कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने की इच्छा हो तो आपको इस पश्चिमोत्तानासन को नियमित रूप से करना चाहिए। इससे आपको सहायता प्राप्त होगी।
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यह आपके शरीर की दुर्बलता को दूर कर कुण्डलिनी शक्ति धारण करने के अनुरूप बनाने में मदद करेगा।
पश्चिमोत्तानासन करने की विधि-
भूमि पर बैठक कर अपने पैरों को सीधा फैलायें, बाद में दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ लें, बाद में नासिका के द्बारा वायु खींचकर दोनों पैरों को तानें, फिर धीरे-धीरे नासिका से वायु से निकालकर अपने सिर को दोनों घुटनों के बीच में रखें। इस महामुद्रा व जानुसिरासन भी कहते हैं।
प्रारम्भिक अवस्था में इस का धीरे-धीरे अभ्यास करना चाहिए। जिनका पेट निकला हो, अथवा हड्डियां कड़ी हों तो उन्हें प्रारम्भ में केवल अंगूठा पकड़ने का अभ्यास ही करना चाहिए।
पश्चिमोत्तानासन के लाभ-
पांव के स्नायुओं यानी हड्डियों व नसों पर अधिक खिंचाव आने से उनकी नाड़िया शुद्ध हो जाती है तथा पेट व कमर के नीचे की नस, नाड़ियों को शुद्ध करता है। पेट की चर्बी कम करता है। धरण टलने को रोकता है और अजीर्ण को दूर करता है। इसके अधिक अभ्यास से कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने में अत्यधिक सहायता मिलती है।
प्रस्तुति – स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर (सेवानिवृत्त तहसीलदार/ विशेष मजिस्ट्रेट, हरदोई)
नोट: स्वर्गीय पंडित सुदर्शन कुमार नागर के पिता स्वर्गीय पंडित भीमसेन नागर हाफिजाबाद जिला गुजरावाला पाकिस्तान में प्रख्यात वैद्य थे।
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