चिदंबरम स्थित नटराज मंदिर पाँच तत्त्वों में आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्त्व करता है। नटराज मंदिर में भगवान शिव को उनके निराकार रूप में पूजा जाता है। यह सब मंदिरों में श्रेष्ठ माना जाता है। अत : चिदम्बरम का स्थान अति महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
सुप्रसिद्ध नटराज की नृत्य करती मूर्ति यहीं पर है। भगवान शिव के पंचतत्त्वलिंगों में आकाशतत्त्वलिंग की मान्यता इस मंदिर को प्राप्त है। यह मंदिर समुद्र से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर कावेरी नदी के तट पर अवस्थित है। इसके प्रमुख मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, पर दूसरे मंदिर में नटराज की मूर्ति विद्यमान है।
पंचमहाभूतलिंगों में चिदंबरम आकाशलिंग है – चित का अर्थ है ज्ञान व अंबर का अर्थ है आकाश अर्थात् ज्ञान का काश या चित + अम्बरम नाम इस प्रकार परिभाषित है। कुछ के अनुसार चित का अर्थ है नाच और अम्बरम का अर्थ है स्टेज और इस प्रकार इनका नटराज रूप परिभाषित होता है। ऐसा कहा जाता है कि नटराज के अलावा, चिदंबरम रहस्य या सबसे बड़ा रहस्य भी इस मंदिर में ही उत्पन्न हुआ। चिदंबरम रहस्य में मंदिर के आंतरिक गर्भगृह के भीतर एक खाली जगह पर एक पुजारी को अनावरण करते हुए दिखाया गया है।
इसका प्रतीक यह है कि जब अज्ञानता का आवरण उठता है तब सच्चिदानंद की प्राप्ति होती है। चिदंबरम रहस्य उस समय का प्रतीक है जब हम पूर्ण समर्पण के भाव में होते हैं, जब हम भगवान को हमारी अज्ञानता को दूर करने और हस्तक्षेप करने की अनुमति प्रदान करते हैं। जब हम भगवान की उपस्थिति का अनुभव अपने भीतर करते हैं वह क्षण हमें परमानंद की प्राप्ति होती है।
आकाशतत्त्वलिंग की कथा
मंदिर समुद्र के पास ही है और इसके पास दलदली भूमि है, जिसमें ‘ थीलाई ‘ नाम के वृक्ष पाए जाते हैं और इन्हीं वृक्षों द्वारा एक वन बन गया, जो मैनग्रूव वन कहलाता है। इसी वन में कुछ साधु – संत निवास करते थे, जो जादू – टोना मंत्र आदि में इतना विश्वास रखते थे कि उनका मानना था कि भगवान को भी इनके द्वारा अपने बस में किया जा सकता है। इसी भ्रांति को तोड़ने हेतु भगवान ने एक सुंदर रूप धारण करके वन में इनके आश्रय हेतु प्रवेश कर गए। उनके इस सुंदर रूप को देखकर संत पत्रियां उन पर आसक्त होने लगीं। इसी बात से नाराज होकर साधु – संतों ने अनेक सर्प उत्पन्न करके इनके ऊपर छोड़ दिए, पर वे सभी सर्प उनके गले व कमर आदि से प्रसन्नतापूर्वक लिपट गए तथा उन्हें काटा नहीं।
इससे और अधिक क्रोधित होकर उन्होंने एक बाघ उत्पन्न किया , जो कष्ट पहुचाने के बजाय उनका कमर पर शाल एक बन कर लिपट गया। इसके पश्चात् साधु- -संतों ने एक राक्षस मोआलखन को उत्पन्न कर उन्हें हानि पहुंचाने को उकसाया, पर भगवान की सुंदर मुस्कराहट देख उसने उन्हें अपनी पीठ पर धारण कर लिया और तब भगवान ने तांडव नृत्य प्रारंभ कर दिया और अपने असली रूप में प्रकट हो गए। इसके पश्चात् सभी साधु – संत नतमस्तक हो गए और उन्हें भान हो गया कि भगवान ही सत्य हैं और वे सभी रीति – रिवाज और जादू – टोना से परे हैं।
इस प्रकार शिव का नृत्य स्वरूप इस मंदिर में स्थापित हुआ। चिदंबरम में आज भी नटराज की मूर्ति का चित्रण आनंद तांडव करते हुए है। रेल मार्ग में यह नगर विल्लुपुरम से 80 किलोमीटर दूर है। चेन्नई, तंजौर, त्रिची आदि से भी यह मार्ग रेलों से जुड़ा है। सड़क मार्ग हर ओर है, जैसे पांडिचेरी से यह 78 किलोमीटर, कराईकल से 60 किलोमीटर। इसके अतिरिक्त दक्षिण के मुख्य नगरों से बस, टैक्सी द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।
