त्र्यम्बकेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग: उस समय यहां स्नान करने से समस्त तीर्थ यात्राओं का पुण्यफल

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त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग पवित्र गोदावरी नदी के तट पर अवस्थित है। ज्योतिर्लिंगों में इसका आठवां स्थान है। यहां के निकटवर्ती ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से पवित्र सलिला गोदावरी नदी निकलती है। जो महत्त्व उत्तर – भारत में गंगा का है, दक्षिण भारत में वही गोदावरी का है। जैसे गंगावतरण का श्रेय तपस्वी भगीरथ को है, वैसे ही गोदावरी का प्रवाह ऋषिश्रेष्ठ गौतम की घोर तपस्या का फल है, जो उन्हें भगवान आशुतोष से प्राप्त हुआ था। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में है। त्र्यम्बक नामक ज्योतिर्लिंग इस लोक में सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला तथा परलोक को सुधारने वाला एवं मोक्ष प्रदान करने वाला है। बृहस्पति हर बारह वर्ष में एक बार सिंह राशि पर पहुंचते हैं, तो कुंभ लगता है।

कुंभ के समय सभी तीर्थ यहां उपस्थित होते हैं, अत : उस समय यहां स्नान करने से समस्त तीर्थ यात्राओं का पुण्यफल मिलता है। सभी तीर्थ जब तक गौतमी के किनारे रहते हैं, अपने स्थल में उनका महत्त्व नहीं होता है। गोदावरी में लगने वाले कुंभ के समय बाकी तीर्थ वर्जित हैं।

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त्र्यम्बकेश्वर की धार्मिक पृष्ठभूमि

ब्रह्मगिरि पर ऋषि गौतम तपस्या करते थे और उन्हें अनेक सिद्धियां प्राप्त थीं। उनसे ईर्ष्यावश कुछ ऋषियों ने उन पर गोहत्या का दोष लगा दिया और प्रायश्चित्त में वहां गंगाजी को लाने को कहा। गौतम ऋषि ने एक करोड़ शिवलिंग की पूजा की, तो भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए। वर में गौतम ने गंगाजी की मांग की तो गंगा तैयार नहीं हुईं। उनका कहना था कि शिव यदि प्रतिष्ठित हों तो वह रहेंगी। शिव त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हुए और गंगा ‘ गौतमी ‘ के रूप में उतरीं। उसी समय सभी तीर्थ क्षेत्र, देवता, पुष्कर आदि सरोवर, समस्त नदियां, श्रीविष्णु आदि देवता वहां उपस्थित हुए और गंगा का अभिषेक किया। तभी से गुरु जब सिंह राशि में रहते हैं, सभी तीर्थ गौतमी या गोदावरी के किनारे उपस्थित होते हैं। अत : इस स्थान की यात्रा उस समय करने से सब तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है।

त्र्यम्बकेश्वर के तीर्थस्थल का विवरण

मंदिर एक बहुत बड़े प्रांगण में स्थित है। सर्वप्रथम एक बड़े द्वार से अंदर प्रवेश करते हैं, इसके पश्चात् एक सुंदर पत्थरों से बना आंगन दिखता है और उसके मध्य में एक भव्य विशाल नक्काशीयुक्त मंदिर दिखलाई पड़ता है, जो मुख्य मंदिर है और यात्री इसे देखकर ही मोहित हो जाते हैं। प्रभु की इस विशाल रचना के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। इस मंदिर का शिखर लगभग अस्सी फीट ऊंचा है और उसके पूर्व की ओर एक विशाल तीन द्वार वाला मंडप है, जिस पर भी भव्य कारीगरी की गई है। इसके एक द्वार पर सिद्धि विनायक और नंदिकेश्वर की मूर्तियां स्थापित हैं। इस द्वार से अंदर जाने पर एक बड़ा हाल या मंडप दिखता है। जहां यात्री पंडितों द्वारा पूजा कराते हुए दिखलाई पड़ते हैं। अन्य यात्रीगण अंदर की भव्य आभा का दर्शन करते हुए शिवलिंग के मुख्य द्वार पर दर्शन हेतु एकत्र हो जाते हैं।

लिंग ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के प्रतीक माने जाते हैं

यहां पर शिवलिंग एक गोलाकार गड्ढे में तीन स्थानों पर छोटे – छोटे रूप में दृष्टिगोचर होते है। इस गड्ढे में निरंतर जल भरा रहता है। अतः पुजारी जब उसे निकालते हैं, तभी तीनों शिवलिगों के दर्शन भलीभांति होते हैं। ये तीनों लिंग ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के प्रतीक माने जाते हैं। पूजा के पश्चात् इसके ऊपर चांदी का पंचमुखी आकार रख दिया जाता है, अत : फिर इनके दर्शन नहीं हो पाते हैं। तीनों शिवलिंगों के दर्शन करके यात्रीगण अपने आप को धन्य मानते शिव भगवान से अपनी इच्छा मन ही मन मांगते हुए बाहर प्रस्थान कर जाते हैं। मंदिर के पीछे एक पवित्र कुंड स्थित है, जिसे अमृत कुंड कहा जाता है।

