52 शक्तिपीठ: हैं मंगलकारी

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52 shaktipeeth: hain mangalakaaree

क्या हैं शक्तिपीठ ?

पौराणिक कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष ने कनखल में अपने बृहस्पति ‘ नामक यज्ञ के आयोजन में सारे देवताओं को आमंत्रित किया, किंतु अपने जामाता  ( दामाद ) शंकरजी को नहीं बुलाया। पिता के यहां यज्ञ का समाचार पाकर भगवान शंकर के मना करने पर भी शिवपत्नी ‘ सती ‘ पिता के घर चली गईं। अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपने पति शिवजी का भाग न देखकर और पिता द्वारा शिवजी की निंदा सुनकर क्रोध के मारे उन्होंने यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। इस पर भगवान शंकर के गणों ने भारी उपद्रव कर दक्ष को मार डाला।

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भगवान शंकर सती का प्राणहीन शरीर देखकर क्रोध में उन्मत्त हो गए और सती के मृत शरीर को कंधे पर रखकर उन्मत्तभाव से तांडवनृत्य करते हुए भूमंडल पर घूमने लगे। सृष्टि के ध्वंस हो जाने की आशंका से भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए। सती के शरीर के अंश तथा आभूषण 52 स्थानों पर गिरे। उन स्थानों पर एक – एक शक्ति तथा एक – एक भैरव, नाना प्रकार के स्वरूप धारण करके स्थित हो गए। देश के उन स्थानों को ‘ महापीठ ‘ या ‘ शक्तिपीठ ‘ कहा जाता है।

 

52 शक्तिपीठों के स्थान व वर्णन

‘ तंत्र – चूड़ामणि ‘ में वैसे तो शक्तिपीठों के 53 स्थान गिनाए गए हैं, लेकिन वामगंड के गिरने के स्थानों का दो जगह उल्लेख हैं। पुनरुक्ति छोड़ देने पर 52 स्थान ही रहते है|  शिवचरित्र ‘ और ‘ दाक्षायणी – तंत्र ‘ आदि पुस्तकों में 51 शक्तिपीठ गिनाए गए हैं। यहां हम तंत्र – चूड़ामणि ‘ के अनुसार उन 52 स्थानों का उल्लेख कर रहे हैं।

 

 

1     किरीट शक्तिपीठ – विमला देवी शक्तिपीठ : किरीट शक्ति पीठ, इनकी महिमा का गान जितन किया जाए, वह कम ही होगा। बंगाल में यह शक्तिपीठ हावड़ा-बरहरवा रेलवे लाइन पर हावड़ा से ढ़ाई किलोमीटर दूर लालबाग कोट स्टेशन से करीब पांच किलोमीटर पर बड़नगर के पास गंगा तट पर स्थित है। यहां पर भगवती सती के शरीर से किरीट नाम का शिरोभूषण गिरा था। यहां की शक्ति विमला व भुवनेशी और भ्ौरव संवर्त हैं। यह पावन धाम श्रद्धा व भक्ति से सराबोर रहता है।

सती का किरीट यहां पर गिरा था। विमला रूप में देवी किरीट भैरव के साथ गंगा तट पर स्थित हैं। यहां एक अति प्राचीन मंदिर है। अनेक ( उत्तर प्रदेश ) तांत्रिक संतों को यह साधना – भूमि रही है। कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर उ.प्र . के मुक्तेश्वरी मंदिर को मानते हैं। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी हैं तथा भैरव हैं संवर्त।

यात्रा मार्ग : कोलकाता के हावड़ा स्टेशन से बरहरवा ब्रांच लाइन पर खटाराघाट स्टेशन तक अनेक गाड़ियां उपलब्ध हैं। वहां से 8 किलोमीटर पर लालबाग कोर्ट नामक जगह तक एक – दो गाड़ियां और बसें उपलब्ध रहती हैं। तीन – चार किलोमीटर पैदल या रिक्शे से गंगातट पर पहुंचने पर वटनगर में देवी प्रतिष्ठित हैं।

संक्षेप में….. 
यह पश्चिम बंगाल में मुर्शीदाबाद जिला किरीटकोण ग्राम के पास स्थित है|यहाँ माता सति का मुकुट गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ विमला है|इसके रक्षक भैरव को संवर्त्त भैरव कहते हैं|

