……….नर में नारायण मिल जाए
बदली बदली इस दुनिया में
नर में नारायण अब न मिले।
अब दुनिया में वो वक्त कहां,
जब दुख अवलोकन हो जाए।
अपनों का समर्पण सपना है,
गैरों का सहारा मिल जाए।
अब कहां अमिट विश्वास यहां,
दुख में नम आंखें हो जाएं।
अब स्वार्थ हुआ जीवन सारा,
नि:स्वार्थ का दामन छूट गया।
इक वक्त वो था, जब दुनिया में दधीचि से दानी जन्मे थे।
इक वक्त वो था, मां की आज्ञा से 14 वर्ष वनवास रहे।
एक वक्त वो था, गुरु मान लिए एकलव्य
अंगूठा दान दिया।
बदली बदली इस दुनिया में नर में नारायण अब न मिले।
अब दुनिया में वह वक्त कहां,
जब दुख अवलोकन हो जाए।
स्वार्थ भरी इस दुनिया में जप जाप भी करते हैं मानव।
बच्चे परदेस भी जाते हैं,मां की ममता का मोल नहीं।
गुरु से शिक्षा नित पाते हैं, शायद अब वो अनमोल नहीं।
अब स्वार्थ हुआ जीवन सारा,
नि:स्वार्थ का दामन छूट गया।
गैरों को सहारा दे जाएं,
अब कहां अमिट विश्वास यहां।
इस अजनबी सी दुनिया में,
नामुमकिन शायद कुछ भी नहीं।
बस सोच की धारा बह निकलेे,
मानवता-सा अंकुर फूटे।
जग में खुशहाली आ जाए,
नि:स्वार्थ भावना जग जाए।
हे ईश्वर! प्रतिपल ऐसा दो!!
हे ईश्वर! प्रतिपल ऐसा दो!!
जब मानवता विस्तार मिले,
नर-नर मैं नारायण भाव मिले,
सत्कर्मो का संसार बसें।
सुख-दुख सबके अब सांझा हो,
इक ऐसा उज्जवल ज्ञान मिले।
सबको इक सम सम्मान मिले,
सब को उज्जवल संसार मिले।
अपनों का समर्पण मिल जाए,
गैरों का सहारा मिल जाए।
अब यही अमिट विश्वास रहे,
दुख में नम आंखें हो जाएं,
नि:स्वार्थ भाव मय जीवन में,
अब मार्ग प्रदर्शित हो जाए, अब ज्ञान प्रदर्शित हो जाए।
बदली बदली इस दुनिया में, नर में नारायण मिल जाए।
नर में नारायण मिल जाए।
डॉ. मीना शर्मा
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