ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से लौकिक व पारलौकिक उत्तम फलों प्राप्ति

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ओंकारेश्वर के दर्शनमात्र से परमधाम की प्राप्ति होती है और संपूर्ण अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं। प्रत्येक मास की एकादशी, अमावस्या और पूर्णिमा पर यहां विशेष पूजा विधि प्रचलित है। वर्ष में एक बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशाल मेला लगता है। शिवपुराण ‘ में ओंकारेश्वर और नर्मदा का माहात्म्य वर्णित है। नर्मदा के दर्शन भी अत्यंत पुण्यदायक माने गए हैं। ओंकारेश्वर मध्य प्रदेश का मनोरम तीर्थस्थल है। यहाँ का शिव मन्दिर बहुत पुराना है । ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा अनंत है, वह सहज भी भक्त पर प्रसन्न हो जाते हैं।

हर मनुष्य को इस क्षेत्र की यात्रा आवश्य करनी चाहिए। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से लौकिक व पारलौकिक दोनों तरह के उत्तम फलों प्राप्ति होती है। भगवान शिव की कृपा से अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष के सभी साधन भक्त के सहज और सुलभ हो जाते हैं। अंतत: जीव शिव लोक को प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करता है। भगवान शंकर भक्त पर अकारण ही कृपा करते है। भारत के तीर्थस्थानों की परपंरा में इसका भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि शैवदर्शन की आधारभूमि पर इसकी रचना हुई है, किंतु यह दूसरे मतावलंबियों के हृदय में भी पूज्य भावना जाग्रत करता रहा है। देश के विभिन्न भागों से आने वाले यात्रियों का यहां तांता लगा रहना, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। ‘ कोटिरुद्र संहिता के अनुसार ओंकारतीर्थ में ज्योतिलिंग परमेश्वर हैं। ओंकारतीर्थ में होने के कारण इनका ओंकारेश्वर नाम पड़ा। ओंकारेश्वर लिंग प्राकृतिक रूप में है। यह गढ़ा हुआ लिंग नहीं है। इसके चारों ओर पानी भरा रहता है। ओंकारेश्वर – लिंग मंदिर के गुंबद के नीचे नहीं है। शिखर पर महाकालेश्वर की मूर्ति है।

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ओंकारेश्वर मंदिर कथा

मुनिश्रेष्ठ नारद जी एक बार गिरिराज विंध्य पर पहुंच गए, जहां विंध्य ने उनका स्वागत – सत्कार किया और कहा उनके पास किसी वस्तु की कमी नहीं है। अहंकारनाशक श्री नारदजी ने विंध्य पर्वत से कहा तुम्हारे पास सुमेरु पर्वत जितनी ऊंची चोटियां नहीं हैं और ना ही तुम उन तक पहुंच सकते हो। यह कह कर नारद जी चले गए। सच्चाई जानकर विंध्य पर्वत को बड़ा पछतावा हुआ और वह भगवान शिव की सेवा में चला गया। एक स्थान पर जहां वर्तमान ओंकार विद्यमान हैं, मिट्टी का शिवलिंग बनाकर छ माह तक घनघोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन देकर वर मांगने को कहा। विध्य ने कहा- देवेश्वर महेश यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो भक्तवत्सल, हमको सिद्धि करने वाली वह अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें। भगवान शिव ने उन्हें यह वर प्रदान किया। उसी समय जब भगवान शिवभक्त विध्य को वर दे रहे थे, कुछ देवगण तथा शुद्धबुद्धि और निर्मल चित्त वाले ऋषिगण भी वहां आ गए। उन्होंने शिव के पूजा की और कहा कि प्रभो आप हमेशा के लिए यहाँ स्थिर होकर निवास करें। परमेश्वर शिव ने उनकी बात मानी और ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया जिसमें एक ओंकार कहलाया तथा दूसरा परमेश्वर अमलेश्वर कहलाया। यह क्षेत्र राजा मांधाता के नाम पर मांधाता छेत्र कहलाता है। स्कंदपुराण ‘ के रेवाखंड में विस्तार इसका वर्णन प्राप्त है। वरुणयज्ञ करने वाले राजा यौवनार ने भूल से अभिमंत्रित जल पी लिया था। कहा जाता है कि उस पुंसवन जल को पीने से राजा ने पुरुष होकर भी पुत्र प्रसव किया। उसका नाम पड़ा मांधाता। तेजस्वी सुरराज इंद्र ने अपनी तर्जनी पिलाकर पाला। वर्चस्वशाली मांधाता इंद्र के आधे सिंहासन के अधिकारी बन गए थे। ईर्ष्यावश एक बार इंद्र ने वर्षा बंद कर दी। तप – तेज से दीप्त मांधाता ने यहीं वैदूर्य पर्वत पर तप किया। तप – बल से पूरे बारह वर्ष वर्षा कराकर इंद्र का मान भंग किया। तपस्या से आशुतोष भगवान को प्रसन्न कर उनसे सब देवताओं समेत यहीं विराजमान होने की प्रार्थना की। तब से भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में इस क्षेत्र में नित्य विद्यमान हैं। नर्मदा तट पर स्थित इस क्षेत्र का उल्लेख ‘ हरिवंश पुराण में माहिष्मती के नाम से हुवा है|  ऋक्षवत पर्वतों के मध्य इस क्षेत्र को मांधाता के पुत्र मुचुकुंद ने बसाया था। ओंकार पर्वत के दोनों आरे रेवा और कावेरी की जलधाराएं उसे रमणीक बनाती है। नाव वाले संगम का दर्शन कराने तथा नौकाविहार के लिए भी यात्रियों को ले जाते हैं। स्वयं महर्षि च्यवन ने ओंकारेश्वर का दर्शन कर अपने को धन्य समझा था।