2     कात्यायनीपीठ उमाशक्ति देवी :  यह शक्तिपीठ वृंदावन में अवस्थित है। यहां सती के केशपाश का निपात हुवा था| यह प्राचीन शक्तिपीठ है यहाँ बज्र बालाओं ने श्रीकृष्ण को पाने हेतु शक्तिपीठ मां कात्यायनी की पूजा – अर्चना की थी। कालरूप पीठ के तत्कालीन स्वामी के शिष्यों ने इस भूतेश्वर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। यहां की शक्ति उमा या कात्यायनी हैं तथा भूतेश अथवा भूतेश्वर यहां के भैरव हैं। भूतेश्वर महादेव का मंदिर ही प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। वृंदावन हेतु जाने वाले मार्ग पर इस मंदिर के अतिरिक्त अनेक आश्रम व दर्शनीय मंदिर अवस्थित हैं।

यात्रा मार्ग : मथुरा से वृंदावन जाते हुए लगभग दो किलोमीटर पहले ही यह मंदिर पड़ता है। भूतेश्वर महादेव मंदिर जाने वाले यात्री यहां उतर सकते हैं। वृंदावन से रिक्शा या तांगे से भी जाया जा सकता है।

संक्षेप में….. 
यह शक्ति पीठ उत्तरप्रदेश के मथुरा के पास वृन्दावन में भुतेश्वर स्थान पर स्थित है|यहाँ माता सति के गुच्छे व चुड़ामणि गिरे थे|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम उमा है|इसके रक्षक भैरव को भूतेश्वर भैरव के नाम से जानते हैं|

3    करवीर (शर्करार ) शक्तिपीठ / महिषमर्दिनी देवी : कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहां सती के दोनों नेत्रों का निपात हुआ था। यहां की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव क्रोधीश हैं। मंदिर अति प्राचीन है और इसकी वास्तुरचना श्रीयंत्र पर आधारित है। यह पांच शिखरों में तीन मंडपों से शोभित है। गर्भगृह मंडप, मध्य मंडप व गरुड मंडप मुख्य हैं। मध्य मंडप में अनेक स्तंभ हैं, जिन पर हजारों मूर्तियां शिल्प आकृति में हैं।

यात्रा मार्ग : यह मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर नगर में कोल्हापुर रेलवे स्टेशन से करीब ही है। यहां से मुंबई 472 किलोमीटर व पुणे 280 किलोमीटर है। इसके समीप 48 किलोमीटर पर मिराज स्टेशन है।

 अन्य मान्यता के अनुसार, शर्कररे (करवीर) शक्तिपीठ,  जिसकी ज्यादा मान्यता है ……
यह शक्ति पीठ पाकिस्तान में कराची के सुक्कर स्टेशन के पास है|जहाँ माता सति की आंख गिरी थी|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम महिषासुर मर्दिनी है|तथा इस शक्ति पीठ की रक्षा क्रोधिश भैरव करते हैं|……

नोट- दोनों स्थान पावन है , पूर्ण श्रद्धा भाव से दर्शन करें….

4    श्री पर्वत शक्तिपीठ / श्री सुंदरी शक्तिपीठ : यहां पर सती का दायां तलुवा गिरा था। देवी श्रीसुंदरी, सुंदरानंद भैरव के साथ श्रीपर्वत पर प्रतिष्ठित हैं। मंदिर एवं पीठ – स्थल लद्दाख के पास किसी पर्वत शिखर पर स्थित है, जहां आजकल सुरक्षा की दृष्टि से जाने नहीं दिया जाता है। इसके लिए विशेष अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। इसकी स्थिति को लेकर मतांतर है। कुछ इसे लद्दाख में मानते हैं, तो कुछ आसाम के सिलहट से चार किलोमीटर दक्षिण – पश्चिम में जैनपुर में मानते हैं। यहां की शक्ति श्री सुंदरी तथा भैरव सुंदरानंद हैं

संक्षेप में….. 
यह शक्ति पीठ लद्दाख के श्री पर्वत पर स्थित है| यहाँ माता सति के दांये पैर की पायल गिरी थी| दुसरी मान्यता आन्ध्रप्रदेश के श्री शैली में स्थित है इस शक्ति पीठ की शक्ति श्री सुन्दरी देवी है| इस शक्ति पीठ के रक्षक भैरव को सुन्दर आनंद भैरव कहते हैं|

5     विशालाक्षी शक्तिपीठ : यहां सती के दाहिने कान की मणि का निपात हुआ था। यह स्थल बनारस के मीरघाट मुहल्ले में अवस्थित है, जहां शक्तिपीठ का मंदिर भी है। ग्रंथों के अनुसार विशालाक्षी नौ गौरियों में पंचम हैं तथा भगवान श्री काशी विश्वनाथ उनके मंदिर के समीप ही विश्राम करते हैं। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

