नवरात्रि व्रत का प्रभाव, कन्या पूजन क्यों व कब जरूरी और इसका महत्व

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वरात्रि में व्रत से भगवती की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है, यह सर्वविदित है। नवरात्रि के पावन पर्व पर नौ दिन तक व्रत रखने का विधान है और इस व्रत में भूमि पर सोना, कन्या पूजन करना, वस्त्रादि का दान देना और त्रिकाल में देवी पूजन करने का विधान है। नवरात्रि में देवी की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है, भगवती के विभिन्न रूप है, लेकिन प्रतिपादित कल्प के अनुसार आजकल पूजा की जाती है। अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्रि विधि का अनुष्ठान व विधिपूर्वक देवी का पूजन किया जाता है। प्रतिपदा से कल्प आरम्भ करके महानवमी तक देवी माहात्म्य का पाठ और देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। शरदकाल में की जाने वाली इस दुर्गा पूजा को महापूजा कहा जाता है। इस पूजा में स्तवन, पूजन होम, बलिदान पूजा के अंग होते हैं। सप्तमी, अष्टमी और नवमी इन तीन तिथियों में यह पूजा करने का विधान है। आमतौर पर नवम या दशमी तिथि को कुमारी पूजन करके विसर्जन होता है। इस विधान को शास्त्रों में नवरात्रि कहा गया है।

जानिए, कन्या पूजा का महत्व

देवी के तीर्थों पर दर्शन और नवरात्रि में हवन करने के पश्चात जो कन्या पूजन किया जाता है, शास्त्रों में उसका महत्व बहुत अधिक है। माता वैष्णों, ज्वालाजी, ब्रजेश्वरी देवी चिंतपूर्णी, शुकराला माता, कालिका माता, चामुंडा माता आदि भगवती के अन्य पावन तीर्थों के दर्शन-पूजन के बाद कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग यात्रा समाप्त होने पर अपने घरों पर लौटकर कन्य पूजन करवाते हैं। शक्ति सम्प्रदाय के ग्रंथों में कन्या पूजन के संदर्भ में काफी कुछ लिखा गया है। तांत्रिक पूजन में भी देवी पूजन का विश्ोष महत्व हैं। प्राचीन काल में शक्तितीर्थों पर और नवरात्रि के दिनों में कन्या पूजन का विश्ोष प्रचार व प्रसार था। तंत्र शास्त्र के कुब्जिका तंत्र, मंत्र-महोदधि, योगिनी तंत्र, काली तंत्र, रुद्रायामल तंत्र, वृहन्नील तंत्र आदि ग्रथों में कन्या पूजन के बारे में विश्ोष रूप से उल्लेख किया गया है।

काली तंत्र में उल्लेखित है-


बड़े-बड़े पर्वों पर, पुण्य मुहूर्त में और महानवमी तिथि को कुमारी पूजन करना चाहिए। वस्त्र, आभूषण व भोजनादि से प्रसन्न हुईं कुमारी एक, दो और तीन बीज मंत्रों की सिद्धि का फल प्रदान करने वाली हैं।

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कन्याओं को फल और बाल प्रिय नैवेद्य आदि देकर सेवा-भाव से पूजन करें। कन्या पूजन सबसे बड़ी तपस्या है। सम्पूर्ण शुभ कर्मों का फल प्राप्त करने के लिए कुमारी पूजन करना चाहिए। कुमारी कन्याएं साक्षात् देवी हैं। देवी स्वरूप मानी जाती हैं। कुमारी पूजन से मनुष्य सम्मान, लक्ष्मी, पृथ्वी, विद्या और महान तेज प्राप्त करता है। महान भय, अकाल आदि उत्पाद, बुरे स्वप्न, अपमृत्यु और मनुष्यों के लिए अन्य दुखदायी समय में कुमारी पूजन से कल्याण होता है। विधि पूर्वक पूजित कुमारियां विध्न, भय और शत्रु का नाश करती हैं। रोग व दुष्ट ग्रह शांत हो जाते हैं।

पूजन के लिए किसी अवस्था तक बालिका होनी चाहिए

पांच से 12वर्ष तक की अवस्था की बालिका कुमारी कहलाती हैं। भक्त को चाहिए कि दस कन्याओं का पूजन करे। उसमें भी दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की बालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी व नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं। एक वर्ष की अवस्था तक की कन्या की पूजा से प्रसन्नता नहीं होगी, इसलिए उसका ग्रहण न करें और ग्यारह वर्ष से ऊपर की अवस्था की कन्याओं का पूजन वर्जित है।
होम, जप और दान से देवी इतना प्रसन्न नहीं होती हैं, जितना कन्या पूजन से होती हैं। दुख, दरिद्रता, शत्रु नाश के लिए और शक्ति प्राप्ति के लिए कुमारी पूजन सर्वोत्तम है। अपनी आर्थिक शक्ति और सामथ्र्य के अनुसार एक, दो या अधिक कन्याओं की पूजा का विधान है। यह कोई आवश्यक नहीं है कि सात या नौ कन्याओं का ही पूजन किया जाए।

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अशक्त होने पर केवल एक कन्या का भी पूजन किया जा सकता है। एक कन्या का पूजन भी उतना ही फलदायक है, जितना अधिक कन्याओं का। तंत्र ग्रंथों के अनुसार कन्या-पूजन से भगवती का निवास होता है। कन्याओं को भोजन कराने से देवी आनंदित होती हैं। कुमारी कन्या को देवी का रूप माना गया है। जो कन्या रूपी देवी को पूजन के बाद बाल-प्रिय फल, नैवेद्य, भोजनादि से तृप्त करता है, उसने मानों त्रिलोकी को तृप्त कर दिया। नवरात्रि में भगवती दुर्गा की महापूजा करने के बाद वस्त्र, अलंकार और भोजनादि से कन्या पूजन करने वाला मंद भाग्य भी अपने जीवन संघर्ष में विजय प्राप्त करता है।

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