ओंकारेश्वर के दर्शनीय स्थल

यह प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत रमणीक स्थान है। यहां नर्मदा नदी दो पहाड़ियों के बीच में से निकलती हुई प्रतीत होती है। किनारे की तांबे के रंग की चट्टानें इसकी शोभा को और भी अधिक बढ़ा देती हैं। जब यात्री नाव में बैठकर मंदिर की ओर जाने लगते हैं, तो लगता है कि सामने टेकरी पर स्थित मंदिर यात्रियों को अपने आकर्षण से खींच रहा है। मंदिर का शिखर श्वेत रंग का लंबा – सा आकार लिए हुए भारतीय संस्कृति के गर्वीले योद्धा की भांति खड़ा है यहां पहुंचने पर सर्वप्रथम एक छोटा नगर आता है जिसे विष्णुपुरी कहते हैं। इसी स्थान से नाव द्वारा मांधाता पर्वत पर पहुंचते हैं, जहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। विष्णुपुरी में भी एक ज्योतिर्लिंग का स्वरूप स्थित है, जिसे ओंकारेश्वर जैसी मान्यता प्राप्त है।

  1. अमलेश्वर या परमेश्वर ज्योतिर्लिंग : यह शिवलिंग विष्णुपुरी में अवस्थित है और ओंकारेश्वर का एक दूसरा स्वरूप माना जाता है। यात्री इसके दर्शन करने के पश्चात् ही ओंकारेश्वर मंदिर प्रस्थान करते हैं। अमलेश्वर लिंग मंदिर के पास एक विष्णु भगवान का दर्शनीय मंदिर है। विष्णुपुरी में अनेक छोटे – बड़े मंदिर स्थित हैं, जैसे गणपति जी, कार्तिक जी, मारुति जी, अघोरेश्वर लिंग, ब्रह्मकेश्वर लिंग, काशी विश्वनाथ, गंगेश्वर लिंग, कपिल जी, वरुण जी वरुणकेश्वर, नीलकंठेश्वर आदि। यहीं पास में मार्कडेय आश्रम भी है, जहां पर स्थित मार्कंडेय शिला के दर्शन प्राप्त होते हैं|
  2. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग : विष्णुपुरी से नाव द्वारा मांधाता पर्वत के किनारे नर्मदा नदी के घाट पर पहुंचते हैं। इन घाटों को कोटितीर्थ या चक्रतीर्थ कहा जाता है। इसके ऊपर सीढ़ियां चढ़कर मुख्य मंदिर तक पहुंचा जाता है। मुख्य मंदिर तीन मंजिल का है, जिसमें दूसरे तल पर महाकालेश्वर लिंग मूर्ति है और तीसरे तल पर वैद्यनाथ लिंग की मूर्ति अवस्थित है। नीचे की मंजिल में कुछ छोटे – बड़े मंडप या हाल हैं और एक किनारे पर छोटे गुफानुमा मार्ग द्वारा ओंकारेश्वर लिंग तक पहुंचते हैं। ये शिवलिंग शिखर के नीचे स्थित न होकर कुछ हट कर अवस्थित हैं। यह ज्योतिर्लिंग एक छोटे चौकोर बने स्थल पर स्थित है, जहां पर शिवलिंग के चारों ओर जलभरा रहता है। इसके पास ही पार्वतीजी की मूर्ति स्थित है। यह स्वयंभू शिवलिंग अनगढ़ है। मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते समय और परिक्रमा करते समय अनेक छोटे – छोटे मंदिर या मूर्तियां स्थापित है | इसमें मुख्य है पंचमुखी गणेशजी इसके अतिरिक्त अविमुक्तेश्वर, ज्वालेश्वर , केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ आदि के मंदिर भी यहां अवस्थित हैं। मांधाता दीप के दोनों ओर विशिष्ट स्थान हैं, जिनका वर्णन नीचे दिया जा रहा है

