असत्य कर्मों का त्याग करता है, परलोक में वह उत्तम गति अर्थात् श्रेष्ठ ऐश्वर्वों को प्राप्त होता है

0
442

वेद ज्ञान
=====
परमात्मा अपने उपासक के मन को पवित्र करता है। ईश्वर सर्वदृष्टा है। वह मनुष्य के भीतर काम, क्रोध आदि सब संग्रामकारी सेनाओं सहित मनुष्य की सभी हिंसा वृत्तियों पर आक्रमण कर देता है। ऐसे मेधावी परमेश्वर को उपासक जन ध्यान क्रिया द्वारा अपने हृदय में शोभित व प्रतिष्ठित करते हैं।

ईश्वर के ध्यान व उपासना से मनुष्य के भीतर विद्यमान सब आसुरी सेनाएं पराजित हो जाती हैं और उसका चित्त, मन व हृदय पवित्र हो जाता है।

Advertisment

पवित्र हृदय से ही मनुष्य पुण्य कर्मों को करता और असत्य कर्मों का त्याग करता है। परलोक में वह उत्तम गति अर्थात् श्रेष्ठ ऐश्वर्वों व सुखों को प्राप्त होता है।

-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here