यात्रा मार्ग : यह स्थान वायु मार्ग तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है। वाराणसी, मुगलसराय तथा काशी में से किसी भी स्टेशन पर उतरा जा सकता है। यहां से बस , टैक्सी आदि द्वारा पहुंचा जा सकता है। वाराणसी की गलिया तांगे या रिक्शे से भी पहुंचा जा सकता  है।

संक्षेप में….. 
यह उत्तरप्रदेश के वाराणसी काशी में स्थित है|यहाँ मणिकर्णिका घाट पर माता सति के कान के कुंडल गिरे थे|इसकी शक्ति माँ विशालाक्षी मणिकर्णि है| इसके रक्षक भैरव को कालभैरव कहते हैं|

6     गोदावरी तट शक्तिपीठ / विश्वमातृका शक्तिपीठ : सती की देह से यहां पर वामगंह ( गाल ) गिरा था। विश्वमातृका रुक्मिणी देवी, विश्वेश्वरी देवी दंडपाणि भैरव के साथ गोदावरी तट पर स्थित हैं। मंदिर खंडहर रूप में था, जीर्णोद्धार कराया गया है। अधिकतर इसके अस्तित्व के बारे में नहीं जानते हैं।

यात्रा मार्ग : आंध्र प्रदेश में राजमहेंद्री ( राजमुंद्री ) स्टेशन के पास ही एक छोटा स्टेशन गोदावरी है। गोदावरी स्टेशन पर उतरकर गोदावरी नदी के पार कुबूर नामक स्थान पर प्रसिद्ध कोटितीर्थ है। वहीं से यात्रा मार्ग है।

संक्षेप में….. गोदावरीतीर- विश्वेश्वरी शक्तिपीठ
यह गोदावरी तट पर स्थित है| यहाँ माता सति के दक्षिण गंड( गाल) गिरे थे|इस शक्ति पीठ की शक्ति माता विश्वेश्वरी है| इसके रक्षक भैरव को दंडपाणि भैरव कहते हैं|

7  शुचींद्रम शक्तिपीठ / नारायणी शक्तिपीठ : शुचींद्रम में स्थित स्थाणु शिव के मंदिर में ही यह शक्तिपीठ नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं। यहां सती के उड़दंत गिरे थे। मान्यता है कि देवी अब तक तपस्यारत हैं। शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम् क्षेत्र भी कहा जाता है|

यात्रा मार्ग : कन्या कुमारी और त्रिवेंद्रम के मार्ग में बारह किलोमीटर पर यह पीठ स्थित है।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ तमिलनाडु के कन्याकुमारी तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर स्थित है|यहाँ माता सति के ऊपरी दांत गिरे थे|इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ नारायणी हैं|इसके रक्षक भैरव को संहार भैरव कहते हैं|

8     पंचसागर वाराही शक्तिपीठ : सती की देह से अधोदंत पंक्ति सागर के बीच गिरी थी। शक्तिपीठ को पंपसागर कहते हैं और शक्ति वाराही, महारुद भैरव के साथ प्रतिष्ठित हैं। निश्चित स्थान अज्ञात है।

. संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ पंच सागर( अज्ञात स्थान) यहां माता सति के निचले दांत गिरे थे| इसकी शक्ति वराही है| और महारुद्र भैरव इसकी रक्षा करते हैं|

9    ज्वालामुखी देवी शक्तिपीठ : शिव सती के शव को कंधे पर उठा कर जब तांडव कर रहे थे, तो सती के शरीर से भयंकर ज्वालाएं प्रस्फुटित होकर एक पहाड़ पर जा गिरीं। सतयुग में राजा भूमिचंद ने उन ज्वालाओं की खोज की तथा वहां एक मंदिर बनवा दिया। देवीभागवत ‘ के अनुसार जहां ज्वालामुखी मंदिर है, वहां सती की जिह्वा गिरी थी और देवी अंबिका ज्वालामुखी रूप में उन्मत्त भैरव के साथ प्रतिष्ठित हैं।

विशेष विवरण : मंदिर में प्रज्वलित ज्योतियों की संख्या चौदह है। कुंड तथा प्रवेश द्वार के सामने वाली दीवार की ज्योतियों को छोड़कर अन्य ज्वालाएं कई – कई घंटों के लिए लुप्त हो जाती हैं। इन ज्वालाओं पर श्रद्धालु भक्त बर्फी, पेड़े तथा हलवा चढ़ाते हैं। चढ़ाए गए भोग के जलने से ज्वालाओं के आसपास की शिलाएं स्याह पड़ गई हैं। पुजारी इसी राख का मंगलतिलक भक्तों को लगाते हैं। निरंतर भोग के चढ़ने से जब ज्योतियां लघुकाय होने लगती हैं, तब पुजारी चांदी की बारीक छड़ों से भोग को हटा देते हैं और ज्योतियां पुनः ज्वोल्यमान हो उठती हैं। इन ज्वालाओं के नाम हैं : ज्वालामुखी, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका तथा अंजनी।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है|यहाँ माता सति की जीभा गिरी थी|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम सिद्धिदा अंबिका है|रक्षक भैरव को उन्मत्त भैरव कहते हैं|