त्र्यम्बकेश्वर के अन्य दर्शनीय स्थल

कुशावर्त : त्र्यम्बकेश्वर मंदिर से थोड़ी दूर पर ही एक सरोवर है। इसमें नीचे से गोदावरी का जल आता है। इस सरावर मस्नान नहीं किया जाता। उसका जल लेकर बाहर स्नान किया जाता है। यहां स्नान करके तब देवदर्शन किया जाता है|  यात्री कुशावर्त की परिक्रमा भी करते हैं|

कुशावर्त से त्रयंबकेश्वर के दर्शन  के लिए जाते समय मार्ग में नीलगंगा संगम पर संगमेश्वर, कनकेश्वर, कपोतेश्वर, विसंध्या देवी और भुवनेश्वर के दर्शन होते हैं।

त्र्यम्बकेश्वर के तीन पर्वत : त्र्यम्बकेश्वर के समीप तीन पर्वत पवित्र माने जाते हैं -1 . ब्रह्मगिरि , 2. नीलगिरि और 3. गंगाद्वार। इनमें से अधिकांश यात्री केवल गंगाद्वार जाते हैं।

  • ब्रह्मगिरिः इस पर्वत पर त्र्यम्बकेश्वर का किला है। यह किला आजकल खंडहर की दशा में है। पर्वत पर जाने के लिए 500 सीढ़ियां बनी हुई हैं। यहां एक जलकुंड है और उसी के पास त्र्यम्बकेश्वर मंदिर है। निकट ही गोदावरी का मूल उद्गम है। ब्रह्मगिरि को शिवस्वरूप माना जाता है। कहते हैं कि ब्रह्मा के शाप से भगवान् शंकर यहां पर्वतरूप में स्थित हैं।
  • नीलगिरिः : इस पर्वत पर 250 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। यह ब्रह्मगिरि की वाम गोद है। यहां नीलांबिका देवी का मंदिर है। नवरात्र के दिनों में यहां मेला लगता है यहीं पास में गुरु दत्तात्रेय का मंदिर है। वहीं नीलकंठेश्वर मंदिर भी है। इसे सिद्ध तीर्थ कहा जाता है।
  • गंगाद्वार : इस पर्वत को कौलगिरि भी कहते हैं। इस पर 750 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। ऊपर गंगा ( गोदावरी ) का मंदिर है। मूर्ति के चरणों के समीप धीरे – धीरे बूंद – बूंद जल निकलता है। यह जल समीप के एक कुंड में एकत्र होता है। यह पंचतीर्थों में एक तीर्थ है। यहां एक बावड़ी और गोशाला है। गंगाद्वार से लगभग आधा मार्ग उतरने पर ‘ रामकुंड ‘ और ‘ लक्ष्मणकुंड ‘ मिलते हैं। गंगाद्वार के पास ही उत्तर की ओर कोलांबिका देवी का मंदिर है। मार्ग में सीढ़ियों पर आधे से कुछ अधिक ऊपर जाकर दाहिनी ओर एक मार्ग जाता है। वहां अनोपान शिला है। यह शिला गोरखनाथजी के नाथ संप्रदाय में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इस पर अनेक सिद्धों ने तपस्या की है। यह गोरखनाथ संप्रदाय का तीर्थस्थान है।

चक्रतीर्थ : यह स्थान त्र्यम्बक से लगभग 10 किलोमीटर दूर जंगल में है। कहा जाता है कि कुशावर्त से गुप्त हुई गोदावरी यहां आकर प्रकट हुई है। गोदावरी का प्रत्यक्ष उद्गम यहीं है। यहां अत्यंत गहरा कुंड है और उससे निरंतर जलधारा बाहर निकलती है। यही धारा गोदावरी की है, जो नासिक आई है।

अन्य मंदिरः कुशावर्त सरोवर के पास ही गंगा मंदिर है। उनके निकट श्रीकृष्ण मंदिर है। बस्ती में श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर, श्रीराम मंदिर और परशुराम मंदिर है। कुशावर्त के पास केदारेश्वर, इंद्रालय के पास इंद्रेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, गायत्री मंदिर और त्रिसंध्येश्वर, कांचनतीर्थ के पास कांचनेश्वर तथा ज्वरेश्वर, कुशावर्त के पीछे बल्लालेश्वर, गौतमालय के पास गौतमेश्वर, रामेश्वर, महादेवी के पास मुकुंदेश्वर, काशी – विश्वेश्वर, भुवनेश्वरी, त्रिभुवनेश्वर आदि अनेक छोटे – बड़े मंदिर हैं।

यात्रा मार्ग

यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में है। मध्य रेलवे की जो लाइन दिल्ली से मुंबई को गई है, उस पर नासिक रोड नामक एक स्टेशन है। वहां से दस – ग्यारह किलोमीटर दूरी पर नासिक – पंचवटी है, जहां लक्ष्मण ने रावण की भगिनी शूर्पणखा की नाक काटी थी। जहां सीताहरण हुआ था। नासिक रोड से नासिक – पंचवटी तक बसें चलती हैं। वहां से 30 किलोमीटर दूर त्र्यम्बकेश्वर का स्थान है। मार्ग बड़ा रमणीक है। पूना तक वायु मार्ग से आया जा सकता है।

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