महाशिवरात्रि : इसलिए रात्रि जागरण पुण्य कर्मों का उदय

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mahaashivaraatri : isalie raatri jaagaran puny karmon ka udayमहाशिवरात्रि का महत्व सदैव से रहा है । महाशिवरात्रि  को साल की सबसे बड़ी शिवरात्रि माना जाता है । महाशिवरात्रि के व्रत-पूजन के प्रभाव से महापातक नष्ट हो जाते है। सहज प्रसन्न होने वाले देवों के देव महादेव का इस दिन जो भी व्यक्ति पूजन-अर्चन करता है। उसके पाप नष्टï हो जाते हैं। पुण्य कर्मों का उदय होता है। अगर आपका भाग्य साथ नहीं दे रहा है तो आप भगवान शिव की शरण में जाए और उनका पूजन-अर्चन करें, विशेष तौर महाशिवरात्रि पर व्रत-पूजन और अर्चन विशिष्टï महत्व है।  जगतगुरु आदिशंकराचार्य ने अपने एक स्त्रोत में कहा है….चिदानन्दरूपा शिवोहम्-शिवोsम् अर्थात हम शिव उपासना करें, तो एक दिन स्वयं ही शिव बन सकते हैं। हमारी आत्मा का रूप हो या सूर्य का… ये सब शिवलिंग स्वरूप ही हैं….। हमारा मस्तक शिव के आकार का है….। यदि माने, तो मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ- विभत्स हूँ, विभोर हूँ, मैं समाधि में ही चूर हूँ….।

घनघोर अंधेरा ओढ़कर मैं जनजीवन से दूर हूँ….। श्मशान में हूँ, नाचता मैं मृत्यु का गुरुर हूँ। मैं राख हूँ,, मैं आग हूँ, मैं ही पवित्र राष हूँ….। मैं पंख हूँ, मैं श्वांस हूँ, मैं ही हाड़ मांस हूँ….। में ही अन्त हूँ और मैं ही आदि अनन्त हूँ….। मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ…..। महादेव का विशेष पूजन करने के साथ व्रत भी रखते हैं और भगवान से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं. महाशिवरात्रि की रात को जागरण का भी विशेष ​महत्व है।

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फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार

हर साल फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन महादेव और माता पार्वती का वि​वाह हुआ था। ये दिन माता पार्वती और महादेव के साथ उनके भक्तों के लिए भी विशेष है।

अखंड दीपक जलाने से होगा लाभ, महाशिवरात्रि पर ऐसे करें दिन की शुरुआत

महाशिवरात्रि Maha Shivratri  का पूरा दिन महादेव और माता पार्वती को समर्पित होता है। शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके भगवान के व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिवलिंग का जलाभिषेक करें। घर में सुबह से महादेव के समक्ष एक दीपक जलाएं जिसे अगले दिन सुबह तक जलने दें। ये अखंड दीप बेहद शुभ माना गया है। इसके बाद महादेव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र आदि चढ़ाएं। मातारानी को सुहाग का सामान चढ़ाएं और दक्षिणा अर्पित करें. इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें. ‘ॐ नमः शिवाय’ या ‘ॐ नमो भगवते रूद्राय नम:’ मंत्र का जाप करें। इसके बाद प्रेम पूर्वक आरती गाएं और आखिर में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें।

इसलिए रात्रि जागरण

धार्मिक मान्यता है कि महाशिवरात्रि की रात माता पार्वती और महादेव के मिलन की रात है। महाशिवरात्रि की रात को रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने की बात कही जाती है।

  • इससे आपकी ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर चढ़ती है और व्यक्ति प्राकृतिक रूप से आध्यात्मिक शिखर की ओर तेजी से बढ़ता है और परमात्मा से जुड़ता है। इससे उसका तेज भी बढ़ता है।

महाशिवरात्रि : मोक्ष प्राप्ति की व्रत कथा

जो प्राणी व्रत नहीं कर सकते वे इस व्रत कथा को पढ़ ले उनका व्रत माना जाता है..
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने शिव जी से पूछा “ वो व्रत और पूजा क्या है, जिससे मृत्युलोक के प्राणियों को आपकी कृपा आसानी से मिल सकती है”। तब महादेव ने स्वयं, महाशिवरात्रि व्रत की यह कथा माता पार्वती को सुनाई।


