अग्नितत्त्वलिंग – तिरुवण्णमल्ले : यहाँ माता पार्वती से भगवान शिव तेज रूप में मिले थे, { दक्षिण भारत के पंचतत्त्वलिंग}

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क्षितिलिंग की प्रतिष्ठा के पश्चात् महादेवजी की आज्ञा से पार्वती ने अरुणाचल तीर्थ में पहुंचकर कुछ दिनों तक तपस्या की थी। भगवती की तपस्या के बाद अरुणाचल पर्वत पर अग्निशिखा के रूप में एक तेजोलिंग का आविर्भाव हुआ। भगवान शिव ने शिवकांची में माता पार्वती से कहा था कि मैं तुम्हें गौतम आश्रम ( अरुणाचल तीर्थ ) में तेज रूप में मिलूंगा।

इस तीर्थ में महादेव और पार्वती जी का मिलन हो गया। अग्नितत्त्वलिंग – तिरुवण्णमल्ले यह स्थान पर पंचमहाभूतों के अंतर्गत आने वाला तेजोलिंग है, जो अरुणाचल पर्वत पर अग्निशिखा के रूप में अवस्थित है। वायुमार्ग से यह स्थान दो हवाई अड्डों से जुड़ा है। चेन्नई व त्रिचनापल्ली, जहां से इनकी दूरी क्रमश : 180 व 140 किलोमीटर है।

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रेल मार्ग से यह स्थान वेल्लूपुरम और कठपड़ी के मध्य स्थित है। यह स्थान तिरुपति व तंजौर से भी रेल मार्ग से जुड़ा है। कांजीवरम से कठपड़ी स्टेशन 100 किलोमीटर दूर है। चेन्नई से यह 185 किलोमीटर दूर है। रेल द्वारा यह स्थान चिदंबरम, तंजौर, मदुरई, त्रिचनापल्ली से जुड़ा है । सड़क मार्ग से दक्षिण के सभी प्रमुख नगरों से यह स्थान जुड़ा है। पांडिचेरी व चेन्नई से यह स्थान सीधा जुड़ा हुआ है।

अग्नितत्त्वलिंग – तिरुवण्णमल्ले की अन्य कथा

प्राचीन कथाओं के अनुसार, एक बार देवी पार्वती ने चंचलता पूर्वक भगवान शिव से अपने नेत्र बंद करने को कहा, भगवान ने भी अपने नेत्र बंद कर लिए। इस कारण हज़ारों वर्षों तक समूचे ब्रम्हांड में अंधकार छाया रहा। अपने भक्तों द्वारा तपस्या करने पर भगवान शिव तिरुवन्नामलाई में अन्नामलाई की पहाड़ी पर एक अग्नि स्तंभ के रूप में दिखाई दिये।

एक अन्य कहानी के अनुसार, जो की भगवान शिव के अग्नि तत्त्व की व्याख्या करती है – जब भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी में श्रेष्ठता को लेकर प्रतिवाद चल रहा था, तब भगवान शिव एक ज्योति के रूप में प्रकट हुए और विष्णु जी एवं ब्रह्मा जी को चुनौती दी कि उनका (भगवान शिव का) स्त्रोत खोज कर बताएँ । ब्रह्मा जी ने हंस का रूप धारण कर ज्योति के ऊपरी भाग (प्रारंभ से) को खोजने के लिए ऊपर की ओर गए, जबकि विष्णु जी एक वरदान बन ज्योति का अंत खोजने नीचे की ओर गए। हिंदू पौराणिक कथाओं में इस द्रश्य को लिंगोद्भव कहा जाता है।

ब्रह्मा जी एवं विष्णु जी दोनों ही आदि और अंत खोजने में विफल रहे। लेकिन यहाँ भगवान विष्णु ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली, वहीँ ब्रह्मा जी ने असत्य कहा कि उनको ज्योति का शिखर मिल गया है। इस असत्य से भगवान शिव क्रोधित हुए और ब्रह्मा जी को दंड देते हुए कहा की आपके पृथ्वी पर न तो कभी आपकी आराधना होगी और न ही आपका कोई मंदिर होगा।

अग्नितत्त्वलिंग – तिरुवण्णमल्ले का दर्शनीय विवरण

दक्षिण भारत में भगवान शिव को पंच भूतों के अधिपति के रूप में पूजा जाता है। यहाँ भगवान शिव को भूताधिपति व भूतनाथ भी पुकारा जाता है। भव्य मंदिर अवस्थित है। इसमें एक बड़ा मंदिर है, जिसमें नौ मंजिलें हैं तथा पूरा मंदिर अद्भुत शिल्पकला से सज्जित है। इसी के साथ एक छोटा पांच मंजिला मंदिर है, जिसके समक्ष एक बड़ी नादिया की मूर्ति स्थापित है। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, वरन अग्नि के रूप में पूजा होती है। मंदिर का पुजारी एक बड़े पात्र में बहुत से कपूर जलाकर उसे ऊपर से ढंक देता है। उसको जलते हुए ही बाहर लाता है, जो स्थानीय रीति – रिवाज के अनुसार भगवान का दूसरा मानवीय विग्रह अर्थात् मनुष्य के स्वरूप की मूर्ति को भ्रमण करा कर फिर वहीं रखा जाता है।

