बाली का नाम आपने सुना होगा, वह बलवान योद्धा था, श्री राम के भक्त सुग्रीव का भार्ई था। परम प्रतापी बाली का वध दशरथ नंदन भगवान श्री राम ने ही किया था। जब वह मरणासन्न धरती पर पड़ा हुआ था तो उसने भगवान श्री राम से कहा था, हे प्रभु, आखिर सुग्रीव में क्या विशेषता और मुझमें ऐसी कमी रही कि आपने मेरा वध किया। मैं भी तो आपकी सहायता को तैयार हो जाता। मेरा ऐसा कौन सा अवगुण रहा, जिसके चलते आपने मेरा वध किया, आप तो धरती पर धर्म को स्थापित करने और असुरों का संहार करने के लिए अवतरित हुए हैं। जिस पर भगवान श्री राम ने उसे उसका अपराध बताया और कहा- अपनी भाभी व बहन पर कुदृष्टि डालने वाले का वध की उचित है, इसमें कोई दोष नहीं होता है। इससे बाली भी संतुष्ट हुआ और श्री राम का नमन करते हुए प्राणों का त्याग किया और उनके धाम को प्राप्त किया।
बाली एक ऐसा योद्धा था,जो परमवीर था, उसके सम्मुख युद्ध को आता था, उसका आधा बल उसमें ही समाहित हो जाता था। जब बाली से डरकर सुग्रीव भागा था, तो वह महाबली हनुमान के पास गए थे, वह हनुमान जी के पास क्यों गए थे ?और वाली वहां क्यों नहीं आया? , क्या आपने इस पर विचार किया है? यह वास्तव में विचारणीय बिंदु है। इससे सम्बन्धित एक कथा हम आपको बताने जा रहे हैं, जो आपको हनुमंत के बल और बाली के हनुमंत के सम्मुख न जाने का राज को खोलेगी।
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कथा के अनुसार बाली को परमपिता ब्रम्हा से वर प्राप्त हुआ कि जो भी उससे युद्ध करने के लिए सम्मुख आएगा, उसकी आधी शक्ति उसमें समाहित हो जाएगी और बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा। कथा के अनुसार सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस पुत्र यानी वरदान द्वारा प्राप्त पुत्र हैं और परमपिता ब्रम्हा की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती थी, इसलिए बाली को अपने बल पर बहुत घमंड था। उसका घमंड तब और भी बढ़ गया। जब उसने करीब- करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी।
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रावण जैसे परम शक्तिशाली योद्धा को इस तरह से हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रही और वह निरंकुश हो गया। इसके बाद तो वह स्वयं को संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था और यही उसकी सबसे बड़ी भूल रही। वह अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे बड़े बड़े पेड़ो को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था। हरे भरे वृक्षों को तहस-नहस कर दे रहा था। अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था। इस तरह से वह ताकत के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था और बार- बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था कि है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता है। है कोई जो अपने मां का दूध पिया हो, जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे।कोई है जो उसका सामना करने की सामर्थ्य रखता है । इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था, तभी संयोगवश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी राम नाम का जप करते हुए तपस्या में लीन थे।
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बाली की इस हरकत से राम भक्त हनुमान को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर, हे ब्रम्ह अंश, हे राजकुमार बाली, ( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो। हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो, फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो, अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो, इससे तुम्हे क्या मिलेगा, तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुम्हे युद्ध मे नही हरा सकता, क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा, उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी, इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर और राम नाम का जाप कर।
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इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे। इसी में तुम्हारा कल्याण है, तुम इसे सत्य मान आत्म कल्याण करो। इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला कि ए तुच्छ वानर, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को। जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है और जिसकी हुंकारमात्र से बड़े से बड़े पर्वत भी खंड-खंड हो जाते हैं। जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के और जिस राम की तू बात कर रहा है,वह है कौन और केवल तू ही जानता है राम के बारे में, मैंने आजतक किसी के मुंह से ये नाम नही सुना और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है। तब हनुमान जी ने कहा कि प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है, उनकी महिमा अपरंपार है,ये वह सागर हैं, जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए। तब दंभ से भरा हुआ बाली बोला कि इतना ही महान है राम तो बुला लो राम को, मैं भी तो देखूं, कितना बल है उसकी भुजाओं में। बाली के भगवान राम के खिलाफ ऐसे कटु वचन हनुमान जी को क्रोध दिलाने के लिए काफी थे। तब श्री राम भक्त हनुमान ने कहा कि ऐ बल के मद में चूर बाली, तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा, पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा।
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तब बाली ने कहा कि तब ठीक है कल के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा। राम भक्त हनुमान जी ने बाली की बात मान ली। बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दी कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा। अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे, तभी उनके सामने परमपिता ब्रम्हा जी उनके सम्मुख प्रकट हुए। हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता, आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपके पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा।
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ब्रम्हा जी बोले कि हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान, मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो और युद्ध के लिए न जाओ। हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु, बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता, लेकिन उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है, जिसे मैं सहन नही कर सकता और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दी हैं, इसे मुझे स्वीकार करना ही होगा, अन्यथा विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर हैं, जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नहीं जाता है, क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है। तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा कि ठीक है हनुमान जी, पर आप अपने साथ अपनी समस्त शक्तियों को साथ न लेकर जाएं, केवल दसवां भाग का बल लेकर ही जाएं, बाकि बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दें, युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें। रामभक्त हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले। उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था।
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वहां नगर दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए एकत्र था। हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुंचे। बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा। ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा। उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई। बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई। बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे। उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया। बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा। उसके शरीर फट कर खून निकलने लगे। बाली को कुछ समझ नही आ रहा था। तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा कि पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ। बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा था,उसने सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुनकर सरपट दौड़ लगा दी, सौ मील से ज्यादा दौडऩे के बाद बाली थक कर गिर गया। कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला कि ये सब क्या है?हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना, फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ, मुझे कुछ समझ नहीं आया।
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तब जगत पिता ब्रम्हा जी बोले कि पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तुममें समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा? तब बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही हो, ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार में मेरे तेज का सामना कोई नही कर सकता, पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा। ब्रम्हा जो बोले कि हे बाली, मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा, पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके। सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वह तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते।
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इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया और घबरा कर कुछ देर में सोच कर बोला कि हे प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहां करेंगे। ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे, क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नहीं सह सकती। ये सुन कर बाली ने वहीं हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला कि जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूं जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूं और उनको ललकार रहा था, मुझे क्षमा करें। फिर आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया।इस कथा को पढ़ कर आपको यह तो साफ हो गया होगा, क्यों बाली ने मरते समय श्री राम से यह पूछा था, आखिर उसका वध उन्होंने क्यों किया? क्यों बाली का पुत्र राम को प्रिय था, क्यों बाली के भाई सुग्रीव बाली से इतना स्नेह करता थे।
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बाली शक्तिशाली होते हुए भी हनुमान के साथ रह रहे सुग्रीव के पास क्यों नहीं गया था। यह भी जान गए होंगे, श्री राम सतोगुण का पक्षधर रहे, बेशक दूसरी ओर उनका भक्त बाली ही क्यों हो, जिसने राम नाम से कठोर तप किया हो। इस लेख में जहां राम नाम के प्रभाव का उल्लेख है, वहीं दूसरी ओर हनुमंत यानी हनुमान जी की शक्ति को बताता है, उनमें कितना बल है। उनके बल कपा दशवां अंश भी बाली जैसे योद्धा सम्भाल नहीं पाया। बोलो- जय श्री राम- जय श्री हनुमान
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