दो साल पहले केरल के एक जो बिशप ने कहा था, वह सामयिक दृष्टि से कुछ बुद्धिजीवियों को अटपटा व अखरने वाला जरूर लगता होगा, लेकिन इसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। केरल की सरकार ने भी उनके मत को समाज विरोधी मानते हुए उनके खिलाफ मुकदमा भी दायक कर दिया था। विशप का मानना यह है कि हर धर्म को अपने समाज व धर्म की बुराइयों पर आत्ममंथन करने की आवश्यकता है।
मात्र इस सोच को लेकर इतनी तीखी प्रतिक्रिया किसी सरकार की हो जाए कि न सिर्फ मुकदमा दर्ज किया जाए बल्कि सरकार नसीहत देने से भी न चूके तो इसे क्या कहेंगे? मानसिक दिवालियापन कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। गौर करने वाला पहलू यह है कि विशप ने क्षद्म धर्मनिर्पेक्षता पर भी सवालियां निशान खड़े किए थे। केरल में फल फूल रहे लव जिहाद और नार्कोटिक्स जिहाद का मुद्दा उठाकर देश भर में चर्चा में में आए साइरो-मालाबार कैथोलिक चर्च के पाला डायोसिस के बिशप जोसेफ कल्लारंगट ने कहा था कि छद्म धर्मनिरपेक्षता भारत को तबाह कर देगी।
उन्होंने कहा वास्तिवक धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा करने की तो आवश्यकता है लेकिन छद्म धर्मनिरपेक्षता बर्बादी की जड़ है।करीब दो साल पहले गांधी जयंती के अवसर पर चर्च के अंग दीपिका दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख में, बिशप ने ‘नार्कोटिक्स और लव जिहाद’ टिप्पणी का उल्लेख किए बिना, उन लोगों पर तगड़ा हमला किया है जो इस बात पर जोर देते हैं कि किसी को उन बुराइयों के बारे में बात नहीं करनी चाहिए जो उनके अपने समुदाय पर गंभीर खतरा बनकर मंडरा रही हैं। पिछले महीने की गई अपनी टिप्पणी के बाद पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ते हुए, बिशप ने परोक्ष रूप से अपनी बात को यह कहते हुए उचित ठहराया कि जो लोग गलतियों के खिलाफ नहीं बोलते हैं वे चुपचाप उन्हें फलने-फूलने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। बिशप जोसेफ का मत था कि समाज की बुराइयों के खिलाफ जारी की गई चेतावनियों को नजरअंदाज करने के बजाय, उनको आगे की घटनाओं को रोकने के लिए उन पर चर्चा और गंभीरता से विचार करना चाहिए। वर्तमान केरल समाज में धर्मनिरपेक्षता के बारे में बात करते हुए, बिशप ने कहा कि आज की चिंता यह है कि क्या हम धर्मनिरपेक्षता का मार्ग चुनकर सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकृत केरल की ओर बढ़ रहे हैं।
बहरहाल, इस विषय को लेकर बहस बहुत पुरानी है, आजादी के पहले से कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आजादी के पहले भी एक तरह की सेक्युलर लाबी थी जो क्रांति के जरिए आजादी हासिल करना चाहती थी, उसके लिए शस्त्र उठाने हो या फिर किसी भी तरह से अंग्रेजी सत्ता को खदेडऩा या परेशान करना हो। दूसरे तरह ही सेक्युलर लाबी थी, जो आज की छद्म धर्मनिर्पेक्षता की नजदीकी रिश्तेदार है, जिसका न देश की सनातन संस्कृति से लेना-देना है और न ही देश की अस्मिता से, उसे बस क्षद्म धर्म निर्पेक्षता का सम्बल है। अगर आज के राजनैतिक दलों की स्थिति से इसकी तुलना करें तो छद्म धर्मनिर्पेक्षता की नजदीकी रिश्तेदार कांग्रेस को पाएंगे, जो किसी भी हद तक एक वर्ग विशेष का तुष्टीकरण कर सत्ता हासिल करना है, न इनका देश की संस्कृति से कोई लेना देना है और न ही इस पार्टी के नेता देश की संस्कृति व मूल धर्म हिंदू के बारे में कुछ जानते ही है, जो कुछ जानते हैं, वह इनकी कपोल कल्पना से अधिक कुछ नहीं है। कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने पिछले दिनों एक वक्तत्व दिया था, जिसमें उन्होंने पंडितों व संतों के प्रति बेहद आपत्तिजनक बातें की थी, इससे ही कांग्रेस की विचारधारा का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कमोवेश यही दशा सो कॉल्ड सेक्युलर समाजवादी पार्टी,जनतादल यू सरीखे राजनैतिक दलों की है। समाजवादी पार्टी के एक कम अक्ल नेता ने हाल ही राम चरितमानस पर ज्ञान बघार कर अपनी बुद्धिहीनता को सिद्ध कर दिया है। रही बात भाजपा की तो उसे सिद्ध करना शेष है कि वह वाकई भारतीय सनातन संस्कृति से जुड़ी है या फिर वह भी छद्म धर्मनिर्पेक्षता की पैरोकार है।