( i ) विभक्त स्थल : जहां से नर्मदा दो धाराओं में विभाजित होती है, वहां पर चौबीस अवतार और पशुपतिनाथ का मंदिर है। यहां पर धरती पर लेटी हुई रावण की एक मूर्ति है। इसके आगे कुबेरेश्वर मंदिर है। वहां से आगे च्यवन मुनि का आश्रम है और आगे सप्तमातृकाओं के मंदिर हैं। इनमें वाराही, चामुंडा, ब्रह्माणी, वैष्णवी, इंद्राणी, कौमारी तथा माहेश्वरी की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त दोनों किनारों पर अनेक मंदिर स्थित हैं।

( ii ) संगम स्थल : नर्मदा की दोनों धाराए कावेरी व नर्मदा दोनों मांधाता दीप को घेरती हुई एक स्थान पर मिल जाती हैं, जिसे संगम स्थल कहते हैं। यहा राजा मुचुकुद का एक किला भी है। किले से आगे हिडिंबा संगमतीर्थ मिलता है। रास्ते में गौरी – सोमनाथ की विशाल लिंगमूर्ति का दर्शन मिलता है। पास में मामा – भांजा का तीन मंजिल का भव्य मंदिर है तथा प्रत्येक में शिवलिंग स्थापित है। यहां श्री नंदी, श्री गणेश तथा हनुमानजी को प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं। इस मंदिर के आगे अन्नपूर्णा. अष्टभुजा, महिषासुरमर्दिनी, सीता रसोई तथा आनंद पर्वत स्थित हैं।

आस – पास के दर्शनीय स्थल

यह स्थान मंदिरों से भरा हुआ है और ये नर्मदा के तट पर जगह – जगह निर्मित हैं। इनमें कुछ मुख्य निम्न हैं कोटेश्वर, चरुकेश्वर, विमलेश्वर, गंगेश्वर व पिप्लेश्वर आदि। इसके अतिरिक्त मंडलेश्वर स्थान भी कुछ दूर पर स्थित है।

यात्रा- ठहरने के स्थान

ओंकारेश्वर रोड स्टेशन पर ठहरने की व्यवस्था है तथा स्टेशन के पास कई धर्मशालाएं भी हैं। अनेक गेस्टहाउस भी हैं, जहां ठहरा जा सकता है।इंदौर तक यह स्थल वायु मार्ग से जुड़ा है। उज्जैन से खंडवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन पर उतर कर लगभग 10 किलोमीटर के फासले पर ओंकारेश्वर है। स्टेशन का एक और नाम ओंकारेश्वर रोड भी है। यहां से ओंकारेश्वर के लिए लगातार बसें उपलब्ध हैं। मार्ग सघन वृक्षावलियों वाला एवं रमणीय है तथा बहुत ठंडा भी रहता है। इसके किनारे पर दो छोटी – छोटी पहाड़ियां हैं, जिन्हें विष्णुपुरी तथा ब्रह्मपुरी कहा जाता है। आस – पास मंदिर भी बने हुए हैं । इंदौर और रतलाम से भी गाड़ियां उपलब्ध हैं। ओंकारेश्वर रोड स्टेशन पर यात्रियों के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

अर्थ-धर्म-काम- मोक्ष सहज मिलता है श्रीओंकारेश्वर महादेव के भक्त को

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Durga Shaptshati

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