यात्रा मार्ग : पठानकोट से 120 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा स्टेशन है। यहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर कांगड़ा मंदिर का स्टेशन आता है। यहां से ज्वालामुखी मंदिर करीब 2 किलोमीटर दूर पड़ता है। यदि बस द्वारा पठानकोट से यात्रा की जाए तो कांगड़ा बस स्टैंड से एक किलोमीटर पर यह मंदिर पड़ता है। पठानकोट से बैजनाथ पपरोला जाने वाली रेलवे लाइन पर ज्वालामुखी रेलवे स्टेशन है। कांगड़ा से यहां के लिए बसें चलती हैं। यह स्थान स्टेशन से 25 किलोमीटर दूर है। अतः अधिकतर यात्री बस से ही जाना पसंद करते हैं।

10     भैरव पर्वत शक्तिपीठ / अवंती देवी : यहां पर सती का ऊर्ध्व ओष्ठ गिरा था। भैरव पर्वत पर देवी अवंती लंबकर्ण भैरव के साथ अवस्थित हैं। मध्य प्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित पर्वत पर देवी का स्थान है। कुछ के मतानुसार गुजरात के गिरनार पर्वत के निकट यह पीठ है। दोनों स्थानों पर इनकी मान्यता है पर उज्जैन में मानना ज्यादा उचित है।

यात्रा मार्ग : उज्जैन शहर में ही क्षिप्रा नदी के तट पर भैरव पर्वत पर देवी मंदिर है।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ मध्यप्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर भैरव पर्वत पर स्थित है | यहाँ माता सति के ओष्ठ गिरे थे| इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ अवंती देवी है| इसके रक्षक भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं|

11     अट्टहास शक्तिपीठ / फुल्लरा देवी : यहां सती का अधरोष्ठ गिरा था। मां फुल्लरा विश्वेश भैरव के साथ अवस्थित हैं। फुल्लरा मंदिर भी प्राचीन है। यहां देवी की नित्य पूजा होती है।

यात्रा मार्ग : दिल्ली – कोलकाता लाइन के वर्द्धमान स्टेशन पर उतरकर बस द्वारा लाभपुर जाया जा सकता है। दिल्ली – कोलकाता मेन लाइन पर अहमदपुर नामक स्टेशन है। वहां से कटवा लाइन पर लाभपुर स्टेशन है। वहीं पास में फुल्लरा देवी मंदिर है। स्थान का नाम अट्टहास है।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर स्थित है| यहाँ माता सति के ओष्ठ गिरे थे| इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम फुल्लरा देवी है| इसके रक्षक भैरव को विश्वेश भैरव कहते हैं|

12    जनस्थान शक्तिपीठ / भ्रामरी भद्रकाली : यहां पर चिबुक गिरने के कारण देवी भ्रामरी भद्रकाली रूप में विकृताक्ष भैरव के साथ स्थित हैं। भद्रकाली मंदिर ही शक्तिपीठ है तथा इसमें शिखर आदि नहीं हैं। केवल भद्रकाली की मूर्ति नवदुर्गाओं की मूर्तियों के मध्य स्थित है।

यात्रा मार्ग : महाराष्ट्र में नासिक के पंचवटी में भद्रकाली मंदिर की शक्तिपीठ स्थित है।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ महाराष्ट्र के नाशिक में गोदावरी नदी घाटी में जन स्थान में स्थित है| यहाँ माता सति की ठोड़ी गिरी थी| इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ भ्रामरी देवी है| इसके रक्षक भैरव को विकृताक्ष भैरव कहते हैं|

13      कश्मीर शक्तिपीठ / महामाया देवी : कश्मीर में अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शिव के हिम – ज्योतिलिंग के साथ दो हिम और बनते हैं, जिसमें एक गणेशपीठ व दूसरा पार्वतोपीठ है। इसी पार्वतीपीठ को महामाया शक्तिपीठ कहा जाता है। यहां सती का कंठ निपात हुआ था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं। ( विवरण हेतु अमरनाथ देखें ) ।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ भारत के कश्मीर में पहलगाम के पास है|यहाँ माता सति का कंठ गिरा था|इसकी शक्ति का नाम महामाया है|इसके रक्षक भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं|

