यक्षिणी साधना से होगी हर मनोकामना पूरी

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किसी भी साधना का आधार पूर्ण विश्वास होता है। यदि संशय के भाव के साथ कोई भी कार्य किया जाये तो उसकी सफलता भी संशयपूर्ण बन जाती है। किसी भी साधना को करने से पूर्व अपने अंतर्मन में वह अडिग विश्वास उत्पन्न कीजिए, जो भक्ति को बल प्रदान करने वाला और अडिग हो, क्योंकि बिना विश्वास के कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता है। यह बात कहनी इसलिए आवश्यक है, क्योंकि साधना से पूर्व विश्वास और आस्था का अंकुरण आवश्यक है। वह भी किसी योग्य और जानकार गुरु के मार्ग दर्शन में। साथ ही तंत्र साधानाओं में गोपनीयता भी आवश्यक है।


अब बात करते है हम पिशाचनी साधना की, जो कि मूल विषय है। आज दुनिया में जनमानस परेशान है। ऐसे में तमाम शंकाये जीव के मन में रहती है। वह उत्सुक रहता है, यह जानने के लिए आखिर सृष्टि की अदृष्य दुनिया में क्या छिपा हुआ है? आपको यह मालूम होना चाहिए कि तंत्र क्रिया में इसका राज छिपा हुआ है, लेकिन सभी इसको नहीं कर सकते हैं, वजह यह है कि यह बहुत ही खतरनाक विद्या है। तंत्र-मंत्र में कई ऐसी साधनाएं हैं, जो अदृष्य दुनिया से रिश्ता स्थापित करती है। जिन साधनाओं के बल पर आप दूसरों के मन की बात जान सकते हैं। इनमें से एक है कर्ण पिशाचनी साधना, जोकि निश्चित तौर सरल बिल्कुल भी नहीं है। इन साधनाओं को करने में छोटी सी चूक गंभीर व खतरनाक परिणाम देने वाली होती हैं। साधनाओं में चूक और असफलता का परिणाम यह होता है कि इसकी असफलता के परिणाम स्वरूप साधक मानसिक संतुलन तक खो बैठता है और परिवार तक तबाह हो जाते हैं। अगर आप मंत्र से दीक्षित नहीं है या योग्य गुरु की शरण में नहीं गए हैं तो इस साधना को न करने में ही भलाई है। यह आप निश्चित रूप से जान लें। कर्ण पिशाचनी साधना में आप सम्बन्ध एक पिशाच से रख्ोंगे। यानी एक ऐसी आत्मा से सम्बन्ध रख्ोंगे, जो जीवन से गुजर चुकी है। उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है और वह इस स्थिति में सिद्धि युक्त बिना शरीर के पिशाच या पिशाचनी बन चुकी है। जब आप इनकी साधना कर लेंगे तो यह सामने वाले के मन की बात आपसे कह जाएंगे। अब आप समझ गए होंगे कि ऐसी सिद्धि में विफलता के कितने घातक परिणाम हो सकते है? यादि आप इतना जानने के बाद भी ऐसी तंत्र-मंत्र क्रिया करना चाहते हैं तो आइये जानते है, कैसे होती है? यह साधनाएं। क्या है यह साधनाएं?

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कर्ण पिशाचिनी साधना –

कर्ण पिशाचिनी साधना यहां सारगर्भित रूप में प्रस्तुत की जा रही है।
मंत्र है-
ऊॅँ क्रीं समान शक्ति भगवती कर्ण पिशाचनी चंद्र रोपनी वद वद स्वाहा।।
किसी नदी या सरोवर के तट पर या फिर किसी एकांत में पवित्रता पूर्वक एकाग्र चित्त होकर उपरोक्त मंत्र का दस हजार बार जप करें। इसके बाद ग्वार पाठ के गुच्छे के दोनों हथ्ोलियों पर मल कर रात्रि में शयन करने से यह देवी स्वप्न में समय का शुभाशुभ फल साधक को बता जाती हैं।

चिचि पिशाचिनी साधना-

साधना यहां सारगर्भित रूप में प्रस्तुत की जा रही है।
मंत्र है-
ऊॅँ क्रीं ह्रीं चिचि पिशाचिनी स्वाहा।
केसर गोरोचन और दूध इन चीजों को मिलाकर नीले भोजपत्र पर अष्टदल कमल बनाकर प्रत्येक कमल पर माया बीज लिख शीश पर धारण करें और सात दिन तक नित्य दस हजार बार नियम पूर्वक मंत्र जप करने से यह देवी स्वप्न में भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों का शुभाशुभ फल साधक को बता जाती है।
कालकर्णिका प्रयोग-

