हीरा कब व कैसे करें धारण, जाने- गुण, दोष व प्रभाव

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हीरा आखिर है क्या? इसका रहस्य क्या है? मनुष्य के मन में इसे लेकर जिज्ञासा प्राचीनकाल से रही है। हीरा वास्तव में अपने क्रिस्टलीय रूप में कोयला या कार्बन है। कोयले के ही अन्य क्रिस्टलीय रूप को हम ग्रेफाइट कहते हैं। रत्न की दृष्टि से देखा जाए तो हीरा शुक्र का रत्न है। भारतीय ग्रंथों में हीरे के बारे में बहुत उल्लेखित किया गया है। भारत और बोर्नियों में प्राचीनकाल में ही हीरा का पहचाना जा चुका था और इनका उपयोग किया जाता था। संस्कृत में इसे इंद्रमणि या ब्रजमणि के नाम से जाना जाता है। हिंदी में हीरा के नाम से जानते हैं। फारसी में अलमास के नाम से जानते हैं। अंग्रेजी नाम डायमंड है। यह बहुत ही कठोर रत्न होता है।

आइये, जानते है हीरे की पृष्ठभूमि
भारत में इसका प्रचलन प्राचीनकाल से ही शुरू हो गया था। तमाम भारतीय गं्रथों में इनका वर्णन मिलता है। उससे इस बात का पता चलता है कि इनका प्रचलन उस समय न सिर्फ आभूषण के रूप में होता था, बल्कि औषधिक रूप में भी इनका प्रयोग होता था। प्राचीन भारत में हीरे की खाने मुख्य रूप से दक्षिण में थीं। मद्रास के पिनेरी नदी से लेक बुंदेलखंड की सोन व खान नदियों तक हीरे पाए जाते हैं। गोलकुंडा हीरों के लिए विख्यात था। वर्तमान में मद्रास, मध्य प्रदेश्, उड़ीसा और गुजरात की खानों से दो हजार से चार हजार कैरेट तक के हीरे प्रति वर्ष निकल जाते हैं। सन् 1725 में ब्राजील में हीरे की खाने चालू की गई गई थीं। लेकिन पुर्तगाली शासकों के कारण यह उद्योग ठप पड़ गया। वर्तमान में सबसे अधिक हीरे दक्षिण अफ्रीका से मिलते हैं। भारतीय प्राचीन ग्रंथों में हीरों का उल्लेख मिलता है। इसमें हीरों के आठ रंग बताए गए हैं।
1- अत्यन्त सफेद, 2- कमलासन, 3- वनस्पति के समान हरा रंग, 4- गेंदें के समान बसंती रंग का, 5- नीलकंठ की गर्दन के समान नीले रंग का, 6- श्यामल, 7- तेलिया और 8- पीत हरा।
वैसे तो हीरों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया गया है, लेकिन हम सहजता को ध्यान में रखकर दो हिस्सों में बांट कर विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे। पहला है रत्नीय हीरा तो दूसरा औद्योगिक हीरा
रत्नीय हीरा
रत्नीय हीरा ही हमारे केंद्र में है, क्योंकि हम ज्योतिष को केंद्र में रखकर यहां विश्लेषण कर रहे है। भारतीय ग्रंथों में रत्नीय हीरा तीन प्रकार का बताया गया है। नर हीरा, नारी हीरा और नपुंसक हीरा
नर हीरा
नर हीरा अत्यन्त चमकदार होता है। इससे इंद्रधनुषी किरण्ों फूटती हैं। इसे पानी में डालने पर इसकी चमक ऊपर उभर आती है। इसमें षट्कोण होते हैं। नर हीरे का रंग श्वेत होता है। इसमें न रेखाएं खींची होती है और न ही बिंदु। न हीरा सभी क लिए शुभ माना गया है।
नारी हीरा
नारी हीरा आयाताकार, चपटा या गोल होता है। इसमें बिंदु और रेखाएं खिंची होती हैं।
नपुंसक हीरा
नपुंसक हीरा गोल होता है। इसमें कोण व पैने किनारे नहीं होते है। यह नर व नारी हीरे से कुछ भारीपन लिए हुए होता है।
आइये, जानते हैं हीरे के वर्ण
सनातन धर्म शास्त्रों में हीरे के चार वर्णों का उल्लेख है। ब्राह्मण हीरा, क्षत्रीय हीरा, वैश्य हीरा और शुद्र हीरा। श्वेत हीरा ब्राह्मण हीरा, फिटकरी के रंग लाल हीरे क्षत्रीय, पीले हीरे को वैश्य और काले हीरें को शुद्र हीरा कहा गया है।
जानिए, ब्राह्मण हीरा क्या है: जिस हरीरे में हल्की सी नीली झांई हो, एकदम सफेद हो या जो श्वेत तो और लाल-नीली रश्मियां निकलती हों, उसमें काले रंग के बिंदु न हो, ऐसा हीरा बेहद शुभ व श्रेष्ठ माना जाता है। एक प्रचीन ग्रंथ के मुताबिक जो हीरा शंख की तरह सफेद, बिल्लौर के समान चमकदार, चंद्रमा जैसा आकर्षक और चिकना हो, वह शुद्ध व श्रेष्ठ हीरा होता है।
जानिए, क्षत्रीय हीरा क्या है: जो हीरा सफेद हो, उसमें से लाल, पीली, सफेद, किरण्ों निकलती हो, या खरगोख की आंख के रंग जैसा हो, दूसरी श्रेणी का श्रेष्ठ हीरा माना जात है।
जानिए, वैश्य हीरा क्या है: जो हीरा पीलापन लिए सफेद रंग का होता है, यह तीसरी श्रेणी का हीरा है।
जानिए, शुद्र हीरा क्या है: काली झांई वाला सफेद हीरा चौथी श्रेणी का हीरा है। यह भी असली हीरा ही माना जाता है।

