पितृ पक्ष

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पितृ पक्ष

भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। जिस तिथि को हमारे पूर्वज देवलोक गए थे, उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष में पूर्वजों का आभार व्यक्त करते हुए उनका स्मरण किया जाता है। इन दिनों हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप में हमारे घर में विराजमान होते हैं। भोजन एवं जल ग्रहण करते हैं ।
यह समय हमें समस्त लोक से जोड़ता है। इन दिनों हमें गाय, कुत्ते, कौआ, देवता, चीटियां, ब्राह्मण सभी का सम्मान करना चाहिए ।यह सभी हमारे आदर के पात्र हैं इनकी पूजा से हमारे पूजा, सत्कार से हमारे पूर्वज प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है देवताओं को प्रसन्न करने से पूर्व हमें अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहिए।
हमारी संस्कृति में बुजुर्गों का विशेष सम्मान किया जाता है एवं उनकी मृत्यु के पश्चात उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। कहा गया है जब तक हम उनका तर्पण नहीं करते, उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है। उनकी आत्मा जीवलोक में ही भटकती रहती है ।ऐसा कहा गया है कि पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है। जब हमारे पूर्वज हमें आशीष देते हैं तो हमारी जिंदगी खुशहाल हो जाती है वह हमसे दूर भले ही हैं पर भगवान के पास हैं ।यही वह समय होता है जब हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और यदि वे प्रसन्न होते हैं तो घर को धन-धान्य से पूर्ण कर देते हैं।
इन दिनों में पिंडदान, तर्पण, हवन, अन्नदान मुख्य माने गए हैं।
श्रद्धा पूर्वक किया गया कर्मकांड ही श्राद्ध कहलाता है। अतः पितृपक्ष के ये सोलह दिन हम सबके जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। हमें नियम अनुसार इनका पालन करना चाहिए।

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डॉ० ऋतु नागर
स्वरचित ©
मुंबई, महाराष्ट्र

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