शुचींद्रम : शुद्धीकरण और प्रायश्चित्त के लिए विख्यात, नारायणी शक्तिपीठ भी

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दक्षिण में स्थित शुर्चीद्रम नामक यह तीर्थ प्राचीनकाल से शुद्धीकरण और प्रायश्चित्त के लिए विख्यात है। यहां के मुख्य मंदिर में विशाललिंगम् स्थित है, जो त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक है। हिंदु धर्म के इन तीनों महान् देवताओं का एक स्थान पर पूजन होने के कारण शुचींद्रम की महत्ता बढ़ गई है।

शुचींद्रम

ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को समर्पित अनेकों मंदिर हमारे देश में है। इनमें से कुछ मंदिर ऐसे है, जहां यह ईश-त्रिमूर्ति एकसाथ विद्यमान है। दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां इस त्रिमूर्ति की लिंग रूप में पूजा की जाती है। सुचिन्द्रम का स्थानुमलयन मंदिर आज त्रिमूर्ति के प्रति आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर में दो ह़जार वर्ष पुराना एक वृक्ष है, जिसे तमिल भाषा में कोनायडी वृक्ष कहा जाता है। चमकदार पत्तियों वाले इस वृक्ष का तना खोखला है। इस खोखले भाग में ही त्रिमूर्ति स्थापित है। इस स्थान पर पहली बार मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था। उस काल के शिलालेख आज भी यहां मौजूद हैं। यह नारायणी शक्तिपीठ भी है, यहां सती की दंतपंक्ति गिरी थी। त्रिवेंद्रम तक यह स्थल वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। कन्याकुमारी से 11 किलोमीटर दूर त्रिवेंद्रम मार्ग पर स्थित है। रेलवे स्टेशन 3 किलोमीटर पर है, यहां मदुरै मुंबई, त्रिवेंद्रम तथा कन्याकुमारी से रेल द्वारा पहुंचा जा सकता है।

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शुचींद्रम की कथा

महादेव शिव विवाह के लिए शक्तिरूपा कुमारी देवी के पास मुहूर्त के अनुसार रात्रि में जा रहे थे, किंतु इसी स्थान पर सवेरा हो गया। फलस्वरूप शिवजी यहीं रुक गए, बाद में उनसे मिलने ब्रह्मा और विष्णु भी पहुंच गए। अत: इस स्थल पर ही तीनों देवताओं का त्रिमूर्ति के रूप में दर्शन होता है। मान्यता है कि देवी अहल्या के साथ अनुचित कार्य के कारण इंद्र को गौतम मुनि ने शाप दिया। उस शाप को छुड़ाने के लिए स्वयं इंद्र को यहां आकर प्रायश्चित्त करना पड़ा और वे त्रिमूर्ति की कृपा से शाप – मुक्त हो गए। यहीं निकट में ज्ञानारण्य हैं, जहां मुनि अत्रि और अनसूया का आश्रम था।

कहा जाता है कि एक बार तीन देवता, ब्रह्मा, विष्णु और महेश देवी अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने यहां पधारे थे। जहा सती ने इन तीनों को शिशु – रूप में परिवर्तित कर दिया था। शुर्चीद्रम में मंदिरों के चारों ओर पत्थर की दीवार का अहाता है जिसमें विशाल गोपुरम और ऊंचे स्तंभों वाला प्रवेश द्वार है।

अति प्राचीन है मुख्य मंदिर

मुख्य मंदिर अति प्राचीन है जिसका निर्माण नौवीं सदी में हआ था। बाद में नायक राजाओं ने अन्य मंदिरों और सभागृहों का निर्माण कराया। यहां एक विशाल सरोवर है, जिसके मध्य में पत्थर के स्तंभों का सभागृह है। त्रिमूर्ति के अलावा गणेश , लक्ष्मी, पार्वती और बजरंगबली की कलात्मक प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं। बजरंगबली ( हनुमानजी ) की प्रतिमा इतनी विशाल है कि अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलती। यहा प्रत्येक शुक्रवार को संध्या – आरती का विशेष आयोजन होता है।

अन्य दर्शनीय स्थल

प्रज्ञाकुंड मंदिर के समीप ही यह विशाल सरोवर स्थित है। नंदी व गरुड़ मंदिर के सामने विशाल नंदीमूर्ति है। गरुड़जी की ऊंची मूर्ति है। श्री देवी – भू देवी मंदिर में भगवान विष्णु की भी चतुर्भुज मूर्ति है।

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