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भूल से भी न करें, ऐसे हीरे का इस्तेमाल
दोषयुक्त हीरा पहनना जातक क लिए आत्मघाती होता है। इसलिए दोषपूर्ण हीरा कतई धारण नहीं करना चाहिए।
1- जो हीरा श्यामाजीवी हो यानी जिसमें श्यामा रंग हो, यह बल स्वास्थ्य और वीर्य का नाश करता है।
2- जो हीरा पीतमुखी हो, यानी जिसका मुंह पीला हो, इसको धारण करने से वंश का नाश होता है।
3- जो हीरा रक्तमुखी हो, यानी कि जिसका मुंह लाल हो, यह सुख व धन-वैभव का नाश करने वाला माना जाता है।
4- ऐसा हीरा जिसमें किसी भी रंग का बिंदु हो, यह अत्यन्त अशुभ माना जाता है। ऐसा हीरा धारण करना मृत्युकारक है।
5- जो हीरा गर्दक यानी जिसका रंग धूमिल या धुएं के समान हो तो इससे पशुधन का नाश होता है।
6- जिस हीरे में गढ्डा हो, उसे पहनने से स्वास्थ्य और शरीर का नाश होता है।
7- जो हीरा सुन्न हो, या जिस हीरे में चमक न हो तो ऐसे हीरे को धारण करने से धन की हानि होती है।
8- जिस हीरे में कौवे के पंजे का सा चिन्ह हो, यह बेहद अनिष्टकारी माना जाता है।
9- जिस हीरे में आड़ी-तिरझी रेखाएं हो, इसे धारण करने से हृदय अस्थिर और घर-परिवार में मनमुटाव रहत है।
1०- जो हीरा कटा हुआ हो, या जिसमें धार हो, इसके धारण करने से डकैती या चोरी आदि का भय रहता है।

 

जानिए, हीरे के गुण क्या होते हैं
मुख्य रूप से हीरे के पांच गुण होते है
ं1- यह अच्छे पानी या घाट का होता है।
2- यह अंध्ोरे में जुगनूं की तरह से चमकता है।
3- इसमें से किरण्ों निकलती है।
4- यह चिकना होता है।
5- यह चमकदार होता है।

