इस आसन को करते समय सबसे पहले अपने आसन पर घुटनों के बल बैठ जाएं। फिर दोनों हाथ हथ्ोली के बल पर भूमि पर रख्ों और कोहनियां अपनी तोंद यानी तोंदी के दोनों ओर आसपास सटी हुई लगाएं। हाथों के अंगूठे एक समान रखने चाहिए। फिर कोहनियों पर अपने शरीर का पूरा भार सम्भाल कर धीरे-धीरे पहले अपने पैरों को पीछे की ओर सीधा लम्बा करके ऊपर की उठाये और साथ ही छाती को भी ऊपर की ओर उठाएं, अर्थात अपने सारे शरीर के भार को कोहनियों पर रखकर शरीर को सीधा करें। इस प्रकार आपके शरीर की आकृत मयूर जैसी बन जाएगी, इसलिए इस आसन का नाम मयूर आसन रखा गया है।
जानिये, मयूर आसन के लाभ
मयूर आसन के अनेक लाभ होते हैं। जिस पर मयूर यानी मोर जहरीले और विष्ौले सांपों को खा जाता है, मयूर पर विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि इसी प्रकार मनुष्य भी इस आसन का पूर्ण अभ्यास करे तो उसके ऊपर विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता है।
जठराग्नि का प्रदीप्त होना अर्थात भूख लगना अनेक लाभ होते हैं। उदर सम्बन्धित रोगों के लिए यह आसन बहुत ही उत्तम माना जाता है। कब्ज आदि के लिए भी लाभकारी होता है।
यह आसन शरीर में ऊर्जा का प्रभाव करता है और शरीर की प्रतिरोधक झमता बढ़ती है, जिसका असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।
प्रस्तुति
स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर
सेवानिवृत्त तहसीलदार/ विशेष मजिस्ट्रेट, हरदोई
नोट:स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर के पिता स्वर्गीय पंडित भीमसेन नागर हाफिजाबाद जिला गुजरावाला पाकिस्तान में प्रख्यात वैद्य थे।
यह भी पढ़ें – वैैष्णो देवी दरबार की तीन पिंडियों का रहस्य