….पारलौकिक लक्ष्य मोक्ष की ओर अग्रसर

0
552

वेद विचार
=======
आचार्य अथवा परमात्मा के पास से अभिषुत ज्ञान और कर्म के रस की अथवा आनंद-रस की धारा से तृप्त हुआ आत्मा दुःख, विघ्न, विपत्ति आदि के सागर को पार कर लेता है। ज्ञान और कर्म के रस वा आनंदरस की धारा से तृप्त हुआ वह आत्मा दुःखादि के सागर को पार कर लेता है और पारलौकिक लक्ष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होने लगता है।

गुरु के पास से प्राप्त ज्ञानकाण्ड और कर्मकांड के रस से तथा परमात्मा के पास से प्राप्त आनंदरस से तृप्त होकर मनुष्य समस्त ऐहलौकिक एवं पारलौकिक उन्नति करने में समर्थ हो जाता है।

Advertisment

अतः सबको विद्यावान सदगुरुओं का शिष्यत्व प्राप्त करने सहित सच्चिदानंदस्वरुप, सर्वव्यापक परमात्मा की श्रद्धा भक्ति से उपासना करनी चाहिए।

-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here