जानिए, हीरे की विश्ोषताएं क्या होती हैं
1- इसे पहनने से भूत-प्रेत का भय नहीं रहता है। युद्ध में विजय प्राप्त होती है। शत्रुओं को वश में करने की शक्ति प्राप्त होती है। इस रत्न पर जहर का प्रभाव नहीं होता है। इससे बुद्धि-बल व स्वास्थ्य ठीक रहता है। इसे धन-वैभव और वंश वृद्धि होती है। हीरा पहनने से स्तम्भन होता है और काम-क्रीड़ा में मादकता आ जाती है।

आइये, जानते है हीरे की शुद्धता की जांच कैसे करें
1- यदि तुतलाते बच्चे के मुह में हीरा रख दिया जाए तो वह तुरंत ही धारा प्रवाह बोलने लगता है।
2- हीरे को धूप में रखने पर इसमें से इंद्रधनुषी किरण्ों निकलती है।
3- अगर गर्म घी में हीरा डाल दिया जाए तो वह तुरंत जमने लगता है।
4- यदि खौलते हुए दूध को उतार कर उसमें हीरा डाल दिया जाए तो दूध ठंडा हो जाता है। अगर ऐसा नहीं होता है तो हीरा को नकली ही मानें।

जानिए, कृतिम हीरा क्या है
आम तौर पर कृतिम हीरा चार प्रकार का होता है।


1- संश्लिष्ट, 2- पुनर्निर्मित, 3- अनुकृत व 4- श्लिक। व्यवसायिक दृष्टि से लाभदायक संश्लिष्ट हीरा अब तक नहीं बनाया जा सका है। लेकिन वैज्ञानिक इसके लिए अनुसंधान कर रहे हैं। इस तरह का प्रयास के क्रम में ग्रेफइट के कणों से कृतिम हीरे का निर्माण किया गया है, ऐसे हीरे अक्सर औद्योगिक हीरे के रूप में व्यवहार में लाए जाते हैं। रत्नीय हीरे के रूप में इनका प्रयोग नहीं होता है।

जानिए, हीरे के उपरत्न क्या है
हीरे के उपरत्न हैं सिम्मा, कुरंगी, दतला, कंसला और तंकू हीरा।

आइये जाने, हीरे के विकल्प जानते है
जो व्यक्ति हीरा या उसके उपरत्न नहीं क्रय कर सकता है, उसे तीन रत्ती से अधिक वजन का सफेद पुखराज , जिरकॉन या सफेद तुरमली पहनना चाहिए। जो व्यक्ति इन्हें भी नहीं खरीद सकता है। वे सफेद स्फटिक यानी बिल्लौर कम से कम पांच रत्ती का चांदी की अंगूठी में धारण करना चाहिए।

जानिए, हीरे को कौन जातक धारण कर सकता है
1- हीरा विष का नाशक होता है, इसलिए जंगल में घूमने वाले व्यक्तियों को हीरा धारण करना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों को भी हीरा पहनना चाहिए, जिनका वास्ता विष्ौले जीवों से पड़ता है।
2- यदि घर में पति-पत्नी के बीच कलह होती है ता ेहीरा पहनना चाहिए।
3- जो व्यक्ति संभोग या काम-क्रीड़ा में कमजोर रहते हैं। जिनसे पत्नी संतुष्ट नहीं होती हो, ऐसे व्यक्तियों को हीरा पहनना चाहिए। इससे कमजोरी दूर होती है।
4- जिन स्त्री-पुरुषों को भूत-प्रेत बाधा हो, उन्हें हीरा आवश्य ही पहनना चाहिए।
5- अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर छठे या आठवें भाव में स्थित हो तो उसे हीरा आवश्य धारण करना चाहिए।
6- अगर कोई व्यापारिक एजेंट हो, जिसे अक्सर अनेक लोगों से मिलना पड़ता हो, या जो प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को वश में करना चाहते हो तो उन्हें हीरा पहनने से लाभ होता है।
7- अगर किसी भी ग्रह ही महादशा में शुक्र का अंतर चल रहा हो तो हीरा पहनना अत्यन्त लाभकारी होता है।
8- बल,वीर्य और कामेच्छा बढ़ाने के लिए हीरा धारण किया जाता है।
9- तुला या वृष लग्न वाले जातकों को भी हीरा धारण करना चाहिए।