फिर उस जलते हुए कपूर वाले पात्र का ढक्कन खोल दिया जाता है। इसी समय मंदिर के शिखर पर भी बहुत सा कपूर जलाकर फिर घी की मशाल जलाई जाती ऐसा बताया जाता है कि मंदिर के शिखर पर प्रकाश दो दिन व दो रात तक बराबर रखा जाता है। कारण यह भगवान शंकर का तेजोर्लिंग कहलाता है। इस मंदिर में कीर्ति गाई नामक उत्सव बड़े धूमधाम के मनाया जाता है।

अग्नितत्त्वलिंग – तिरुवण्णमल्ले के अन्य स्थल

मंदिर अत्यधिक विशाल है, जिसमें 6 परिक्रमाएं हैं और प्रथम को छोड़कर सभी में अनेक देवी – देवताओं और लिंगों के भव्य मंदिर सहित मूर्तियां स्थापित हैं——-

  • वेणुगोपालस्वामी मंदिर : वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है और यह मंदिर इस बात का द्योतक है कि हरी व शिवा एक हैं। इस प्रकार का मंदिर दुर्लभ है।
  • किली गोपुरम : इस गोपुरम की विचित्रता है कि इसके ऊपर मध्य भाग में एक तोता विराजमान है, जिसे संत अरुणगिरी नाथ का परिवर्तित रूप माना जाता है।
  • दीप दर्शन मंडपम : ऐसी मान्यता है कि दीप दिवस पर पांचों भगवान इसमें दर्शन देते हैं। यह अनेक खंभों का बना प्रांगण है। इसके अतिरिक्त अनेक मंडपम  पूरे मंदिर में हैं, जो विभिन्न परिक्रमाओं पर हैं और उनके नाम क्रमश : कल्याण मंडपम, बसंता मंडपम, पूर्वी मंडपम, अरुणगिरिनायर मंडपम, एक हजार खंभों का मंडपम आदि। ये सभी मंडपम भव्य हैं और अलग – अलग स्थान पर स्थित हैं।
  • विभिन्न सन्नाथी : मंदिर के प्रांगण में अनेक छोटे – बड़े मंदिर स्थान हैं, जिन्हें सन्नाथी कहा जाता है। इसमें देवी – देवताओं के अनेक चित्र स्थापित हैं। कुछ निम्नलिखित हैं- कंबूथू इलैयनार सन्नाती, कल्याण सुंदरेश्वर सन्नाती, संबंध विनायगर सन्नाती, कला भैरव सन्नाती आदि।
  • महीजा वृक्ष : तीसरी परिक्रमा में एक पवित्र वृक्ष है, जिसके फूल पूजा में चढ़ाए जाते हैं। इसके फल, तना तथा पुष्प औषधीय गुणों से भरपूर हैं।
  • ब्रह्म तीर्थ : मंदिर में एक जल का कुंड है, जिसे अति पवित्र माना जाता है।
  • छोटे नंदी मंदिर : इस मंदिर में नंदी की छोटी मूर्ति स्थापित है, जिसकी पूजा – अर्चना की जाती है।
  • राजा गोपुरम : यह सबसे लंबा गोपुरम टावर है, जो शिल्प कलाओं का भंडार है और अन्नामलाई पर्वत पर स्थित छठी परिक्रमा में आता है। यह लगभग 218 फीट ऊंचा और ग्यारह मंजिलों में बना है।
  • वल्लभ महाराजा गोपुरम : यह पंचम और चतुर्थ परिक्रमा में स्थित है और इसका उपयोग अंतिम संस्कार हेतु किया जाता था।
  • श्री पाताललिंगम् : एक मंडपम के पास एक बड़ी लंबी शिला सैकड़ों वर्षों से सीधी खड़ी है और इसका प्रादुर्भाव पाताल से है। अत : इसको पाताललिंगम् कहा जाता है। इसके अतिरिक्त प्रांगण में अनेक सुंदर भव्य मंदिर हैं, जो सभी दर्शनीय हैं। यात्रीगण सभी को देखकर आश्चर्यचकित होकर श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।

    ________थिरुवान्नामलाई – थिरुवान्नामलाई_________________

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