इन मंडलों का क्षेत्राधिकार उच्च न्यायालय लखनऊ से संबद्ध किए जाने का अनुरोध, प्रधानमंत्री को पत्र

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लखनऊ: 28 फरवरी, 2021, उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुरादाबाद, बरेली, कानपुर, बस्ती व लखनऊ के अन्य नजदीकी मंडलों का क्षेत्राधिकार उच्च न्यायालय लखनऊ से संबद्ध किए जाने का अनुरोध लखनऊ के अधिवक्ता की ओर से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, रक्षा मंत्री व विधि एव न्याय मंत्री के साथ मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, विधि एवम न्याय उत्तर प्रदेश से किया गया है। इस मुद्दे पर उच्च न्यायालय और आसपास जिलों के बार एसोसिएशन से जुड़े लोग पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं, जो अभी भी चल रही हैं।

प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में कहा गया है कि हमारा संविधान सर्व सुलभ, शीघ्र व सुविधाजनक न्याय की परिकल्पना पर आधारित है, जिसके प्रस्तावना से लेकर मौलिक अधिकारों सहित अनेक अनुच्छेदों से यह परिलक्षित होता है। इसका आशय यह है कि किसी भी व्यक्ति या समाज को शीघ्रता से, सुगमता से और न्यूनतम साधनों के व्यय से उसके निकटतम स्थान पर न्याय सुलभ हो सके, लेकिन विगत 70 दशकों की स्वतंत्रता के बाद भी हम इस मौलिक अधिकारों को व्यवहारिक रूप में उत्तर प्रदेश के नागरिकों को उपलब्ध नहीं करा सके हैं। उत्तर प्रदेश सर्वाधिक जनसंख्या वाला प्रदेश है, इसमें 64 जिले इलाहाबाद न्यायालय से संबद्ध है, जोकि प्रदेश के दक्षिणतम छोड़ पर मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। जबकि 16 जिले उच्च न्यायालय लखनऊ से संबद्ध हैं। लखनऊ की भौगोलिक स्थिति प्रदेश के मध्य में है, जोकि प्रदेश का प्रशासनिक केंद्र भी है। लखनऊ उच्च न्यायालय का आधुनिक भवन साथ न्याय कक्षाओं से सुसज्जित और परिपूर्ण है, जहां पर वादकरियो के लिए अनेकों सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन लखनऊ उच्च न्यायालय में लगभग 25 नए कक्षाओ में ही न्यायिक कार्य चल रहा है, शेष न्याय कक्ष रिक्त वह बंद पड़े हैं। लखनऊ में परिवहन व ठहरने के सुलभ साधन उपलब्ध हैं,जो कि प्रदेश के अन्य जिलों की अपेक्षा बेहतर हैं। पत्र में अनुरोध किया गया है कि उत्तर प्रदेश के मेरठ, बरेली, मुरादाबाद, कानपुर, बस्ती व अन्य नजदीकी मंडलों के जनपदों से जुड़े पीड़ित व्यक्ति न्याय की तलाश में कई सौ किलोमीटर की यात्रा कर लखनऊ होकर ही न्याय प्राप्ति के लिए इलाहाबाद जाया करते हैं। पत्र के अंत में कहा गया है कि उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश की जनता को सुलभ व सुविधाजनक स्थान पर न्याय उपलब्ध कराने के लिए मेरठ, कानपुर, मुरादाबाद, बस्ती व अन्य नजदीकी मंडलों के जनपदों को उच्च न्यायालय लखनऊ से संबद्ध करने की कृपा करें। लखनऊ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता डॉ वी के सिंह ने पत्र भेजकर प्रधानमंत्री से संबंध में अनुरोध किया है।

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, रक्षा मंत्री व विधि एवम न्याय मंत्री के साथ मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, विधि एवम न्याय उत्तर प्रदेश को पत्र लिखकर प्रदेश की बड़ी जनसंख्या के साथ हो रहे अन्याय को दूर करने का आग्रह किया।
न्याय के मौलिक सिद्धान्तों के विपरीत क्षेत्र विभाजन को सर्व, सुलभ एवम न्यायप्रिय तभी बनाया जा सकता है जब नागरिकों को उनके निकटतम स्थान पर न्याय उपलब्ध कराया जा सके। प्रदेश की लगभग एक तिहाई जनसंख्या को सैकड़ों किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा कर न्याय के याचना हेतु इलाहाबाद लखनऊ के रास्ते जाना पड़ता है।

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उच्च न्यायालय और आसपास जिलों के बार एसोसिएशन से जुड़े लोग पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं, जो अभी भी चल रही हैं।
न्याययिक क्षेत्र का पुनर्गठन क्यों आवश्यक है-
1. प्रदेश में 80 जनपद हैं जिनमें 64 जनपद इलाहाबाद उच्च न्यायालय और 16 जनपद लखनऊ उच्च न्यायालय केंद्र से जुड़े हैं।
2. लगभग 15 जिलों के लोग इलाहाबाद न्याय की तलाश में लखनऊ होते हुए इलाहाबाद जाते हैं।
3. लखनऊ निकट होने के साथ आवागमन की सुविधा – रोड, रेल वायु मार्ग से जुड़ा है, रुकने ठहरने की अच्छी सुविधा है।
4. लखनऊ उच्च न्यायालय का भवन विश्व स्तरीय है जिसमे करीब 60 न्यायायिक कक्ष हैं जो तमाम आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण हैं।
वर्तमान में करीब 25 न्यायिक कक्षों में ही काम चल रहा है बाकी बन्द हैं जो कि प्रयोग न होने की स्थिति में खराब हो रहे हैं।
5. लखनऊ के आसपास के मंडलो के जनपदों को लखनऊ उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से जोड़कर उन न्याययिक कक्षों का प्रयोग किया जा सकता है जिस पर सरकार ने 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का व्यय किया है।
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