जानिए, किसी राशि के अनुसार हीरे का व्यवहार क्या है
1- मेष लग्न में शुक्र द्बितीय एवं सप्तम भाव का स्वामी होता है। इसलिए यह इस लग्न के जातकों के लिए प्रबल मारकेश है। हीरा नहीं धारण करना चाहिए।
2- वृष लग्न का स्वामी शुक्र हैं। इसलिए इस लग्न के जातकों को हमेशा हीरा धारण करना चाहिए। इससे स्वास्थ्य लाभ, आयु वृद्धि और उन्नति होती है। शुक्र की महादशा में हीरा पहनना अत्यन्त लाभकारी होता है।
3- मिथुन लग्न के शुक्र पंचम और द्बादश भाव का स्वामी है। पंचम त्रिकोण में शुक्र की मूल त्रिकोण राशि पड़ती है। इसलिए इस लग्न वाले जातकों के लिए शुक्र शुभ ग्रह माना गया है। लेकिन मिथुन लग्न के स्वामी बुध और शुक्र में मित्रता है, इसलिए जातक शुक्र की महादशा में हीरा पन सकते है। इससे सुख, बुद्धि व बल मिलता है। साथ ही यश-कीर्ति, मान-सम्मान और भाग्योदय होता है। अगर हीरे को पन्ना के साथ पहना जाए तो परम लाभ की प्राप्ति होती है।
4- कर्क लग्न में शुक्र चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी है। इसलिए इस लग्न वालों के लिए शुक्र शुभ ग्रह माना जाता है। लेकिन कर्क लग्न का स्वामी चंद्र है और चंद्र व शुक्र में मित्रता नहीं है। फिर भी ज्योतिषियों के अनुसार चतुर्थ व एकादश भाव शुभ माने जाते हैं। शुक्र की महादशा में हीरा धारण किया जाए तो परम कल्याणकारी होता है।
5- सिंह लग्न में शुक्र तृतीय व एकादश भाव का स्वामी होता है। इसलिए इस लग्न के लिए यह शुभ ग्रह नहीं माना गया है। इसलिए ऐसे जातकों को हीरा नहीं पहनना चाहिए। अगर सिंह लग्न की जन्मकुंडली में शुक्र लग्न, द्बितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम या एकादश भाव में स्थित हो तो उसकी महादशा में हीरा धारण करने से धन व मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
6- कन्या लग्न में शुक्र द्बितीय व नवम भाव का स्वामी होता है। इसलिए इस लग्न के लिए शुक्र अत्यन्त शुभ ग्रह माने गए हैं। अगर ऐसे जातक हीरा पहने तो उन्हें चौतरफा लाभ प्राप्त होता है। शुक्र की महादशा में भी हीरा धारण करना चाहिए।
7- तुला लग्न में शुक्र लग्न का स्वामी है। इसलिए जातकों को आजीवन हीरा पहनना चाहिए। इस लग्न के जातकों को हीरा रक्षा कवच की तरह सहयोग देता है। इससे स्वास्थ्य, आयु और यश-धन की वृद्धि होती है। शुक्र की महादशा में भी हीरा जरूर धारण करना चाहिए।
8- वृश्चिक लग्न में शुक्र सप्तम व द्बादश भाव का स्वामी होता है। ज्योतिष शास्त्री मानते है कि सप्तम स्थान मारक और बारहवां स्थान व्यय का कारक है। इसके अलावा वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है। मंगल व शुक्र में परम शत्रुता है, इसलिए इस लग्न वाले जातकों को हीरा नहीं पहनना चाहिए।
9- धनु लग्न में शुक्र छठे व ग्यारहवे भाव का स्वामी है। इसलिए यह इस लग्न के लिए शुभ ग्रह नहीं माना गया है। इसके अलावा धनु लग्न का स्वामी बृहस्पति हैं। बृहस्पति और शुक्र में परम शत्रुता है। इसलिए धनु लग्न वालों को हीरा नहीं धारण करना चाहिए।
1०- मकर लग्न में शुक्र पंचम और दशम भाव का स्वामी है। पंचम त्रिकोण का स्वामी होने के कारण इस लग्न के जातकों के लिए शुक्र अत्यन्त हितकारी ग्रह माना गया है। क्योंकि मकर लग्न के स्वामी शनि और शुक्र में परम मित्रता है। इसलिए इस लग्न वाले जातकों को हीरा पहनने से बहुत ही अधिक लाभ मिलता है।
11- कुम्भ लग्न में शुक्र चतुर्थ और नवम भाव का स्वामी है। इसलिए इस लग्न के लिए यह अत्यन्त योगकारक ग्रह माना गया है। अगर कुम्भ लग्न के जातक हीरा धारण करें तो उन्हें हर तरह की लौकिक उन्नति प्राप्त होती है। शुक्र की महादशा में हीरा जरूर धारण करना चाहिए।
12- मीन लग्न में शुक्र तृतीय व अष्टम भाव का स्वामी होता है। इसलिए यह इस लग्न के लिए अत्यन्त अशुभ ग्रह माना गया है। इसके अलावा मीन लग्न के स्वामी बृहस्पति और शुक्र में परम शत्रुता है। इसलिए इस लग्न के जातकों को कभी हीरा नहीं पहनना चाहिए।

