लखनऊ का पौराणिक सूर्य मंदिर- मिट जाते हैं यहां दर्शन मात्र से घरेलू कलेश

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भगवान सूर्य के देश में गिने-चुने मंदिर हैं, उडि़सा के कोणार्क व उत्तराखंड के कटारमल मंदिर के अलावा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में समकालीन पौराणिक सूर्य मंदिर है, मंदिर यहां डालीगंज पुल के निकट स्थित है। यहां दर्शन करने पहुंचते ही दिव्यता की अनुभूति होने लगती है। प्राकृतिक परिदृष्य के अनुरूप सूर्य मंदिर वृक्षों से आच्छादित मनोरम छठा के साथ साधकों को सूर्य देव की उपासना के लिए प्रेरित करता है।

यहां मंदिर में सूर्य की प्रतिमा के बगल में मनोकामनापूर्ण शनिदेव महाराज विराजित है, साथ ही विशाल बरगद में पीपल के वृक्ष का मिलन दिव्यता की अनुभूति कराने वाला है। यहां सूर्य कूंड है, जो सदैव जलमग्र रहता है। इस पौराणिक मंदिर को विराट स्वरूप देने के लिए प्राचीन सूर्य मठ- मंदिर के महंत 3008 ब्रह्मलीन महंत जंगम गिरी महाराज आजीवन प्रयत्नशील रहे, स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके प्रयन्त से यहां का कायाकल्य भी हुआ है लेकिन जो भव्यता वे प्रदान करना चाहते थे, वह भव्यता नहीं दिला सके। उनका यह स्वप्र उनके जीवन में पूरा नहीं हो सका। उनके अनुयायियों के अनुसार सूर्य मंदिर के प्रचीर को इक्यावन फीट ऊॅचा कराना चाहते थे।

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उनके इस स्वप्र को पूरा करने का बीड़ा मंदिर के महंत कुरुक्षेत्र गिरी जी महाराज ने अब उठाया है। इस प्राचीन मंदिर में दोनों समय की आरती का प्रावधान लम्बे समय से चला आ रहा है। मुख्य रूप से यहां संध्या के समय सूर्य देव की उपासन के लिए काफी संख्या में भक्त उमड़ते हैं। प्रतिमाह में यहां शुक्ल सप्तमी को असंख्य दीप जलाकर सूर्योत्सव मनाने का विधान है। यहां इस मौके पर 21 प्रकार के व्यंजन व अन्नपूर्णा भोग भी अर्पित किया जाता है। यहां सूर्य देव के दर्शन के लिए जब भक्त उमड़ते है तो इसका भू-क्षेत्र काफी कम प्रतीत होता है, इस कमी का एहसास स्थानीय व बाहर से दर्शन करने आए पर्यटकों व दर्शनार्थियों को भी होता है, इसी वजह से मंदिर के विस्तार की मांग समय- समय पर उठती रही है।

यहां जो प्राचीन तालाब है, पूर्व काल में उसमें एक दिन अचानक प्राकृतिक जलस्रोत होने का रहस्य सबसे सामने आया था। प्राकृतिक जलस्रोत की रहस्यमय उपस्थिति सीधे तौर पर सूर्य मंदिर से जुड़ी थी, शायद यही वजह है कि इस तालाब का जलस्तर कभी समाप्त नहीं होता है। जलस्रोत की जानकारी प्राप्त करने के लिए तमाम प्रयास किए गए लेकिन इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका। तभी से तालाब सूर्य कुंड के नाम से विख्यात है। आम जन की आस्था का केंद्र भी बना हुआ है। स्थानीय मान्यता के अनुसार मंदिर के चारों ओर क्रमश: प्रसिद्ध मनकामेश्वर मंदिर, शनिदेव मंदिर, चौक स्थित महाकाली मंदिर व वर्तमान केसरबाग स्थित माता दुर्गा का मंदिर के स्थापित होने के कारण केंद्र में विराजित सूर्य मंदिर में सूर्य नारायण की स्थापना पुरातनकाल की ओर इंगित करती है।

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सूर्य देव मंदिर में रुद्रावतार दक्षिणमुखी बजरंगबली अपनी दिव्यता के साथ पंचवटी वृक्ष के नीचे स्थापित हैं। यहां दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। मंदिर की दिव्यता यहां पीपल के पेड़ के साथ गोलाकार चबूतरे में स्थापित पीपलेश्वर महादेव से बढ़ जाती है, जो प्रसन्न होकर भक्तों की सर्व कामनाओं की पूर्ति करते हैं। पीपलेश्वर महादेव में हवन व अनुष्ठान जन अभिरूचियों के अनुरूप सम्पन्न होते रहते हैं। सूर्य कुंड के चारों तरफ बनी सीढि़यों व लिखी गई इबारतों के अलावा चाणक्य, मीराबाई व अन्य बनावट प्राचीनता और नवीनता के अद्भुत संयोग को दर्शाती है। इसके अलावा उपवन में विभिन्न पुष्प वाटिकाओं के साथ ही सौर घड़ी लोगों का आकर्षण बढ़ाने में सहायक हो रही है। यहां सौर घड़ी सूर्य की किरणों से समय बताती है।

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मान्यता है कि मनुष्य बेशक असाध्य रोग से ग्रसित हो, लेकिन यदि सूर्य देव की अराधना सच्चे मन से करे तो वह सूर्य साधना सम्पन्न करके इससे मुक्ति पा सकता है। सूर्य भगवान के 12 नाम हैं, जो कि इस प्रकार हैं- आदित्य, भास्कर, सूर्य, अर्क, भानु दिवाकर, सुवर्णरेता, मित्र, पूजा, त्वष्टा, स्ययंयू व तिसिराश। इन नामों का जो पाठ करता है, उसे परमगति प्राप्त होती है। मंदिर के महंत कुरुक्षेत्र गिरी जी महाराज ने बताया कि हर माह की शुक्ल सप्तमी को सूर्य मंदिर में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है, यहां इस दिन सूर्य भगवान का विशेष श्रृंगार भी किया जाता है।

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उन्होंने दावा किया कि यह विश्व का ऐसा इकलौता मंदिर है, जहां भगवान सूर्य के साथ शनिदेव महाराज विराजमान है, मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से घरेलू विवाद समाप्त हो जाते है और समृद्धि प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि यहां शुक्ल सप्तमी को यदि कोई श्रृंगार व पूजन का इच्छुक होता है, तो वह भी उसके नाम से कराया जाता है।

– भृगु नागर

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