आकाशतत्त्वलिंग का विवरण
मुख्य मंदिर : यह मंदिर मध्य नगर में चालीस एकड़ क्षेत्रफल में अवस्थित है। यह शिवनटराज और भगवान गोविंदराज पेरुमल हेतु समर्पित है। यह उन मंदिरों में से एक है, जहां शैव व वैष्णव दोनों ही अनुयायी इसकी पूजा – अर्चना करते हैं। इसके चारों ओर चार ऊंचे गोपुरम हैं, जिनकी ऊंचाई लगभग 350 फीट है और इनके द्वार चालीस फीट ऊंचे हैं। सभी गोपुरम सात मंजिलों के हैं और मूर्ति दक्षिणमुखी हैं। मंदिर के बाहर और भीतर द्वार पर गणेशजी की मूर्तियां अवस्थित हैं। प्रांगण में बड़े – बड़े मंडपम हैं, जिसमें भरत नाट्यम की मुद्रा में हजारों कलाकृतियां उकेरी गई हैं।
प्रांगण इतना बड़ा है कि हजारों तीर्थयात्री एक बार में इसके दर्शन कर सकते हैं। एक मंडपम इतना बड़ा है कि इसमें 1000 खंभे हैं और सभी पर शिल्पकारी की गई है। दीवार पर रंगीन चित्रों द्वारा भी शिव महिमा को प्रदर्शित किया गया है। मंडपम की छतों पर भी अति उत्तम शिल्पकारी की गई है। इसके बड़े – बड़े गलियारे तीर्थयात्रियों का मन मोह लेते हैं मंडपम में दीवारों पर बारह राशियों को भी उकेरा गया है। मंदिर की आकृति इतनी वैज्ञानिक है कि मानव शरीर के प्रत्येक भाग को जैसे हृदय, नाड़ियों आदि को प्रदर्शित करती हैं। मुख्य मंदिर में एक पर्दा लगा रहता है, जिसको उठाने पर स्वर्ण निर्मित कुछ मालाओं का दर्शन होता है। इनके अतिरिक्त केवल आकाश ही आकाश दृष्टिगोचर होता है, अतः इसे भगवान शिव का आकाशलिंग कहा जाता है।
प्रमुख मंदिर से बाहर निकलने पर बाहरी परिसर में कनकसभा का परिक्षेत्र है, जिसके पूर्वी व पश्चिमी द्वारों पर एक सौ आठ नाट्य मुद्राएं अंकित हैं। इसी मंदिर में अति मूल्यवान तथा सुंदर एक बड़ा दक्षिणावर्त शंख रखा गया है, जिस पर कलात्मक ढंग से सोना मढ़ा हुआ है।
- गोविंदराज मंदिर : ये दूसरा मुख्य मंदिर है जिसमें भगवान विष्णु की सुंदर शेषशायी मूर्ति है। यहां लक्ष्मीजी का तथा अन्य दूसरे छोटे उत्सव विग्रह भी हैं। यह भव्य सुंदर मंदिर है और इसका शिल्प दार्शनिक रूप को प्रदर्शित करता है।
- सभा स्थल : मंदिर प्रांगण में पृथक् – पृथक् कार्यों हेतु अनेक सभा स्थल हैं, जो अनेक देवी – देवताओं आदि की मूर्तियों से सज्जित हैं।
- पवित्र कुंड : प्रांगण के अंदर शिव गंगा नामक सबसे बड़ा पवित्र कुंड है। ऐसा माना जाता है कि इसका जल सभी बीमारियों को ठीक कर देता है। इसके अतिरिक्त प्रांगण में सात या आठ पवित्र कुंड और हैं।
- मंदिर कार : यह अनूठी कार या रथ है, जो इस मंदिर की विशेषता है और वर्ष के दो उत्सवों में भक्तगणों द्वारा इसे खींचा जाता है।
आकाशतत्त्वलिंग आसपास के अन्य दर्शनीय स्थल
- वरेमादेवी : नगर से 15 किलोमीटर दूर एक वेदनारायण या भगवान नारायण का मंदिर है। इसमें पृथक् लक्ष्मीजी का मंदिर भी है, जिसे वरेमादेवी मंदिर कहते हैं, ये दर्शनीय हैं।\
- वृद्धाचलम : नगर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्टेशन से कुछ दूर एक शिव मंदिर है, जहां विभीषित ऋषि ने भगवान शिव की आराधना की थी।
- श्री मुष्णम मंदिर : यह नगर से 25 किलोमीटर है, जहां बसों या टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है। इसमें वाराह की सुंदर मूर्ति है। इस मंदिर में श्रीदेवी, भूदेवी, बालकृष्ण भगवान की मूर्तियां स्थापित हैं।
- शियाली व काट्टमनार गुडी मंदिर : नगर से ये मंदिर भी 15 किलोमीटर दूर है, जिसमें क्रमश : भगवान विष्णु व भगवान वीरनारायण के मंदिर हैं।
- केतु मंदिर : नगर से 30 किलोमीटर दूरी पर नवगृह का विशाल केतु मंदिर स्थित है, जो दर्शनीय पूजनीय हैं।