मणिकर्ण प्रसिद्ध तीर्थ हिमालय के चरणों में हारिन्द्र नामक सुरम्य पर्वत श्रृंखला ( कुल्लू घाटी ) में पार्वती और व्यास नदियों की धाराओं के बीच है। इसके पश्चिम में शीतल एवं गरम जल के सरोवर और पूर्व में ब्रह्मगंगा है। मणिकर्ण हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी मे स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ है। कुल्लू जिले से मणिकर्ण मात्र 35 किलोमीटर है।
यहां से चौपहिया वाहनों द्वारा मणिकर्ण पहुंचा जा सकता है। रेलमार्ग हेतु सर्वप्रथम पठानकोट पहुंचना पड़ता है और यहां से जोगेंदर नगर जाया जाता है, जो इसका अंतिम स्टेशन है। यहां से भूअंतर होते हुए तीर्थस्थल पहुचा जाता है। पठानकोट से सड़क मार्ग द्वारा दूरी 285 किलोमीटर, चंडीगढ़ से 258 किलोमीटर है। कुल्लू से 45 किलोमीटर व मनाली से 85 किलोमीटर है।
मणिकर्ण तीर्थ की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार कभी शिव – पार्वती ने यहां के शीतल एवं उष्ण सरोवर में जलक्रीड़ा की थी। जलक्रीडा के समय पार्वती के कर्णफूल की मणि जल में गिर गई। शिव ने अपने गणों को मणि ढूंढने का आदेश दिया, किंतु गणों को वह नहीं मिली। शिव ने क्रुद्ध होकर अपना तीसरा नेत्र खोला तो शेषनाग भयभीत हो गए। तभी इस स्थान पर ऊर्ध्वधारा में से मणि प्राप्त हो गई। इसी कारण इस स्थान का नाम मणिकर्ण हो गया। पुराणों और संस्कृत साहित्य में मणिकर्ण का प्रचुर वर्णन मिलता है|
मणिकर्ण ‘अग्नितीर्थ ‘ भी कहलाता है, क्योंकि मठ में अग्नि रहती है। गरम पानी के सरोवरों में हर समय पानी जमीन से अपने आप ऊपर निकलता आर उबलता रहता है। गरम पानी की भाप बादलों के रूप में ऊपर उठती रहती है। इससे ऐसा लगता है जैसे चारों ओर कोहरा छाया हुआ है। यहां गरम जल के अनेक स्रोत है। जमीन भी इतनी गरम होती है कि खडाऊं पहन कर चलना पड़ता है। गरम जल के स्रोत में ही भोजन बनाया जाता है। तीर्थ की ओर से यात्रियों का भोजन भी इन्हीं गरम स्रोतों में तैयार होता है। यहां के संत बाबा हरिजी का कथन है कि जर्मन वैज्ञानिकों ने इन गरम जल स्रोतों को विचित्र बताया है, क्योकि गंधक के चश्मों में भोजन नहीं पक सकता है। अत यहाँ के जल स्रोता में रेडियम हो सकता है| गरम जल स्त्रोता के अलावा यहाँ अत्यंत शीतल जल के सरोवर भी हैं । यहां की वनसंपदा में चीड़, फल वाले वृक्ष तथा भोजपत्र के अतिरिक्त स्वादिष्ट जंगली बादाम, जंगली जामुन, गुच्छी, ढींगरी, जंगली गोभी, वनफशा तथा अनेक प्रकार की जडी – बूटियां पाई जाती है ।
मणिकर्ण तीर्थ के स्थल
- शंकर मंदिर- इस पावन तीर्थ के मध्य पार्वती नदी के तट पर भगवान शंकर का भव्य व दर्शनीय मंदिर हैं, जहां यात्री पूजा – अर्चना करते हैं।
- मनोकामना देवी मंदिर: इसी स्थल की कुछ दूरी पर यह देवी का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां यात्री अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।
- रुद्रनाग तीर्थ: इसी स्थान पर जल नागफन की तरह बहता रहता है। यह जल मीठा व ठंडा है।
- ब्रह्मा गंगा: इसी गांव में एक छोटा सुंदर मंदिर है, जिसे ब्रह्मा गंगा कहते हैं और कथाओं के अनुसार ब्रह्माजी ने यहा तपस्या की थी।