श्रीरामेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग: पूजा – अर्चना से होता है मनुष्य भवसागर से पार

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रामेश्वर स्थान दक्षिण भारत के समुद्र तट पर अवस्थित है। यहां महासागर और बंगाल की खाड़ी का संगम होता है। यहाँ पहुचने के लिए त्रिवेंद्रम सबसे समीपस्थ हवाई अड्डा है, इसके अतिरिक्त चेन्नई हवाई अड्डा का भी उपयोग किया जा सकता है। रेल द्वारा चेन्नई से सीधा मार्ग है जो मंडपम् से होता हुआ पंबन और धनुषकोटि तक जाता है।

कन्याकुमारी की ओर से मंडपम् होकर सड़क मार्ग द्वारा रामेश्वरम् पहुंचा जा सकता है। चेन्नई व त्रिवेंद्रम से पर्यटक बसें यात्रियों को लेकर यहां पहुंचती रहती हैं। श्री रामेश्वरम् का मंदिर एक हजार फीट लंबा, छ : सौ पचास फीट चौड़ा और एक सौ पचीस फीट ऊंचा है। रामेश्वरम् मंदिर एक प्रमुख तीर्थ स्थान के साथ – साथ भारतीय शिल्पकला का एक उत्कृष्ट नमूना भी पेश करता है। पुराणों में गंधमादन पर्वत का वर्णन है। यहीं पर राम ने रामेश्वरम् शिवलिंग की स्थापना की थी।

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बारह ज्योतिलिंगों में इस तीर्थ की गणना की जाती है। जो इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसके.समूल पाप नष्ट हो जाते हैं। जो इस पर गंगाजल चढ़ाते हैं, उनको संसार से मुक्ति हो जाती है। इसके दर्शन से ब्रह्महत्या जैसे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसकी पूजा – अर्चना से मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।

श्री रामेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग की धार्मिक पृष्ठभूमि

भगवान राम जब रावण का लंका मे वध करक वापस अपनी धरती पर पहुंचे तो विद्वान व रावण के वध के पाप से मुक्ति हेतु राम ने एक शिवलिंग की स्थापन की, जो बालू द्वारा निर्मित था। इसी की पूजा – अर्चन करके उन्हें पाप से मुक्ति मिली। उस शिवलिंग को ही ज्योतिलिंग कहा गया।

श्री रामेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग का विवरण

लगभग 20 बीघे भूमि के विस्तार में श्री रामेश्वर मंदिर है। मंदिर के चारों ओर ऊंचा परकोटा है तथा पूर्व के गोपुर में 10 मंजिलें हैं, जबकि पश्चिम गोपुर में सात मॉजलें हैं। मंदिर के चारों ओर पत्थर के कलापूर्ण स्तंभों से बना हुआ भव्य और अद्वितीय परिक्रमा पथ है। इस पथ में ग्यारह सौ स्तंभ हैं और ये संसार का सबसे बड़ परिक्रमा पथ माना जाता है। इस मंदिर का शिवलिंग राम द्वारा निर्मित है, अत: वह सीधा पृथ्वी से नहीं निकला है।

राम पहले एक डमरू के समान आधार बनाया और उसके ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया। इस प्रकार का शिवलिंग केवल यहीं पर है, अन्य किसी मंदिर में नहीं है। मंदिर में बालू का एक मूल शिवलिंग है, जबकि दूसरा स्फटिक का शिवलिंग है। मंदिर में दुग्धाभिषेक प्रातः पांच बजे होता है। यात्री प्राय: साढ़े चार बजे से ही लाइन लगा लेते हैं। कुछ धन व्यय करके वी.आई.पी. लाइन में भी लगा जा सकता है।

इसमें कुल पचास दर्शनार्थी ही सम्मिलित किए जाते हैं। प्रातः एक धवल गाय को मंदिर में लाया जाता है और उसका दूध दुहकर सीधे ही अभिषेक हेतु प्रयुक्त होता है। दुग्धाभिषेक केवल स्फटिक के शिवलिंग का होता है। इस दुग्धाभिषेक के दर्शन करके और प्रसाद प्राप्त करके सभी तीर्थयात्री धन्य हो जाते हैं और वे अपनी यात्रा सफल मानते हैं।

रामेश्वरम् मंदिर प्रांगण के दर्शनीय स्थल

पूजा- मंदिर प्रांगण के अंदर इतने तीर्थ हैं कि सबका वर्णन संभव नहीं है कुछ मुख्य स्थलों का वर्णन निम्न है :

