अनोखी ममता और अनोखी ममता

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र्ष 1992 के माह जून की बीस तारीख थी, शाम के चार बजे थ्ो, मैं मौलश्री के पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठा था। मेरे चारों तरफ पड़ी कुर्सियों पर स्टाफ के अन्य लोग बैठे थ्ो। विचार-विमर्श चल रहा था और हम सब बातों में मशगूल थ्ो, तभी क्या देखता हूं? कि पास ही रख्ो गमलों के पास से गिलहरी के चीखने की आवाज आ रही थी और बार-बार निगाहें उधर ही घूम रही थी, मगर बातों के सिलसिले में उधर ध्यान नहीं दे पा रहा था। थोड़ी देर में क्या देखता हूं? कि एक गिलहरी मेरे पेरौं के पास बार-बार आकर चीखती हुई वापस गमलों की तरफ बढ़ी और तेजी से लौट जा रही थी।
मुझ से नहीं रहा गया और बातों के सिलसिले को रोककर मैने माली को आवाज दी तो तीन माली दौड़ते हुए मेरे पास आए और पूछा, क्या बात है? उनको गिलहरी के विषय में बताया और कहा कि पता लगाएं कि गिलहरी बार-बार गमलों की तरफ क्या बतलाना चाह रही है? तुरन्त ही तीनों माली गमलों की तरफ गए तो देखते क्या है? गमलों के बीच में एक सांप ने गिलहरी केे बच्चे को मंुह में दबा रखा है और गिलहरी सांप के मुंह के पास से बच्चे को छुड़ाने का प्रयास कर रही थी और मेरे पा आकर सहायता के लिए प्रयास कर रही थी।

मालियों के प्रयास से बच्चा तो सांप के मुंह से छूट गया। बच्चा जिन्दा था, देखकर बड़ी हैरत हुई। सभी लोग जो वहां मौजूद थ्ो। कुदरत के इस करिश्मे को देखकर दंग रह गए थ्ो और एक-दूसरे से उस मां की अनोखी ममता की बात कर रहे थ्ो। गिलहरी अपने बच्चे को सांप के मुंह से निकला देखकर अपनी खुशी का इजहार चीं-चीं कर फुदक कर रही थी। बच्चे के चारों तरफ फुदकने के बाद बच्चे को अपने साथ ले जाने का प्रयास करने लगी, मगर बच्चे की हालत उसके साथ चलने की नहीं थी। बच्चे का पिछला हिस्सा, जो सांप के मुंह में था, वह निर्जीव हो गया था। चलने पर जमीन पर घिसट रहा था।

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मां उसे अपने साथ ले जाने की हर सम्भव कोशिश कर रही थी। तभी क्या देखता हूं कि मां-बच्चे को अपने मुंह में दबा कर भागती हुई मौलश्री के पेड़ पर अपने घोंसले में ले गई और ऊपर जाकर चीं-चीं कर अपनी खुशी का इजहार करने लगी। बड़ी देर तक उस बेजुबान ममता का ध्यान आ रहा था।बड़ी देर तक हम लोग इसी बारे में बात करते रहे।

दूसरे दिन सुबह उठा तो कल वाली घटना का ध्यान आते ही मौलश्री के पेड़ की तरफ चल दिया तो देखता क्या हूं? कि गिलहरी नीचे आकर देखती और फिर कूदती हुई पेड़ पर अपने घोसले में चली जाती। आज उसकी चहचहाहट में वह जोश नहीं था, जो कल देखने को मिला था। ख्ौर दिन में अपने कार्यों में व्यस्त हो गया और शाम को पांच बजे जब अपने स्टॉफ के साथ मौलश्री के पेड़ के नीचे बैठा तो स्टॉफ ने कल हुए गिलहरी के किस्से को शुरू किया और काफी देर तक ममता की बातें होती रहीं। इसी बीच गिलहरी अपने घोसले से नीचे आती और मेरी मेज के पास चीं-चीं करती और चली जाती।

ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कहना चाह रही है, उसके दो मतलब थ्ो, एक तो वह बच्चे के बचाने पर धन्यवाद कह रही हो या बच्चे की तबीयत ठीक न हो। हम तो अंदाजा ही लगा सकते थ्ो। मगर उसकी कोई मदद नहीं करते थ्ो। रात होने लगी, हम लोग घर को चल दिए। मेरे तो घर के सामने की ही घटना थी, इसलिए मेरा ध्यान बार-बार उधर ही चला जाता।
रात में यही ध्यान आ रहा था कि उस बच्चे क्या दशा होगी? अगले दिन सुबह मैं फिर घूमता हुआ पेड़ तक गया।

