भगवान शिव को शमी अत्यंत प्रिय, गणेशजी-शनि देव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं

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शमी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।

शमी का पेड़ घर के बाहर कहां लगाना चाहिए। इस बारे में हम आज आपको बताने जा रहे हैं। जब आप घर के बाहर निकले तो यह आपके दाएं हाथ की तरफ पेड़ होना चाहिए। अगर आपके घर के बाहर शमी का पेड़ लगाने की व्यवस्था नहीं है तो इसे आप घर की छत पर भी लगा सकते हैं। अगर घर की छत पर लगाएं तो आप उसे घर के दक्षिण दिशा में रखें। दक्षिण दिशा में रखने में कोई समस्या हो तो इसे पूर्व या ईशान कोण में भी रखा जा सकता है।

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फालतू के खर्च बंद होंगे

अगर आप घर के मंदिर में दीपक जलाने के बाद शमी के पास एक दीपक जलाएं को आपके फालतू के खर्च बंद हो जाएंगे। बचत की प्रवृत्ति बढ़ेगी और फिजूलखर्ची बंद होगी।

भगवान शिव प्रिय है शमी

भगवान शिव को शमी अत्यंत प्रिय है। इन्हें पूजन में शमी के पुष्प अर्पित करने चाहिए। अगर शमी के पुष्प नहीं है तो शमी के पत्र भी अर्पित किए जा सकते हैं

भारतीय परंपरा में ‘विजयादशमी’ पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। राजस्थान में शमी वृक्ष को ‘खेजड़ी’ के नाम से जाना जाता है। यह मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है, जो थार मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। अंग्रेज़ी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है।

विजयादशमी या दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा

विजयादशमी या दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है। मान्यता है कि यह भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा करके उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई स्थानों पर ‘रावण दहन’ के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।
शमी वृक्ष का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी पेड़ पर छुपाये थे, जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था। कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है।

गणेशजी को चढ़ाते हैं शमी पत्र

घर-परिवार, नौकरी या कारोबार की परेशानियां दूर करने के लिए गणपति की पूजा शुभ मानी जाती है। गणेशजी को भी दूर्वा के समान शमी पत्र भी प्रिय है, गणेशजी को हर बुधवार शमी के पत्ते भी चढ़ा सकते हैं मान्यता है कि शमी में शिव का वास होता है, इसी वजह से ये पत्ते गणेशजी को चढ़ाते हैं। शमी पत्र चढ़ाने से बुद्धि तेज होती है, घर की अशांति दूर होती है।

शमी का संबंध शनि देव से है

शमी का संबंध शनि देव से है। नवग्रहों में “शनि महाराज” को दंडाधिकारी का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा या साढ़ेसाती आती है,तब जातक के अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा हिसाब होता है, इसलिये शनि के कोप से लोग भयभीत रहते हैं। पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है। पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं होता। शनिवार की शाम को शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है। शमी एक चमत्कारिक पौधा भी माना जाता है, क्योंकि जो व्यक्ति इसे घर में रखकर इसकी पूजा करता है, उसे कभी धन की कमी नहीं होती। शनि के दोषों को कम करना चाहते हैं तो हर शनिवार शनि को शमी के पत्ते चढ़ाना चाहिए। इस उपाय शनि बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और कार्यों की बाधाएं दूर हो सकती हैं।

सेवा-पूजा करने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है

“शमी” का पौधा, तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक है। इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नितत्व की प्रचुरता होती है, इसलिए इसे यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। जन्मकुंडली में यदि शनि से संबंधित कोई भी दोष है तो शमी के पौधे को घर में लगाना और प्रतिदिन उसकी सेवा-पूजा करने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है। सोमवार को शमी के पौधे में एक लाल मौली बांधे, इसे रातभर बंधे रहने दें। अगले दिन सुबह वह मौली खोलकर एक चांदी की डिबिया या ताबीज में भरकर तिजोरी में रखें, कभी धन की तंगी नहीं होगी। शनिवार को पेड़ के सबसे निचले भाग में उड़द की काली दाल और काले तिल चढ़ाएं।

शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है

शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है। सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है। शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है । शमी के पंचांग (फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस) का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है। इसे वह्निवृक्ष भी कहा जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधी मानी गई है। कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं। परिवार को रोग व्याधियों से बचाने में शमी का महत्व बहुत अधिक है। शनिवार को शाम के समय शमी के पौधे के गमले में पत्थर या किसी भी धातु का एक छोटा सा शिवलिंग का दूध चढाने और विधि-विधान से पूजन करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप करने से स्वयं या परिवार में यदि किसी को भी कोई रोग होगा तो वह जल्दी ही दूर हो जाता है। यदि आप बार-बार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हों तो शमी के पौधे के नियमित दर्शन से दुर्घटनाएं रुकती हैं।

पंच तत्वों का संतुलन में रहना ही अनिवार्य माना गया है

हिंदू धर्म ग्रंथों में मनुष्य का शरीर प्रक़ृति के पांच आधारों जल, वायु, अग्नि ,आकाश और धरती से बना माना गया है और स्वस्थ रहने के लिए इन पंच तत्वों का संतुलन में रहना ही अनिवार्य माना गया है। धरती पर पाये जाने वाले पेड पौधे मानव जीवन के लिए बहुत लाभप्रद हैं । शमी भी ऐसे पेडों में शामिल है जिसका ज्योतिषशास्त्र में बड़ा महत्व है, क्योंकि यह ग्रहों को प्रभावित करने वाला पेड़ माना गया है।

प्रकृति को देवता कहा गया है

हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रकृति को देवता कहा गया है। पंचभूतों में से एक धरती पर उगने वाले पेड पौधों में से कुछ औषधीय महत्व के तो होते ही है साथ ही हमारे ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव को कम करने के काम भी आते हैं। हमारे धर्म शास्त्रों में नवग्रहों से संबंधित पेड़-पौधों का जिक्र मिलता है, इन्हीं में से एक है शमी का पौधा।

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