भगवान् श्री कृष्ण ने दृष्टि भ्रम को दूर किया

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shri krishna

भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। जगत के पालनहार भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं भी मन को लुभाने वाली है। उनकी लीलाएं और गीता में दिया उनका ज्ञान कलयुग में मनुष्य को जीवन के यथार्थ से अवगत कराने वाला है। कलयुग में जब जीव मात्र की मति मंद होती जा रही है और भौतिक संसार और सुख को ही वह सर्वस्व मानकर जीवन व्यतीत कर रहा है। धर्म के प्रति आस्था के विपरीत आडंबर को महत्व दिया जा रहा है। ऐसे में भगवान श्री कृष्ण के जीवन के छोटे-छोटे प्रसंग हमारे मन में सकारात्मकता का भाव तो जगाते ही हैं। साथ ही हमें जीवन के यथार्थ से अवगत कराने वाले है। आज हम भगवान श्री कृष्ण के जीवन के कुछ अनुपम प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को जीवन के यथार्थ से और उनके यथार्थ से अवगत कराया। छोटी सी कथा के माध्यम से आपको इस बात का भी एहसास होगा कि भगवान ने कितनी सहजता से गोपियों को सत्य का बोध कराया था। भगवान श्री कृष्ण की लीला में गोपियां और महर्षि अगस्त्य शामिल रहे। भगवान श्री कृष्ण की लीला से यह भी स्पष्ट हो गया कि जो भगवान से प्रेम करते हैं, भगवान भी उनसे उतना ही प्रेम भाव रखते है।

एक बार गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा कि हे कृष्ण हमें अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने जाना है और ये यमुना जी बीच में पड़ती हैं अब बताओ कैसे जावें ? “
भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो कहना कि – हे यमुना जी ! अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हैं तो हमें रास्ता दें ।
गोपियाँ हँसने लगीं कि लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते हैं , सारा दिन तो हमारे पीछे-पीछे घूमता है, कभी हमारे वस्त्र चुराता है , कभी मटकियाँ फोड़ता है , कभी हमारे घर में घुसकर माखन चुराता है , कोई बात नहीं , फिर भी हम बोल देंगी ।
गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर कहती हैं कि – हे यमुना महारानीजी ! अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हैं तो हमें रास्ता दे दो और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया । गोपियाँ तो आश्चर्यचकित रह गईं कि यह क्या हुआ कृष्ण ब्रह्मचारी ?
अब गोपियाँ अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापिस आने लगीं तो अगस्त्य ऋषि से कहा कि महात्माजी ! अब हम घर कैसे जायें , यमुना जी बीच में हैं ?
अगस्त्य ऋषि ने कहा कि तुम यमुना जी को कहना कि अगर अगस्त्य जी निराहार हैं तो हमें रास्ता दे दो ।
गोपियाँ मन में सोचने लगीं कि अभी-अभी तो हम इतना सारा भोजन लाईं थीं , सो सबका सब खा गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे हैं ,इन महात्माजी की भी क्या विचित्र बात है ?
गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर बोलीं कि – हे यमुना जी ! अगर अगस्त्य ऋषि निराहार हैं तो हमें रास्ता दे दो और यमुना जी ने रास्ता दे दिया ।
गोपियाँ आश्चर्य करने लगीं कि जो खाता है वो निराहार कैसे हो सकता है और जो दिन रात हमारे पीछे- पीछे घूमता-फिरता है वो ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है ? इसी विचार-चिंतन में गोपियों ने श्री कृष्ण के पास आकर फिर से वही प्रश्न किया कि आप ब्रह्मचारी कैसे हैं ?
भगवान् श्री कृष्ण कहने लगे गोपियों मुझे तुमारी देह से कोई लेना देना नही है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ , मैंने कभी वासना के तहत संसार नहीं भोगा है । मैं तो निर्मोही हूँ , इसलिए यमुना ने आप को मार्ग दे दिया ।
तब गोपियाँ बोलीं कि भगवन् ! मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर भी वह बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी हों तो हे यमुना मैया ! मार्ग दे दें और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुनाजी ने हमको मार्ग दे दिया ।
श्री कृष्ण हँसने लगे और बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी ही हैं , क्योंकि अगत्स्य मुनि भोजन ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते हैं और उनका भोजन में कोई मोह नहीं नहीं होता , उनके मन में कभी भी यह विचार नहीं होता कि मैं भोजन करुँ या भोजन कर रहा हूँ । वह तो अपने अंदर विराजमान मुझे भोजन करा रहे होते हैं इसलिए वो आजन्म उपवासी हें । जो मुझसे प्रेम करता है मैं उनका सच में ऋणी हूँ , मैं तुम सबका ऋणी हूँ , यह सुनकर और परम सत्य को जानकर गोपियाँ श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हो गयीं ।इस कथा में भगवान श्री कृष्ण जो कि भक्तवत्सल हैं, गोपियों के मन चेतन पर पड़े दृष्टि भ्रम को भी दूर किया था।

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