साधना यहां सारगर्भित रूप में प्रस्तुत की जा रही है।
मंत्र हैं-
ऊॅँ ह्रीं क्लीं काल कर्णिके कुरु कुरु ठ: ठ: स्वाहा।
इस मंत्र को एकांत स्थान में एक लाख बार जप करके मंदार की लकड़ी, घी, शहद से हवन करें तो कालकर्णिका देवी प्रसन्न होकर साधक को अपने प्रकार के रत्न धन आदि ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

नटी यक्षिणी प्रयोग-

साधना यहां सारगर्भित रूप में प्रस्तुत की जा रही है।
मंत्र हैं-
ऊॅँ ह्रीं की नटी महा नटी रुपवती स्वाहा।
अशोक नामक वृक्ष के नीचे गोहार का चौक लगाकर ललाट में चंदन का मंडल लगाकर विधिवत देवी पूजन करके धूप दीप दें। एक मास तक नित्य एक हजार बार उपरोक्त मंत्र का जप करें तो देवी प्रसन्न होकर साधक को अनेक प्रकार की दिव्य वस्तुएं प्रदान करती हैं।

चंडिका प्रयोग-

साधना यहां सारगर्भित रूप में प्रस्तुत की जा रही है।
मंत्र हैं-
ऊॅँ चण्डिके हस: क्रीं क्रीं क्रीं क्लीं स्वाहा।
इस मंत्र को शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा को जपना प्रारम्भ करके पूर्णमासी तक नित्य चंद्रोदय से चंद्रास्त तक पक्ष में नौ लाख बार जप करने से अंतिम दिन देवी प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक को अमृत प्रदान करती हैं। जिसको पान करने से साधक मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।

सुर सुंदरी प्रयोग-

साधना यहां सारगर्भित रूप में प्रस्तुत की जा रही है।
मंत्र है- ऊॅँ ह्रीं ह्रीं आगच्छ सुर सुंदरी स्वाहा।
किसी एकान्त स्थान में शिवलिंग की स्थापना प्रात: मध्याह्न् और संध्या तीनों समय तीन हजार बार इस मंत्र का जप करें। इस प्रकार बारहवें दिन सुर सुंदरी देवी सम्मुख प्रकट होकर साक्षात पूछती है कि तुमने मेरा स्मरण किस हेतु किया है। तभी साधक देवी से विनय करके उसे अपने दु:ख का कारण बताये तो देवी साधक की सभी सांसारिक ऐश्वर्य कामनाओं की पूर्ति करती हैं।

कर्ण पिशाचिनी  प्रयोग-

कर्ण पिशाचिनी यक्षिणी की संतान है| यक्ष-यक्षिणी देव लोक से निष्कासित, देवी-देवता होते हैं| प्राचीन मंदिरों की भित्तियों पर आज भी देवी-देवताओं के साथ-साथ यक्ष-यक्षिणी की उत्कीर्ण आकृतियां देखी जा सकती हैं| अर्थात देवकुल के होने के बावजूद नकारात्मक प्रभाव के कारण यह त्याज्य मानी जाती हैं| यक्ष-यक्षिणी की संतान कर्ण पिशाचिनी जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है पिशाच योनि की होती है| इसमे अपार शक्ति होती है| इसे कर्ण पिशाचिनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि जो व्यक्ति इसे सिद्ध कर लेता है, वह किसी के बारे में अत्यंत गोपनीय सत्य भी जान सकता है, क्योंकि वह सत्य यही कर्ण पिशाचिनी साधक के कान में कह जाती है|
यह प्रयोग 11 दिनों तक किया जाता है, बीच में रुक नहीं सकते हैं। यह स्पष्ट रूप से जान लें।  चैघड़िया मुहूर्त के दौरान पीतल या कांसे की बनी थाली लें। उसमें लाल सिंदूर से त्रिशूल का आकार बना लें।
इस अभी बने त्रिशूल की विधि-विधान से सही समय पर दिन और रात में पूजा करें। सफलता मिली तो आपका कार्य निश्चित रूप से बनेगा।
मंत्र हैं-
ऊॅँ नम: कर्णपिशाचनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्ण्ो अवतरावतर अतीता अतीता नागतवर्त मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचनी स्वहा।

