मन सकारात्मक होगा तो मिलेंगे ये फायदे

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हमारे साथ कोई कदम से कदम मिलाकर क्यों चले? इस सवाल के जवाब में तीन बातें सामने आएंगी- किसी व्यवस्था का दबाव, अपनापन या कोई मजबूरी। हम किसी व्यवस्था का हिस्सा हों, कहीं नौकरी या कोई व्यवसाय कर रहे हों तो कुछ लोगों के साथ चलना पड़ेगा या कुछ हमारे साथ चलेंगे। यह व्यवस्था का हिस्सा है। इसकी बहुत अधिक व्याख्या नहीं हो सकती। चूंकि साथ काम करना है तो चलना भी पड़ेगा। दूसरी बात है अपनापन। लोग अपनेपन के कारण भी साथ चलते हैं। तीसरा कारण बनता है मजबूरी।

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कोई ऐसी मजबूरी आ जाती है कि हमें किसी के साथ या किसी को हमारे साथ लंबा चलना पड़े। यहीं चौंकाने वाली बात सामने आती है कि अब तो लोगों ने अपनापन भी मजबूरी में बदल दिया है। कई घरों में रिश्ते निभाते हुए लोग एक-दूसरे के प्रति मजबूरी का अपनापन लिए चल रहे हैं।

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इन तीनों के साथ एक चौथी स्थिति का निर्माण भी किया जा सकता है, वह है- हमारे भीतर के आकर्षण को देखकर कोई साथ चले। व्यक्तित्व में ऐसा खिंचाव आ जाए कि साथ चलने वाला सिर्फ चले। उसके पास कोई जवाब न हो कि वह क्यों चल रहा है।

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इस स्थिति के निर्माण के लिए यह समझना पड़ेगा कि हमारे शरीर से तरंगें निकलती रहती हैं। यदि मन निगेटिव है तो तरंगें नकारात्मक होंगी और मन पॉजिटीव है तो तरंगें भी सकारात्मक होंगी। एक भक्त का, योगी का मन निर्मल होता है और निर्मल मन से जो तरंगें निकलती हैं वो दूसरों को आकर्षित करेंगी ही। यह चौथा प्रयोग इसलिए जरूरी हो गया है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो सारे रिश्ते एक-दूसरे को ढोएंगे, घसीटते हुए चलेंगे। कोई बड़ा अभियान नहीं चलाना है। थोड़ा समय निकालिए, योग से जुड़िए और अपने व्यक्तित्व से सकारात्मक तरंगें प्रवाहित कीजिए।
– पं. विजयशंकर मेहता
humarehanuman@gmail.com

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