कथा के अनुसार, पौराणिक काल में, किसी गाँव में चित्रभानु नाम का एक शिकारी रहा करता था, वो बेहद ही क्रूर स्वभाव का था, और क्रूरपूर्ण कर्म भी किया करता था, वो रोज़ वन में जा कर, हिरण, ख़रगोश और अन्य मासूम जानवरों को मारा करता था। उसने बचपन से ही, कभी कोई शुभ कार्य नहीं किया था। और इसी प्रकार उसका जीवन ज्ञापन हो रहा था।
एक बार की बात है, महाशिवरात्रि की शुभ बेला आई, लेकिन उस दुराचारी शिकारी को, इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं था। वो तो बस एक ही काम जानता था, जानवरों की हत्या करना।
उसी दिन शिकारी के परिवार वाले भूख से व्याकुल होकर, उससे, खाने की मांग करने लगे। ऐसा करने पर शिकारी तुरंत, अपना धनुष बाण लेकर वन की और निकल पड़ा और जानवरों के शिकार के लिए वन में घूमता रहा। लेकिन उसे कुछ भी नही मिला और घूमते घूमते सूर्यास्त भी हो गया। ये देख कर शिकारी को बड़ा दुःख हुआ और वो सोचने लगा की मैं क्या करूं? कहां जाऊं, आज तो कोई शिकार नही मिला, अब घर कैसे जाऊं, घर में परिवार वाले भूखे हैं। ऐसे में मुझे कुछ न कुछ, घर लेके जाना ही होगा।”
ऐसा सोच कर शिकारी एक जलाशय के पास पहुंचा और घाट पर खड़े होकर सोचने लगा “की यहाँ कोई न कोई जानवर, पानी की तलाश में जरूर आएगा”, ऐसा सोचकर वो पास में मौजूद, बेल के पेड़ में अपने साथ थोडा पानी लेकर बैठ गया, उसके मन में तो बस यही ख्याल था की कब कोई जानवर पानी पीने आएगा और वो उसका शिकार कर पायेगा। इसी प्रतीक्षा में भूखा,प्यासा वो शिकारी बैठा रहा। इस तरह काफ़ी रात हो गई।और जब रात का पहला पहर शुरू हुआ, तो तब उस समय, तालाब के पास एक गर्भवती हिरणी आई। चित्रभानु ने उस गर्भवती हिरणी को मारने के लिए धनुष-बाण उठाया, ऐसा करते हुए उसके हाथ के धक्के से पानी और बेलपत्र नीचे गिर पड़े। उस बेल के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग मौजूद था, जिसके बारे में वो शिकारी नही जानता था। और इस तरह से अनजाने में, उसके हाथों से शिवलिंग पर जल और बेलपत्र गिरने से, शिव जी की पहले पहर की पूजा संपन्न हुई।
उधर वहां, कडकडाहट की आवाज़ से हिरणी घबरा गई और ऊपर की तरफ शिकारी को देख कर, वो भय से शिकारी से बोली,” हे शिकारी, मैं जल्द ही अपने बच्चे को जन्म देने वाली है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर, आपके पास वापस आऊंगी तब आप मेरा शिकार कर लीजिएगा। गर्भवती हिरणी की बात सुनकर, चित्रभानु ने उसे जाने दिया और इस तरह महाशिवरात्रि का प्रथम पहर भी बीत गया।

तब वहां एक दूसरी हिरणी आई। हिरणी को देखते ही चित्रभानु शिकार के लिए तैयार हो गया और पहले की भाँती ही उसके हाथ के धक्के से बेलपत्र, नीचे मौजूद शिवलिंग पर गिर पड़े, और इस तरह दूसरे पहर की पूजा भी संपन्न हो गई। तभी उस हिरणी ने भयभीत होकर, शिकारी से कहा कि “हे, शिकारी, मैं अपने पति की खोज कर रही हूँ, मुझपर कृपा करो, और मुझे जाने दो, मैं तुमसे वादा करती हूँ, कि मैं अपने पति से मिलकर तुम्हारे पास वापस लौटूंगी”। यह सुनकर, चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया।

कुछ समय बाद, जब रात का तीसरा पहर शुरू हुआ तो वहां तीसरी हिरणी अपने बच्चों के साथ आई, चित्रभानु फिर से हिरणी के शिकार के लिए तैयार हो गया। और पहले की भाँती ही उसके हाथ के धक्के से, बेलपत्र नीचे मौजूद शिवलिंग पर गिर पड़े। जब उस हिरणी ने शिकारी को देखा तो वो उससे बोली, “शिकारी, मैं अपने इन बच्चों को, अपने पति के पास छोड़ कर, वापस तुम्हारे पास आउंगी, कृपा मुझ पर दया करो” हिरणी की बात सुनकर चित्रभानु ने उसे भी छोड़ दिया। और इस तरह चित्रभानु ने भूखे प्यासे, रात्रि के तीसरे पहर की पूजा भी संपन्न कर ली।

चित्रभानु अपने परिवार की चिंता में डूबा हुआ था की तभी वहां एक हिरण आया। चित्रभानु बड़ा खुश हुआ और तीर साधने के लिए, अपना धनुष उठाया, और ऐसा करते हुए पहले की भाँती उसके हाथ के धक्के से बेलपत्र नीचे मौजूद शिवलिंग पर जा गिरे। और उसके द्वारा भगवान शिव की चौथे पहर की पूजा भी संपन्न हो गई। उधर उस हिरण ने चित्रभानु को देखते हुए कहा “कि अगर तुमने तीन हिरणी और उनके बच्चों को मार दिया है, तभी तुम मुझे मार सकते हो। और अगर तुमने उनको छोड़ दिया है तो मुझे भी छोड़ दो मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां वापस आ जाऊंगा।”

चित्रभानु ने हिरण को, घटित घटना बताई तब हिरण ने जवाब दिया कि वह तीन हिरणियां, उसकी पत्नी थीं। “अगर तुमने मुझे मार दिया तो वह तीन हिरणी अपना वादा पूरा नहीं कर पाएंगी। मेरा विश्वास करो मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां जल्दी वापस आऊंगा।”

हिरण की बात सुनकर,चित्रभानु ने उसे जाने दिया। इस तरह चित्रभानु का हृदय परिवर्तन हो गया और उसका मन पवित्र हो गया। रात भर चित्रभानु ने अनजाने में ही सही, भगवान शिव की आराधना की थी, जिसके वजह से भगवान शिव उससे प्रसन्न हो गए थे। वहीं, कुछ देर बाद हिरण अपने पूरे परिवार के साथ चित्रभानु के पास पहुंच गया ।
हिरण और उसके परिवार को देखकर चित्रभानु बहुत खुश हुआ और उसने हिरण के पूरे परिवार को जीवनदान देने का वचन लिया। यह देख कर, भगवान शिव ने प्रसन्न होकर, शिकारी को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया, और उसे सुख, समृद्धि का वरदान दिया। इस तरह चित्रभानु को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और मरने के बाद उसे शिवलोक में जगह मिली थी।

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