  • भव्य नंदी मूर्ति : मंदिर के समक्ष एक स्वर्ण मंडित स्तंभ है और उसी के निकट 13 फुट ऊंची 8 फुट लंबी व 9 फुट चौड़ी श्वेत वर्ण नंदी की मूर्ति
  • हनुमान मूर्ति : नंदी के बाईं ओर के सभागृह
  • मंदिर आंगन : मंदिर के दक्षिण में फाटक युक्त विस्तत आँगन है, जहां पर स्थित कूप के जल से यात्री स्नान करते हैं। इसके पास ही गणेशजी व सुब्रह्मण्यम के छोटे मंदिर स्थित हैं।
  • हनुमदीश्वर मंदिर : रामेश्वर मंदिर के पास ही श्री विश्वनाथ या हनुमदीश्वर मंदिर स्थापित है। यह शिवलिंग हनुमान द्वारा लाया गया था।
  • गंधमादनेश्वर मंदिर : मुख्य मंदिर के पास ही यह प्राचीन मंदिर है, जो महर्षि अगस्त्य द्वारा स्थापित किया गया है।
  • अत्रपूर्वम मंदिर : इसमें स्वयंभू लिंग है, जिसे अनादिसिद्ध या अन्नपूर्वम् कहा जाता है। यह भी अगस्त्य जी द्वारा पूजित स्थान है। अत : इसे अगस्त्येश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
  • परिक्रमा पथ के मंदिर व अन्य स्थल : इस मंदिर का परिक्रमा पथ इतना विशाल और बड़ा है कि भारत के अन्य किसी मंदिर में ऐसा परिक्रमा पथ नहीं है । इसी पथ पर अनेक मंदिर, मूर्तियां, बावड़ी तथा अनेक पवित्र कूप स्थित हैं। इनका वर्णन करना कठिन है, पर यात्री की जानकारी हेतु प्रयास किया जा रहा है।
  • संपूर्ण तीर्थ : मंदिर के भीतर व बाहर कुल मिलाकर 64 तीर्थ हैं, पर उसमें 21 मंदिर के अंदर और तीन बाहर के ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं- इसमें अग्नि तीर्थ- मंदिर के समक्ष समुद्र ही है, जब कि अगस्त्य तीर्थ समुद्र के किनारे एक छोटा सरोवर है। चक्र तीर्थ- दूसरी परिक्रमा पथ में पूर्व की ओर एक बड़ा सरोवर है, शेष 21 तीर्थ मुख्य मंदिर के परिक्रमा मार्ग में कुएं के रूप में स्थित हैं और ये हैं- सूर्य तीर्थ, चंद्र तीर्थ, गंगा तीर्थ, यमुना तीर्थ, सरस्वती तीर्थ, गया तीर्थ, शंख तीर्थ, गायत्री तीर्थ, माधव तीर्थ, नल तीर्थ, नील तीर्थ, गवय तीर्थ, गवाक्ष तीर्थ, गंधमादन तीर्थ, ब्रह्म हत्या विमोचन तीर्थ, अमृत तीर्थ, शिव तीर्थ, सावित्री तीर्थ, महालक्ष्मी तीर्थ, सर्वतीर्थ व कोटि तीर्थ।
  • पवित्र कार्य शुल्क : मंदिर में शिवलिंग पर कुछ चढ़ाने हेतु निश्चित शुल्क देना पड़ता है। ये शुल्क मूर्ति पर जल चढ़ाने, दुग्धाभिषेक करने , नारियल चढ़ाने, त्रिशतार्चन, अष्टोत्तरार्चन व आभूषण दर्शन आदि हेतु हैं।
  • मंदिर उत्सव : श्री रामेश्वर मंदिर में वर्ष भर कुछ न कुछ उत्सव होते ही रहते हैं, पर उनमें से मुख्य महाशिवरात्रि ही है। इसके अतिरिक्त मकर संक्रांति, चैत्रशुक्ला प्रतिपदा, पौष पूर्णिमा, बैकुंठ एकादशी, रामनवमी, बैसाख पूर्णिमा, ज्येष्ठ पूर्णिमा, नवरात्रि – उत्सव, स्कंद जनमोत्सव, आर्द्रादर्शनोत्सव, तिरुकल्याणोत्सव आदि हैं। विशेष दिवसों पर सुब्रह्मण्यम् प्रभु, रामेश्वर उत्सव मूर्ति व अम्बा जी उत्सव मूर्ति की सवारी निकाली जाती हैं।

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संताप मिटते है रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से

 

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