नयी दिल्ली। एनटीपीसी, दादरी उत्सर्जन के मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशानिर्देशों के पालन के साथ देश का सबसे स्वच्छ कोयला संयंत्र बनने की दिशा में अग्रसर है।
एनटीपीसी के प्रवक्ता ने बताया कि दादरी संयंत्र बॉयलरों में कोयले के साथ-साथ बायोमास पैलेट्स की को-फायरिंग की दिशा में भी अग्रणी रहा है। संयंत्र के बॉयलरों में 8000 से अधिक टन पैलेट्स का इस्तेमाल किया गया है, और इस तरह लगभग 4000 एकड़ खेत के अवशेषों को जलाने से बचाया गया है। दादरी संयंत्र ने जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू करके पानी की खपत में भी नए मानदंड स्थापित किए हैं।
प्रवक्ता के मुताबिक सभी उत्सर्जन मापदंडों की निगरानी ऑनलाइन की जाती है और वास्तविक समय के आधार पर सीपीसीबी को प्रेषित की जाती है। फ्ल्यू गैस उत्सर्जन और पार्टिकुलेट के मामले 210 मेगावाट की सभी चार इकाइयों में और 490 मेगावाट की दो इकाइयों में उच्च दक्षता वाले ईएसपी के साथ सीपीसीबी मानदंडों के अनुकूल ही हैं।
उन्होंने बताया कि एनटीपीसी ने ऊर्जा के क्षेत्र में परिवर्तन को विकेन्द्रीकृत, विघटित और डिजिटलाइज्ड ऊर्जा में बदलने का प्रयास किया है। यह कंपनी की प्राथमिकताओं के लिए एक व्यापक फ्रेमवर्क उपलब्ध कराता है, ताकि डिकार्बनाइजेशन और वायु उत्सर्जन नियंत्रण, जल और जैव विविधता संरक्षण, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा, सामुदायिक विकास और सतत आपूर्ति श्रृंखला में चुनौतियों का सामना किया जा सके। एनटीपीसी बिजली उत्पादन के लिए कृषि अवशेषों के उपयोग की दिशा में काम कर रहा है और खेती के अवशेषों को जलाने की परंपरा की रोकथाम का प्रयास कर रहा है।
एनटीपीसी देश भर में अपने सभी संयंत्रों में सल्फर डाइऑक्साइड को कम करने वाली टेक्नोलॉजी ‘फ्ल्यू गैस डीसल्फ्यूराइजेशन‘ (एफजीडी) स्थापित करने तथा टिकाऊ पर्यावरण के लिए विभिन्न किस्म के अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाओं का संचालन करने की दिशा में भी काम कर रहा है। एनटीपीसी अक्षय ऊर्जा (आरई) स्रोतों की महत्वपूर्ण क्षमताओं को जोड़कर अपने ऊर्जा पोर्टफोलियो को हरित बनाने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है।
उन्होंने बताया कि कंपनी की योजना 2032 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से न्यूनतम 32000 मेगावाट क्षमता हासिल करने की है, जो एनटीपीसी की कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा होगा।
एनटीपीसी: 2032 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से न्यूनतम 32000 मेगावाट क्षमता हासिल करने की तैयारी
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