गाय का देसी घी लें। उसका दीपक जलाएं। 11०० बार मंत्र जप करें। इसके सामने ध्यान रहे कि थाली भी हो। अब घी और तेल का एक दीया जलाएं। फिर से 11०० मंत्र जप करें। इसी तरह से ग्यारह दिनों तक प्रतिदिन दोबार दीये जलाएं और मंत्रों का जप कर लेंगे तो कर्ण पिशाचनी मंत्र सिद्धि हो जाएगी। इसके बाद कोई भी सवाल मन में सोचेंगे तो पिशाच या पिशाचनी उसका जवाब आपके कान में सुना देगा। इस मंत्र को कभी किसी के सामने मौखिक रूप से बोलना अच्छा नहीं होता है। इस साधना में गोपनीयता से ही साधना करने से आपका कार्य सिद्ध होता है। अगर आपको लगे कि साधना में बाधा आ रही है तो ध्ौर्य से सुलझाये। कभी क्रोध या मोह में लीन होकर यह कार्य न करें। अन्यथा आपसे चूक हो जाएगी, जिसके दुष्परिणाम होंगे। साधना भी असफल रह जाएगी। फिर सोचेंगे कि आप सफल क्यों नहीं हुए? साधना के दौरान किसी को साधना के विषय में न बताये, कोई पूछे तो कह दें कि वह भगवत शरण में हैं। सारे कार्य उन्हीं शरण में लेकर करते हैं।

सावधानियां-
एक समय भोजन करें।  काले वस्त्र धारण करें।  स्त्री से बातचीत भी वर्जित है। (साधनाकाल में)। मन-कर्म-वचन की शुद्धि रखें।

कर्ण पिशाचिनी प्रयोग- 

प्रयोग जो हम आपको बताने जा रहे हैं, वह और भी भी जटिल है। यह साधना और भी जटिल और कठिन है। आपको यह कार्य प्रात: एक बार सुबह और एक बार शाम को करना होगा। रात के समय यह कार्य किसी उत्तम मुहूर्त में शुरू करना चाहिए। सबसे पहले श्मशान की राख व काली हकीक की माला ले कर आएं। इसके पश्चात काले रंग के वस्त्र धारण कर लें। आसन जिस पर पूजा होगी, उस पर भी काला वस्त्र बिछा दें। आम के पाटे पर अबीर की एक परत बिछा दें। अब अबीर की लकड़ी लें। उस पर निम्न उल्लेखित मंत्र 1०8 बार लिख्ो और मिटा दंे।
मंत्र है-
ऊँ नमः कर्ण पिशाचिनी मत्तकारिणी प्रवेशे

अतीतनागतवर्तमानानि सत्यं कथय में स्वाहा।

जब आप मंत्र लिख्ों और मिटाएं, तब 11०० बार यही मंत्र जपे भी। यह कार्य 21 दिनों तक प्रतिदिन करते रहें। जब आप सोयें तो अकेले ही सोयें। सिरहाने पर पाटा रख्ों। ध्यान रहे कि कोई और आपके साथ न सोये। यह साधना अगर आपने सफलता पूर्वक कर ली। तब जो भी शंका आपक मन आएगी, वह पिशाच आकर दूर कर देगा। जो भी प्रश्न आप पूछेंगे, उसका सही-सही उत्तर आपको प्राप्त होगा। साधना को गोपनीय रखना नितांत आवश्यक है। विश्ोष तौर पर साधना की अवधि में इस बारे में किसी को न बताएं।

कर्ण पिशाचिनी प्रयोग-

साधना का अगला तरीका है कि आप गाय का गोबर ले लें। उसमें सेंधा नमक मिला दें। इसके बाद वह कमरा इससे लीप दें, जहां यह साधना करनी है। जब यह सूख जाए तो आप हल्दी, चंदन, कुमकुद और अक्षत से कुश घास का आसन बना लें। अब किसी भी रुद्राक्ष माला से निम्न उल्लेखित माला का जप करें।
मंत्र है-
ऊॅँ ह्शो ह्सा नमोह: भग्वतिह् कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी स्वह:।
यह जप अगर आप 11 दिन तक दस हजार बार प्रतिदिन कर पायें तो साधना सिद्ध हो जाती है। इस पर कोई संदेह नहीं करना चाहिए। अंत में एक बात फिर दोहरा देता हूं कि यह अच्छा होगा कि उपरोक्त साधनाएं आप किसी योग्य गुरु के सम्पर्क या फिर योग्य तांत्रिक से दीक्ष लेकर मंत्र जपे और प्रयोग सिद्ध करें।

यह भी पढ़ें – साधना में होने वाली अनुभूतियां, ईश्वरीय बीज को जगाने में न घबराये साधक 

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2 COMMENTS

  1. तंत्र मंत्र यंत्र महाशास्त्र का मंत्र और साधना है

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