मध्यप्रदेश विधानसभा में बसपा से समर्थन और यूपी में पार्टी की फूट दबाने के लिये मजबूर हुई भाजपा!
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की दस सीट के चुनाव में यदि सभी प्रत्याशियों के नामांकन वैध पाये गये तो हर हाल में मतदान होंगा। मध्यप्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में बसपा का समर्थन लेने से पहले भाजपा ने बसपा को एडवांस गिफ्ट दे दिया।
राजनैतिक प्रेक्षकों के अनुसार भाजपा राज्यसभा की 10 सीटों में से 9 जीत सकती थी। 2022 के पहले विपक्ष एकजुट न हो इस लिये केंद्रीय नेतृत्व ने एक सीट छोड़ दिया। वर्तमान विधानसभा में सदन में 395 सदस्य हैं। एक प्रत्याशी को लगभग 36.9 अर्थात 37 विधायक के वोट की जरूरत पड़ेगी। भाजपा यदि 9वां प्रत्याशी उतारती तो उसे तोड़-फोड़ करने के लिये मजबूर होना पड़ता। सपा ने अंतिम क्षणों में अपने समर्थन से एक निर्दल प्रकाश बजाज को लड़ा कर बसपा को एक्सपोज करने का दांव चल दिया। सपा के पास 11, भारतीय समाज पार्टी के 4 में 2 उसके साथ रह गये हैं। कांग्रेस के 7 सदस्यों में से 5 उसके पास रह गये हैं। सपा समर्थित प्रत्याशी के पास 18 विधायकों का एक नम्बर का वोट बनाता है। भाजपा बिना नंगे हुये बसपा प्रत्याशी को जिताने के फिराक में है। इसके लिये उसे बसपा से टूट के भाजपा के पक्ष में देखे जाने वाले बसपा विधायक अनिल सिंह और रामवीर उपाध्यक्ष, कांग्रेस में रह कर कांग्रेस से दूरी बना चुकी अदिति सिंह, राकेश बहादुर सिंह व नितिन अग्रवाल को बसपा प्रत्याशी के समर्थन में वोट करवाना होगा। बसपा के पास तकनीकी रूप से 19 विधायक हैं। 3 कांग्रेस के विधायक जब उसे समर्थन देंगे तो उसकी संख्या 22 हो जायेगी। ऐसे में बसपा प्रत्याशी को विजय मिल जायेगी। इससे पहले 2018 में द्विवार्षिक राज्यसभा चुनाव में बसपा के एक मात्र प्रत्याशी भीमराव अंबेडकर प्रत्याशी थे, जिसे भाजपा ने हरा कर सीट छीन लिया था। उसके बाद सपा-बसपा की निकटता बढ़ी और वह 2019 के लोकसभा चुनाव एक साथ आ गये। भाजपा में कई विधायक लगातार सरकार के रवैये से क्षुब्ध हैं, आये दिन सरकार और पार्टी के विरुद्ध उनके ऑडिओ-वीडियो वायरल होते रहते हैं। इस लिये अपनी सरकार, विधानसभा में अपने विशाल संख्या बल के साथ विपक्ष के कई विधायकों के साथ होने के बाद भी भाजपा नौवां प्रत्याशी उतारने का हिम्मत नहीं जुटा सकी। अभी तक वह दूसरे दलों के विधानपरिषद, विधानसभा, राज्यसभा के सदस्यों को तोड़ रही थी अब उसको भी अपने विधायकों के टूटने का डर सताने लगा है। ऐसे में जितने की तमाम गुंजाइश होते हुए भी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने “बंद मुठ्ठी लाख की, खुल गयी तो खाक” कहावत को चरितार्थ करते हुये नौवां प्रत्याशी नहीं उतरी।
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