का आचरण करने वाली। माना जाता है कि वेद, तत्व और तप ब्रह्म के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी के ज्योतिर्मय स्वरूप में भगवती दाहिने हाथ में जप की माला और बाए हाथ में कमंडलु धारण करती हैं। ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद जी के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर पति रूप में हासिल करने के लिए कठिनतम तप किया था। इस दुष्कर तप के कारण ही उन्हें तपश्चारिणी यानी ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हुईं। एक हजार वर्ष तक उन्होंने फल-मूल खा कर व्यतीत किए थे।

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सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्वहन किया था। कठिन उपवास रखते हुए वर्ष व धूप में कठोर तप किया। इस कठिन तप के बाद भी वे तीन हजार वर्षो तक वह केवल जमीन पर गिरे बेलपत्रों को खाकर भगवान शंकर की अराधना करती रहीं। कालांतर में उन्होंने हजारों वर्ष तक निर्जल व निराहार रहकर तप किया। पत्तों को खाना छोड़ देने की वजह से वह अपर्णा कहलाई, देवी के 1०8 नामों के जाप में अपर्णा नाम का जाप भी किया जाता है। उनकी तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया, तब परमपिता ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी कर कहा कि हे देवी, ऐसी कठोर तपस्या किसी ने नहीं की, ऐसी तपस्या तुम्हारे द्बारा ही सम्भव है। अब तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं, शीघ्र ही तुम्हें शिव जी पति रूप में प्राप्त होंगे। माता दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों व सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। कठिन से कठिन परिस्थिति में मन विचलित नहीं होता है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि व विजयी प्राप्त होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक के मन में स्वाधिष्ठान चक्र स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले योगी को भगवती की कृपा व भक्ति मिलती है।

द्वितीय नवरात्रे में पूजन विधान

नवरात्र के दूसरे दिन भगवती ब्रह्मïचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है जो निरोगता प्रदान करती हैं ब्रह्मïचारिणी देवी का रूपरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला तथा बायें हाथ में कमंडल शोभायमान है देवर्षि नारद केउपदेश से इन्होंने कठिन तप करके भगवान शिव जी को पति रूप में प्राप्त किया-

दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलू।
देवी प्रशीदतु मयि ब्रहचारिण्यनुत्तमा।।

माता की भक्ति भाव से की गयी पूजा आराधना से सम्पूर्ण परिवार नीरोग तथा सुखी होता है।
मनोकामना पूर्ति हेतु माँ की मूर्ति स्थापित करके पंचोपचार विधि से पूजन करें तथा दूध से निर्मित वैवेद्य माँ को अर्पित करें। शुद्घ घी की अखण्ड ज्योति प्रज्वलित रहे और १०८ बार-ऊँ ब्रह्मïाचारिण्यै नम: का जाप कर पाठ की समाप्ति करें।

इनकी प्रसन्नता से भक्त के जीवन की बाधाएं दूर होती हैं

नवरात्रि के दूसरे दिन भगवती के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का ध्यान-पूजन व अर्चन किया जाता है। इनकी प्रसन्नता से भक्त के जीवन की बाधाएं दूर होती हैं, उसे सफलता प्राप्त होती है। भगवती के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को गुड़हल व कमल के पुष्प अत्यन्त प्रिय हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं पुष्पों से भगवती ब्रह्मचारिणी का पूजन-अर्चन श्रेयस्कर होता है। इन्हीं पुष्पों को अर्पित कर चीनी, मिश्री व पंचामृत का भोग लगाने से ब्रह्मचारिणी मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं। भक्त को लम्बी आयु, यश व सौभाग्य प्रदान करती हैं। ब्रह्मचारिणी सृष्टि में सर्वव्यापी ब्रह्मांडीय चेतना का दूसरा स्वरूप है। ब्रह्म का सीधा अर्थ है परम चेतना। वह परम चेतना, जिसका न तो आदि है और न ही अंत है, अर्थात जिसके पास सृष्टि में कुछ भी नहीं है।

भगवती ब्रह्मचारिणी के ध्यान में मग्न भक्त नवरात्रि के दूसरे दिन परमसत्ता की दिव्य अनुभूतियां अनुभव करता है। ब्रह्मचारिणी के ध्यान में रहने वाले भक्त की शक्तियां असीमित व अनंत हो जाती है। सत्, चित्त व आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति ब्रह्मचारिणी मां कराती हैं। यहीं माता ब्रह्मचारिणी का स्वभाव है। पूर्ण चंद्र के समान निर्मल, कांतिमय व भव्य स्वरूप है माता ब्रह्मचारिणी का। ब्रह्मचारिणी मां की दो भुजाएं हैं।

ब्रह्मचारिणी कौमारी शक्ति का स्थान योगियों ने स्वाधिष्ठान चक्र बताया है। इनके हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप की माला है। ब्रह्मचारिणी मां अपने भक्त को सन्मार्ग व कर्तव्यपथ पर चलने की शक्ति प्रदान करती हैं। उनका भक्त कभी विचलित नहीं होता है। इनका वाहन पर्वत की चोटी यानी शिखर को बताया गया है।

माता ब्रह्मचारिणी सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप में भगवान शिव की प्राप्ति के लिए कठोर तप करती रहीं। तीनों लोकों में भगवती के इस ब्रह्मचारिणी रूप से असीम तेज व्याप्त हो गया। उस समय ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी कर ब्रह्मचारिणी स्वरूप में शिव को प्राप्ति का वर प्रदान किया।

देवी ब्रह्मचारिणी का साधना मंत्र
ओम देवी ब्रह्मचारिण्यै नम:

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