भारतीय संस्कृति में भोजन करने के सामान्य नियम……. जिनका पालन है जरूरी…….
भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। जैसा भी भोजन हो उसे सम्मान से खाना चाहिए। स्नान करने के पश्चात ही भोजन करना धर्मसंकट होता है। सबसे पहले भोजन को प्रणाम करें फिर भोजन ग्रहण करना आरंभ करें। कभी भी आपको बातें करते हुए भोजन नहीं करना चाहिए,दूसरे शब्दों में कहें तो भोजन करते हुए बात नहीं करनी चाहिए।
अक्सर देखा जाता है कि बहुत से लोग जब भोजन कर रहे हो तो कुछ लोग जल्दी भोजन समाप्त कर लेते हैं और उठ जाते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। भोजन समाप्त होने के बाद सभी के साथ उठना चाहिए।कभी भी जूते चप्पल पहनकर भोजन नहीं करना चाहिए।
टूटे-फूटे बर्तन में भोजन करना नहीं चाहिए, यह दरिद्रता का संकेत होता है।
खाट पर बैठकर भोजन कभी भी नहीं करना चाहिए। कपड़े पर, हाथ पर, पिपल के पत्तों पर, आंक के पत्तो पर, बट के पत्तों पर कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए।
इन पर भोजन करना है अच्छा….
भोजन कमल डाल के पत्तों पर, आम के पत्तों पर, केले के पत्तों पर करना अच्छा माना जाता है। इसके अलावा सोने चांदी के बर्तन भोजन ग्रहण करने के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। सब को खिलाने के बाद ही खाना बनाने वाले व्यक्ति को स्वयं भोजन करना चाहिए।
सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें।
सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।