प्रारम्भ में यह दीवार के सहारे या किसी की सहायता से करना चाहिए। प्रथम कपड़े की इंडुरी या गुदगुदी गद्दी पर रोनों हाथों की कोहनी टेकें और इंडुरी यानी गद्दी को चारों ओर से हाथों के भीतर कर लें। उस पर अपना मस्तिष्क यानी सिर को रख्ों। माथ्ो के बल करने से विश्ोष लाभ होता है। पुन: हाथों पर पूरा बल देकर छाती-पेट आदि सभी शरीर धीरे-धीरे आसमान की ओर उठाएं। इस काम में जल्दबाजी न करें। फिर साधते-साधते आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर की ओर पैर कर लें। शीर्षासन के बाद उतनी ही देर तक दोनों हाथ ऊपर करके सीधा खड़ा होना चाहिए। समय अधि से अधिक दो से पांच मिनट क्रिया के लिए उचित माना जाता है। शीर्षासन पांच मिनट से अधिक न करें। इससे नेत्रों पर कुप्रभाव पड़ सकता है। शीर्षासन के अभ्यासी मक्खन, मलाई व घी का प्रयोग अधिक करें।
शीर्षासन के महत्वपूर्ण लाभ
यह आसन सभी आसनों का शिरोमणि कहा गया है। विधिपूर्वक यह आसन प्रतिदिन नियमपूर्वक किया जाए तो शरीर के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। जैसे मन्दाग्नि, बद्ध कोष्ठता, प्रमेह, स्वप्न दोष, रक्त विकास, नेत्र विकार, जुकाम, सिरदर्द, बाल सफेद होना, बवासीर, बहुमूत्र आदि हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। हृदय व फेफड़े बलवान होते जाते हैं। जिस की नाभि नीचे को टल जाती है, उसे भी यह आसन लाभ कराने वाला है। बुद्धि व जीवन शक्ति की वृद्धि होती है और दीर्घायु प्राप्त होती है।
प्रस्तुति
स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर
सेवानिवृत्त तहसीलदार/ विशेष मजिस्ट्रेट, हरदोई
नोट:स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर के पिता स्वर्गीय पंडित भीमसेन नागर हाफिजाबाद जिला गुजरावाला पाकिस्तान में प्रख्यात वैद्य थे।
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