लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सरकार किसानों के दुःख दर्द का एहसास अभी भी नहीं कर रही है। उसे झूठे भुलावों में फंसाये रखना चाहती है। किसानों की राय के बिना थोपे गए कृषि कानूनों पर अभी भी भाजपा सरकार हठधर्मी दिखा रही है, जबकि किसानों के पक्ष में उमड़ा जनभावना का अभूतपूर्व सैलाब दर्शाता हैं उनसे आम जनता कितना दुःखी है।
भाजपा की प्राथमिकता में किसान और खेती नहीं, उद्योगपति और बड़े पूंजीघराने रहे हैं। किसानों को बदनाम करने के प्रपंचों से किसान इसीलिए बहुत आहत हैं। भाजपा ने नोटबंदी, जीएसटी, श्रमकानून और कृषि कानून लाकर खरबपतियों को ही फायदा पहुंचाने वाले नियम बनाए हैं। आम जनता को तो भाजपा ने बस सताया ही है।
वैसे भी किसान भाजपा सरकार के कार्यकाल में चैतरफा मार का शिकार है। खेतों में बुवाई कर रहे मक्का किसानों पर मंहगाई की मार है। मक्का बीज के दाम 470 रूपये तक बढ़ गए है। इससे मक्का की बुवाई का रकबा घट सकता है। किसान का मक्का तो सस्ता है, पर बीज मंहगा है। अब उसके नुकसान को देखते हुए बीज पर सब्सिड़ी दी जानी चाहिए, लेकिन भाजपा सरकार मुंह पर पट्टी बांधे है।
उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का अभी भी लगभग 10 हजार करोड़ रूपए बकाया है। मिल मालिक न सरकार के दबाव में है, न किसानों को बकाया भुगतान करने के मूड में है। अकेले बांदा में 7065 किसानों का भुगतान मिलो ने नहीं किया है। गन्ना किसान खून के आंसू रो रहे हैं, धान किसान भी मुसीबत में है। धान क्रय केन्द्र एक तो सभी जनपदों में खुले नहीं, जहां खुले थे वहां किसानों के धान की खरीद नहीं हुई। क्रय केन्द्र प्रभारी और बिचैलियों की साठगांठ के चलते किसान को औनेपौने दाम में अपना धान देने को मजबूर होना पड़ा है। धान का निर्धारित समर्थन मूल्य तो बस मुख्यमंत्री की कागजी घोषणा बनकर रह गया।
अब मुख्यमंत्री जी गेहूं खरीद ई-पाप (इलेक्ट्रानिक प्वांइट आफ परचेज़) मशीनों से कराने का किसानों को सपना दिखा रहे हैं। उन्होंने उपज का भुगतान 72 घंटे के भीतर करने को भी कहा है। बेहतर होता मुख्यमंत्री जी एक बार इस बात की भी समीक्षा कर लेते कि चीनी मिल मालिकों पर अभी तक गन्ना किसानों का कितना भुगतान बकाया है? धान क्रय केन्द्रों पर कितने किसानों को एमएसपी का भुगतान नहीं हुआ? मुख्यमंत्री जी बताए किसानों का बकाया किस तारीख में भुगतान होगा? अब गेहूं खरीद में जो मशीन लगेगी उनके प्रयोग का प्रशिक्षण कौन देगा? अब तक इसकी क्या व्यवस्था हुई है?
सच तो यह है कि किसान को भाजपा सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है। किसान आंदोलन को लेकर भाजपा सरकार ने मोलतोल करने में नैतिक मूल्यों को भी ताक पर रख दिया है। दरअसल, भाजपा सरकार का चरित्र ही सौदेबाजी का है। सरकारों का काम कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। सरकार व्यवसायिक आचरण नहीं कर सकती है।
भाजपा की प्राथमिकता में किसान और खेती नहीं, उद्योगपति और बड़े पूंजीघराने रहे हैं। किसानों को बदनाम करने के प्रपंचों से किसान इसीलिए बहुत आहत हैं। भाजपा ने नोटबंदी, जीएसटी, श्रमकानून और कृषि कानून लाकर खरबपतियों को ही फायदा पहुंचाने वाले नियम बनाए हैं। आम जनता को तो भाजपा ने बस सताया ही है।
वैसे भी किसान भाजपा सरकार के कार्यकाल में चैतरफा मार का शिकार है। खेतों में बुवाई कर रहे मक्का किसानों पर मंहगाई की मार है। मक्का बीज के दाम 470 रूपये तक बढ़ गए है। इससे मक्का की बुवाई का रकबा घट सकता है। किसान का मक्का तो सस्ता है, पर बीज मंहगा है। अब उसके नुकसान को देखते हुए बीज पर सब्सिड़ी दी जानी चाहिए, लेकिन भाजपा सरकार मुंह पर पट्टी बांधे है।
उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का अभी भी लगभग 10 हजार करोड़ रूपए बकाया है। मिल मालिक न सरकार के दबाव में है, न किसानों को बकाया भुगतान करने के मूड में है। अकेले बांदा में 7065 किसानों का भुगतान मिलो ने नहीं किया है। गन्ना किसान खून के आंसू रो रहे हैं, धान किसान भी मुसीबत में है। धान क्रय केन्द्र एक तो सभी जनपदों में खुले नहीं, जहां खुले थे वहां किसानों के धान की खरीद नहीं हुई। क्रय केन्द्र प्रभारी और बिचैलियों की साठगांठ के चलते किसान को औनेपौने दाम में अपना धान देने को मजबूर होना पड़ा है। धान का निर्धारित समर्थन मूल्य तो बस मुख्यमंत्री की कागजी घोषणा बनकर रह गया।
अब मुख्यमंत्री जी गेहूं खरीद ई-पाप (इलेक्ट्रानिक प्वांइट आफ परचेज़) मशीनों से कराने का किसानों को सपना दिखा रहे हैं। उन्होंने उपज का भुगतान 72 घंटे के भीतर करने को भी कहा है। बेहतर होता मुख्यमंत्री जी एक बार इस बात की भी समीक्षा कर लेते कि चीनी मिल मालिकों पर अभी तक गन्ना किसानों का कितना भुगतान बकाया है? धान क्रय केन्द्रों पर कितने किसानों को एमएसपी का भुगतान नहीं हुआ? मुख्यमंत्री जी बताए किसानों का बकाया किस तारीख में भुगतान होगा? अब गेहूं खरीद में जो मशीन लगेगी उनके प्रयोग का प्रशिक्षण कौन देगा? अब तक इसकी क्या व्यवस्था हुई है?
सच तो यह है कि किसान को भाजपा सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है। किसान आंदोलन को लेकर भाजपा सरकार ने मोलतोल करने में नैतिक मूल्यों को भी ताक पर रख दिया है। दरअसल, भाजपा सरकार का चरित्र ही सौदेबाजी का है। सरकारों का काम कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। सरकार व्यवसायिक आचरण नहीं कर सकती है।
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