ओ३म् -प्रकाशन जगत एवं वेद प्रेमियों के लिए शुभ समाचार

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ओ३म्
-प्रकाशन जगत एवं वेद प्रेमियों के लिए शुभ समाचार-
“चार वेदों की मन्त्र सहिंताओं का भव्य एव नयनाभिराम प्रकाशन”
चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है। यह ज्ञान सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा ने अपने अन्तर्यामीस्वरूप से आदि चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को दिया था। सृष्टि के आदि काल में सब ऋषियों व विद्वानों को इसका पूरा ज्ञान था। परम्परा तथा शपपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के प्रमाण से यह ज्ञान हमें वर्तमान में ऋषि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) ने अपने ग्रन्थों द्वारा भी कराया है। ऋषि दयानन्द का वेद विषयक यह कथन युक्ति एवं तर्क की कसौटी पर भी सत्य एवं स्वीकार्य है। संसार में केवल और केवल वेद ही परमात्मा से प्रदत्त ज्ञान है। अन्य जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं वह सब अल्पज्ञ मनुष्यों की रचनायें हैं। ऋषियों की रचनाओं 11 उपनिषद तथा 6 दर्शन आदि का पूरा व अधिकांश भाग निर्दोष व प्रामाणित है तथा अन्य विद्वानों तथा मनुष्यों की रचनाओं में अल्पज्ञता व अविद्या आदि दोषों के कारण अपूर्णतायें एवं वेद, ज्ञान व सत्य के विरुद्ध कथन भी प्राप्त होते हैं। अतः वेदों की रक्षा करना सभी मनुष्यों का परमधर्म व परमकर्तव्य है। वेदोें की रक्षा व प्रचार के प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति ईश्वर व वेदभक्त बन्धु नाना प्रकार से करते हैं। वेदों के स्वाध्याय सहित वेदों का प्रकाशन व प्रचार भी आर्यसमाज व इसके सभी विद्वान सदस्यों का कर्तव्य है। हिण्डौन सिटी-राजस्थान निवासी ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के यशस्वी अनुयायी बन्धुवर प्रभाकरदेव आर्य जी ईश्वर, वेद, आर्यसमाज, ऋषि दयानन्द तथा इनसे जुड़े अनेक विषयों पर समय समय पर महत्वूपर्ण पुस्तकों व ग्रन्थों का भव्य प्रकाशन करते रहते हैं। श्री प्रभाकरदेव आर्य जी के सौजन्य से ही चार वेदों की मन्त्र संहितायें भव्य व आकर्षक आकार प्रकार में प्रकाशित की जा रही हैं। यह संहितायें डिमाई आकार में लगभग 2450 पृष्ठों में प्रकाशित हो रही हैं। इस पूरे सेट का मूल्य रुपये 1200/- मात्र रखा गया है। हमें श्री प्रभाकरदेव आर्य जी से ज्ञात हुआ है कि दिनांक 14-11-2020 से 30-11-2020 की अवधि में यह ग्रन्थ मात्र रुपये 1067.00 में डाक द्वारा प्राप्त कराया जा रहा है। जो बन्धु इस सुविधा का लाभ उठायेंगे उन्हें डा. सोमदेव शास्त्री जी की ‘‘वेदों का दिव्य सन्देश” 600 पृष्ठों वाली पुस्तक उपहार में प्रदान की जा रही है।

वेद संहिताओं के लिये धन भेजने के लिये नेट बैंकिंग आदि साधनों का प्रयोग किया जा सकता है। हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डौन सिटी का बैंक विवरण निम्न प्रकार हैः खाते का नाम: हितकारी प्रकाशन समिति, खाता संख्या: 5020002920292, बैंक का नामः HDFC (हिण्डौन सिटी- राजस्थान), IFSC CODE : HDFC0002590, हम अपने सभी मित्रों से उपर्युक्त वेद संहितायें उपहार एवं छूट सहित प्राप्त करने की प्रेरणा करते हैं। हम सब मनुष्यों को शुभ कर्म करने चाहिये। इस दृष्टि से हमें वेद के प्रकाशन व प्रचार में सहयेाग करने का शुभ अवसर उपलब्ध हो रहा है। वेद संहितायें प्राप्त करने के कार्य को हम एक प्रकार का शुभ कर्म कह सकते हैं। हम जो धनराशि इसके लिए देंगे वह दान भले ही न हो परन्तु उसका कुछ स्वरूप दान के समान ही है। सामाजिक बन्धुओं के इस सहयोग को ध्यान में रखकर तथा वेद धर्म के पालन के लिये ही बन्धुवर श्री प्रभाकरदेव जी ने इस वृहद प्रकाशन योजना को क्रियान्वित किया है। आज के समय में हम किसी प्रकाशक से इस प्रकार की योजना की कल्पना भी नहीं कर सकते। हम इस शुभ व उत्तम कार्य के लिये श्री प्रभाकरदेव आर्य जी को शुभकामनायें एवं बधाई देते हैं और उनके स्वस्थ, सुखी तथा दीर्घ जीवन की कामना करते हैं।

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जो बन्धु इस योजना का लाभ उठाना चाहें वह हितकारी प्रकाशन समिति के खाते में धन जमा कर प्रभाकर देव जी को फोन नं. 7014248035 पर सूचित कर दें। आगामी तीन-चार सप्ताह में ही वेद संहितायें एवं ‘वेदों का दिव्य सन्देश’ पुस्तक डाक से आपको मिल जायेगी।

हम पुनः स्पष्ट कर दें कि उपर्युक्त योजना में केवल वेद मन्त्र संहितायें ही प्रकाशित हो रही हैं। वेदों के मन्त्रों के अर्थ इसमें नहीं हैं। कोई भ्रान्ति किसी बन्धु को न हो, इस लिये यह लिख रहे हैं।

हम यह भी निवेदन करना चाहते हैं कि हमारे सभी आर्य प्रकाशक स्वाध्याय प्रेमी वेद भक्त सहयोगी बन्धुओं के भरोसे पर ही साहित्य प्रकाशन के महाव्यय साध्य कार्य में प्रवृत्त होते हैं। यह आर्थिक दृष्टि से लाभकारी कम होता है। जितने भी आर्य प्रकाशक हैं, वह प्रायः सभी ऋषि दयानन्द के मिशन के प्रचारक एवं अनुयायी है। वेद प्रचार की दिव्य भावनाओं से वह सब ओतप्रोत हैं। यह बात श्री प्रभाकरदेव आर्य जी पर भी पूर्णतः लागू होती है। अतः सभी आर्यजनों सहित सभा संस्थाओं के अधिकारियों आदि को श्री प्रभाकर देव आर्य जी को सहयोग करना कर्तव्य है। हमारा कर्तव्य है कि वेद प्रचार की दिव्य भावना से यदि कोई ऋषिभक्त कार्य करता है तो हम उसे अपना समर्थन व सहयोग प्रदान करें। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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