आइये जानते है कैसे धारण करें हीरा
साधारण से साधारण हीरा भी तीन से चार हजार रुपए प्रति कैरेट के भाव से मिलता है। इसलिए इसके वजन के बारे में बताना उचित नहीं है। ज्योतिष शास्त्री मानते हैं कि हीरा 2.5 सैंट से लेकर डेढ़ रत्ती तक धारण किया जा सकता है। जिस व्यक्ति की जितनी सामथ्र्य हो, वह उतने वजन का हीरा धारण कर सकता है। हीरे का प्लेटिनम अथवा चांदी की अंगूठी में मढ़वाना चाहिए। इसे शुक्रवार को ही बनवाना उत्तम रहता है। हीरा जड़ित अंगूठी को विधिपूर्वक उपासना करके ऊॅँ शुं शुक्राय नम:………………..मंत्र का सोलह हजार बार जप करके किसी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को प्रात:काल श्रद्धा के साथ धारण करना चाहिए।

जानिए किन रोगों के उपचार में कारगर है हीरा

भाव प्रकाश नाम के ग्रंथ में वर्णित है कि हीरे की भस्म कई रोगों का नाश कर बल और वीर्य बढ़ाती है। इसक ेलिए हीरे की पिष्टी या गोली का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए। रोग निवारण में शुद्ध रूप से हीरे की भस्म ही इस्तेमाल करें। यह भस्म हृदय रोग, तपेदिक, प्रमेह, पांडु रोग, नपुंसकता और सूखा रोग आदि बीमारियों के इलाज में कारगर है।
1- अति दुर्बलता, अतिसार, अजीर्ण और वायु प्रकोपा आदि रोगों में हीरा पहनने से आवश्य लाभ होता है।
2- यदि मंदाग्नि में हीरे का भस्म शहद के साथ लिया जाए तो भूख लगती है और रोग दूर होता है।
3- जिस व्यक्ति का वीर्य नहीं बनता है। शीघ्र पतन होता है। संतान उत्पन्न करने में अक्षम है। उसे हीरे की भस्म का सेवन मलाई के साथ करना चाहिए। इससे शीघ्र लाभ होता है।

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

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