रुक कर गिलहरी को देखने लगा, वह दिखाई दी, मगर वह कुछ उदास सी दिख रही थी। उसकी पहले चहचहाहट नहीं थी और न ही उसके फुदकने में पहले वाला जोश ही था। मैं अंदर चला आया और तैयार होकर अपने कार्यालय में आकर काम में मन लगाने का प्रयास करने लगा, मगर मन किसी कार्य में लग ही नहीं रहा था और बार-बार गिलहरी वाली घटना सामने आ रही थी। तभी एक माली जो गमलों के पीछे काम कर रहा था, भाग कर मेरे पास आया और कहने लगा कि गिलहरी के घोसले से बच्चा नीचे गिरा और गिलहरी उस मृत बच्चे के चारों तरफ चीं-चीं करके कूंद रही हैं। उसकी हालत ऐस हो गई, जैसे पानी के बाहर मछली तड़पती है। उसकी ऐसी दशा देखकर बड़ा धक्का लगा, मगर मैं उसकी कुछ मदद नहीं कर सकता था।

गिलहरी बार-बार बच्चे के पास चीं-चीं करती, चारों ओर घूमती, कुछ कहना चाह रही थी, मगर मैं कुछ मदद नहीं कर पा रहा था।
गिलहरी की यह दशा देख पाना सम्भव नहीं था। तभी माली ने सुझाव दिया कि मरे बच्चे को कहीं फेंक दिया जाए या बच्चे के शरीर को खाली गमले से कुछ देर के लिए ढक दिया जाए।

ऐसा करना ही ठीक लगा और माली से ऐसा ही करने को कहा। उसने तुरन्त ही ऐसा ही किया और गिलैहरी गमले के पास जाकर गुमसुम सी हो गई। चीं-चीं करना व फुदकना भूल सा गई। फिर उठी और गमले के चारों ओर चक्कर काटने लगी। कभी गमले के ऊपर चढ़ जाती। बड़ी परेशान थी। यहीं क्रम काफी देर तक चलता रहा। उसके बाद वह एकदम उछली व चीं-चीं करते करती हमारी तरफ आई और बड़ी ही मासूम निगाहों से देखने लगी। बड़ा अजीब सा लगा और ऐसा लगा कि वह पुकार-पुकार कर कह रही हो कि उसके बच्चे को गमले से बाहर कर दिया जाए। उसकी ऐसी दशा देखकर मैने माली से गमला हटवा दिया। गमला हटते वह बड़ी तेजी से बच्चे के पास चीं-चीं करती चक्कर काटने लगी।

ऐसा लग रहा था, हमने उसकी बात समझ ली है। बच्चे को खुले में रख दिया है। उसकी दशा देखकर यह तय किया गया था कि बच्चे को इसी तरह छोड़ कर अपने कार्यों में लग जाएं। रात होती जा रही थी और गिलहरी वाली घटना दिमाग में घूम रही थी।
सुबह जब मौलश्री के पेड़ के पा जाकर गिलहरी व बच्चे को देखने आया तो वहां बच्चा कहीं भी नहीं दिखाई दिया। बड़ी निराशा से इधर-उधर देख रहा था, तभी देखा पेड़ से गिलैहरी चीं-चीं करती नीचे आई और फुदककने लगी। काफी देर तक वह बड़ी खुशी से कभी पेड़ पर कभी पेड़ के नीचे अकर चीखने व फुदकने लगी। ऐसा लग रहा था कि उसे कौन सी खुशी मिल गई है।
मैंने माली को बुलाकर कहा कि पता करे कि गिलहरी इस प्रकार क्यों कर रही है। माली ने पड़ के नीचे बैठकर गिलहरी की गतिविधियों पर ध्यान दिया और देखा कि गिलहरी जब अपने घोंसले पर गई तो उसके पहुंचते ही उसमें चीं-चीं-चीं-चीं की बड़ी आवाजें आने लगीं और माली ने मौका देख पेड़ पर चढ़कर घोसले में देखा तो दंग रह गया कि घोंसले में छोटे-छोटे नवजात बच्चे गिलहरी के साथ चीं-चीं कर रहे हैं और वह उन बच्चों की ममता में इतनी व्यस्त थी कि एक दिन पहले अपने बच्चे के मरे का गम भूल कर अपने बच्चों में अपनी ममता लुटा रही थी। यह घटना वाराणसी के सारनाथ क्ष्ोत्र की है।

संस्मरण व लेखन: अश्वनी कुमार नागर

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