हमारा बडी

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“संस्मरण”
“हमारा बडी” 

बेजुबा जानवर भी अपने भावों से मन‌ की अभिव्यक्ति कर ही देता है। हां !आज से करीब 16 वर्ष पूर्व हमारे घर में एक नन्हा सा मेहमान जी हां! डेल्मेशीयन प्रजाति का एक माह का पपी(puppy) आया। अत्यंत सुंदर मखमली सफेद रंग और उस पर गोल-गोल काले गोले बने हुए। आज भी वो दृश्य याद आ जाता है।
मेरे दोनों बच्चे जिनकी उम्र उस समय 4 और 10 वर्ष की थबहुत खुश हुए और फिर पूरे घर में तीनों की धमाचौकड़ी, धीरे-धीरे तीनों बड़े होने लगे।

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दास्तान जो दिल को छू ले

हमें कहीं जाना होता तो सब उसका ख्याल रखने को आतुर रहते थे।
वह सच में बहुत शैतान था जैसे ही उसके पास बैठती मेरी गोदी में सर रखकर सो जाता था। सुबह-सुबह अपने खाने का बर्तन मेरे सामने ले आता और जब तक मैं या मेरे बच्चे उसे ना खिलाए तो खाता ही नहीं था एक जिद उसकी रहती थी चाहे कुछ भी खाने को दे दो पर वह बच्चों के बॉर्नविटा वाले दूध को स्वाद से पीता था। बीमार होता तो मुझे छोड़ता ही नहीं था सच बिन कहे कितना अपना सा था वो, हम सबके चेहरे के भाव पढ़ता था, न जाने कैसे उसे समय का अंदाजा होता था मेरे बच्चों के स्कूल से आने का समय ,
पति के दफ्तर से आने का समय….. वह दरवाजे की ओर दौड़ जाता और बकायदा ऐसा लगता उन्हें बुला रहा हो।
खाने में जलेबी की खुशबू आते ही हल्ला मचा देता, कढ़ी- चावल, खिचड़ी वह सब खाता जो हम खाते थे।
फलों का तो बेहद शौकीन था।
कभी लगा ही नहीं कि वो एक पशु है। मेरी बेटी तो उसे राखी बांधती थी हमारा परिवार था वो।
इसी बीच हमारे मुंबई आने की बातें होने लगी थी और साथ ही कि हम चले जाएंगे तो उसको कैसे लेकर चलेंगे साथ यहां लाना मुश्किल होगा, फिर यही सोचा कि देखेंगे जब वक्त आएगा ।
उसके कुछ दिनों बाद बात 2013 की है जिसे हम कभी नहीं भुला सकते हम सब दो दिनों के लिए विवाह में सम्मिलित होने गए थे।
जहां उसे छोड़ कर गए थे… पता नहीं कैसे ? वो वहां से भाग निकला सड़क की ओर… तेज रफ्तार से आती गाडियां… और हमारे पास आधी रात में फोन पहुंचा। हम कुछ नहीं कर सकते थे… एक अजीब सा सन्नाटा, चीत्कार थी जो हृदय को चीर रही थी हमारा “बडी”… जा चुका था ।
शायद वह हमारी सारी बातें सुनता था शायद….. शायद ….
आज भी उसकी यादें स्मृति पटल पर बिल्कुल ताजा है। उसके साथ गुजारे मीठे पलों को हम सब याद करते रहते हैं।🙏🙏

डॉ० ऋतु नागर
स्वरचित ©
मुंबई, महाराष्ट्र

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