‘चाय’ नाम से ही मन में चाय की ‘चाह’ उत्पन्न हो जाती है । चाहे दुख का समय हो या सुख का समय ,सबका साथ निभाती । सुबह आंख खुलते ही चाय की तलब रसोई तक ले जाती , अदरक कूटने की आवाज लौग, इलायची, दालचीनी के मसाले की खुशबू चाय का जायका बढ़ा देती ।जाड़े की कड़कती ठंड हो या बारिश की फुहार हो ,पकौड़ो का साथ हो और बैठे हो अपनों के साथ , फिर तो चाय का स्वाद दोगुना हो जाता है ।
हम जैसे तो बस चाय का बहाना ढूंढते हैं खाली बैठे हो तो चाय ,काम खत्म कर चुके हो तो चाय, कुछ लिखने बैठे हो तो चाय , दोस्तों के साथ गपबाजी और साथ में चाय का प्याला । चाय के भी आजकल विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं । नींबू की चाय, अदरक की चाय ,मसाला चाय, हर्बल चाय हर चाय का अपना अलग ही अंदाज है चाय की एक चुसकी सुकून का अहसास कराती है। कहते हैं जिसके हिस्से में चाय आई है, उसके हिस्से में सुकून भी आएगा यह चाय ही है जो दिलों को मिलाती है जो दिन भर की थकान मिटाती है ,भले कितने रंग रूप हो इसके हाथ में आती है तो लबों का जायका बढ़ा देती है ।चाय वही रहती है ,चाय का मूल्य बदल जाता है कोलकाता के कुल्हड़ की चाय ,लखनऊ के शर्मा की चाय या मुंबई की विभिन्न प्रकार की चाय और अब तो तंदूरी चाय का भी फैशन आ गया है । चाय अमीरी और गरीबी नहीं देखती ,वह हर एक के हिस्से में आती है चाय की टपरी हो या ढाबा वहां कभी सन्नाटा नहीं दिखता ।चाहे देश -विदेश की बातें हो या राजनीतिक चर्चाएं सब चाय की टपरी में ही चलते हैं और चाय की टपरी की रौनक बढ़ाते है ।सच कहूं तो चाय के बारे में जितना भी लिखा जाए कम ही है। अब लेख समाप्त करती हूं क्योंकि चाय की चर्चा करते-करते चाय की तलब हो आई।
डॉ• ऋतु नागर