मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। यूपी दिवस के मौके पर एक विशेष सौगात का तोहफा दिया है। लेकिन गोयल ने यह कहते हुए कि “एमएलसी एके शर्मा की अपील पर मऊ से दिल्ली के लिए विशेष ट्रेन सेवा शुरू की गई है” यह बता दिया कि यूपी में एके शर्मा सत्ता का सुपर केंद्र बनेंगे।
हालांकि जब शर्मा लखनऊ आये हैं वह अपने क्षेत्र के लोगों व अपने जातीय कुनबे से उबर ही नहीं पा रहे हैं। रविवार को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर जिस तरीके से यूपी को एक नये ट्रेन देने की घोषणा किया वह ट्रेन की खुशी से ज्यादा सत्ताधारी में तनाव पैदा करने वाली हो रही है।पीयूष गोयल को प्रधानमंत्री नरेंद्र का खासमखास माना जाता है। गोयल ने अपने ट्वीट में लिखा, ”उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य ए.के. शर्मा जी के आग्रह पर रेलवे ने आज दिल्ली से मऊ, उत्तर प्रदेश तक विशेष ट्रेन का संचालन शुरु किया। कोविड टीकाकरण के शुरु होने के साथ ही इस ट्रेन के चलने से क्षेत्र के नागरिकों को सुविधा होगी, व आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयेगी। सोमवार को योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश दिवस से संबंधित कार्यक्रम में नोयडा जा रहे हैं। नोयडा को लेकर जो भी मिथ रहा उसे योगी ने तोड़ा है। लेकिन बदली परिस्थितियों में यह दौरा बहुत अहमियत रखता है।
2021 उत्तर प्रदेश भाजपा के लिये आपसी कलह का वर्ष बन सकता है। ऐसी आशंका उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकारों ने व्यक्त किया है। 2017 में राज्य में भाजपा की सरकार बनते ही एक साथ तीन शक्ति केंद्र स्थापित हुए। पहला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दूसरा यूपी भाजपा के पॉवरफुल महामंत्री संगठन सुनील बंसल तथा तीसरा कार्यकर्ताओं में सबसे ज्यादा पैठ रखने वाले केशव प्रसाद मौर्य के यहां कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लगने लगा था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सबसे पहला टक्कर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लाल बहादुर शास्त्री भवन स्थित पंचम तल पर कार्यालय बनने से प्रारंभ हुआ। सूत्र बताते हैं कि संगठन के कुछ शीर्ष लोगों ने पिछड़ों को साधे रखने के लिये केशव मौर्य को पंचम तल पर बैठा दिया। जब मुख्यमंत्री ने इसे अपनी संप्रभुता पर अतिक्रमण मानते हुये स्वीकार नहीं किया तभी से पार्टी दो ध्रुव के कड़वाहट से गुजर रही है। संगठन महामंत्री पहले दो वर्ष संगठन के साथ-साथ सरकार पर भी पकड़ रखते थे। परिणामस्वरूप अनेक महत्वपूर्ण राजनैतिक मनोनयन व अफसरों की तैनाती में बंसल का डंका बजा। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस सिस्टम को बहुत दिनों तक न ढोकर धीरे-धीरे अपना सिस्टम लागू करने लगे। जिसमें कई बार तरह-तरह का आरोप लगा। बस योगी के लिये राहत की बात यह रही कि उनकी पारदर्शी जीवन शैली के कारण उनके पीठ के पीछे निंदा करने वाले भी उन पर आर्थिक और चारित्रिक आरोप की घेरेबंदी करने की नहीं सोचते। इस बीच भाजपा के केंद्रीय रणनीतिकारों खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईमानदार छवि के पूर्व आईएएस जिनके साथ उन्हें वर्षों काम करने का अनुभव रहा उन्हें आनन फानन में बीआरएस देकर यूपी की राजनीति में उतार दिया। अरविंद कुमार शर्मा वीआरएस लेकर दिल्ली से सीधे लखनऊ आये। पार्टी ने उन्हें विधानपरिषद में प्रत्याशी बना कर आगे की रणनीति का संकेत भी दे दिया। देश के रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बैठने वाले नहीं हैं। अभी वह शांत हैं। यदि किसी कारण से उनके साथ छेड़छाड़ हुई तो अभी मोदी उनकी मेहनत देखे हैं, क्रोध नहीं। राजनैतिक प्रेक्षकों की माने तो योगी ने जिस तरह राज्य से गुंडों और भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसा है वह असंभव को संभव करने जैसा है। जब से प्रदेश में नये सत्ता केंद्र का पदार्पण हुआ है तब से उनके समर्थक भी सक्रिय हो गये हैं। शनिवार को भाजपा और संघ के बीच समन्वय का काम देखने वाले आरएसएस के सहकार्यवाह डॉ कृष्णगोपाल उत्तराखंड के प्रवास पर थे। वह हरिद्वार में जिस कार्यक्रम में शामिल हुये उसमें योगी द्वारा राज्य में सरकारी पद पर मनोनीत व उनके शहर के राजनैतिक लोग भी देखे गये।
बताया तो यह भी जा रहा है कि योगी के समर्थन में गये लोगों ने डॉ कृष्णगोपाल को बार-बार यह बताने की कोशिश किया कि योगी ने जितने दृढ़ता और ईमानदारी से संघ के एजेंडे पर राज्य की सत्ता का संचालन किया यह देखते हुये उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं है।बताते हैं कि सारी बातें सुनने के बाद डॉ कृष्णगोपाल ने कहा कि हमको सब ज्ञात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमितशाह ने यह निर्णय लिया है। इसमें वह कोई परिवर्तन नहीं कर सकते। दिखिये आने वाले दिनों में यूपी के सत्ताधारी पार्टी की आंतरिक राजनीति किस दिशा में जायेगी।अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, फिलहाल सोमवार को योगी नोयडा और केशव मौर्य तथा सुनील बंसल बाँदा के दौरे पर हैं। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह संगठन के सिपाही हैं, वह संगठन के विपरीत कुछ नहीं कर सकते।