वेद विचार
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आचार्य अथवा परमात्मा के पास से अभिषुत ज्ञान और कर्म के रस की अथवा आनंद-रस की धारा से तृप्त हुआ आत्मा दुःख, विघ्न, विपत्ति आदि के सागर को पार कर लेता है। ज्ञान और कर्म के रस वा आनंदरस की धारा से तृप्त हुआ वह आत्मा दुःखादि के सागर को पार कर लेता है और पारलौकिक लक्ष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होने लगता है।
गुरु के पास से प्राप्त ज्ञानकाण्ड और कर्मकांड के रस से तथा परमात्मा के पास से प्राप्त आनंदरस से तृप्त होकर मनुष्य समस्त ऐहलौकिक एवं पारलौकिक उन्नति करने में समर्थ हो जाता है।
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अतः सबको विद्यावान सदगुरुओं का शिष्यत्व प्राप्त करने सहित सच्चिदानंदस्वरुप, सर्वव्यापक परमात्मा की श्रद्धा भक्ति से उपासना करनी चाहिए।
-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य
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