14     नंदीपुरपीठ / नंदिनी देवी : यहां पर सती का कंठहार गिरने से देवी नंदिनी रूप में नंदिकेश्वर भैरव के साथ प्रतिष्ठित है।

शक्तिपीठ एक प्राचीन वटवृक्ष के नीचे प्रतिष्ठित हैं। वहीं देवी प्रतिमा की पूजा होती है।

यात्रा मार्ग : दिल्ली – क्यूल – हावड़ा पर वर्द्धमान से पहले ही स्टेशन है सैथिया। सैंथिया पहुंचने के लिए वर्द्धमान से बस यात्रा भी उपलब्ध है। सैंथिया स्टेशन के पास ही एक स्थान है नंदीपुर। यहीं वटवृक्ष के नीचे शक्तिपीठ स्थित है।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर में स्थित है| यहाँ माता सति का गले का हार गिरा था| इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम नंदिनी है| इसके रक्षक भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं|

15    श्री शैलम् शक्तिपीठ / महालक्ष्मी भ्रमराम्या देवी : यहां पर ग्रीवा गिरने से देवी महालक्ष्मी रूप में शंबरानंद भैरव या ईश्वरानंद के साथ अवस्थित हैं। श्रीशैल के मल्लिकार्जुन पर्वत पर भ्रमराम्बा मंदिर स्थित है  ।

यात्रा मार्ग : आंध्रा प्रदेश:  श्रीशैल के मल्लिकार्जुन पर्वत के  निकटस्थ रेलवे स्टेशन मरकापुर रोड है तथा हवाई अड्डा हैदराबाद है, जहां से यह स्थल 250 किलोमीटर पर स्थित है।

अन्य मान्यता है …..
यह बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर पूर्व में जैनपुर गाँव के समीप शैल नामक स्थान पर स्थित है|यहाँ माता सति का गला गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति महालक्ष्मी है|इसकी रक्षा शम्बरानंद भैरव करते हैं|

नोट- दोनों स्थान पावन है , पूर्ण श्रद्धा भाव से दर्शन करें….

16     नलहरि शक्तिपीठ / महाकाली : सती की नला ( आंत ) गिरने से यहां पर नलादेवी महाकाली योगेश भैरव के साथ अवस्थित हैं। यहां कोई मंदिर नहीं है। एक टीले पर आंत जैसी शक्ल बनी है। उसी की पूजा होती है।

यात्रा मार्ग : हावड़ा – क्यूल मेन लाइन पर नलहाठी स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर यह प्रसिद्ध टीला स्थित है। बोलपुर शांति निकेतन से 75 किलोमीटर तथा संथिया से 42 किलोमीटर दूर है।

संक्षेप में…..नलहाटी- कालिका तारापीठ
यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूमि के नलहाटी में स्थित है| यहाँ माता सति के पैर की हड्डी गिरी थी| इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम कालिका देवी है| इसके रक्षक भैरव को योगेश भैरव कहते हैं|

17     मिथिला शक्तिपीठ / महादेवी उमा मिथिलेश्वरी : इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। बिहार के मिथिला के अनेक देवी मंदिरों को शक्तिपीठ माना जाता है। यहां सती का वाम स्कंध का निपात हुआ था। इसके तीन स्थान माने जाते हैं- 1. जनकपुर नेपाल के मधुबनी में उच्चैठ नामक स्थान का वनदुर्गा मंदिर, 2. सहरसा बिहार के पास उग्रतारा मंदिर, 3. समस्तीपुर बिहार के पास जयमंगला देवी मंदिर। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।

संक्षेप में…..मिथिला- उमा महादेवी शक्तिपीठ
यह शक्ति पीठ भारत और नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के पास मिथिला में स्थित है| यहाँ माता सति का बांया स्कंध गिरा था| इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ उमां है| रक्षक भैरव को महोदर भैरव कहते हैं|

नोट- सभी स्थान पावन है , पूर्ण श्रद्धा भाव से दर्शन करें….

18    रत्नावली शक्तिपीठ / कुमारी : सती का दक्षिण स्कंध गिरने से देवी कुमारी शिव के साथ अवस्थित हैं। रत्नावली पर्वत पर चेन्नई के पास यह पीठ है। एक अन्य मत के अनुसार कुमारी में ही कुमारी रूप में देवी अवस्थित हैं। यहां शक्ति कुमारी व भैरव शिव हैं।

अन्य मान्यता …...रत्नावली- कुमारी शक्तिपीठ
यह बंगाल में हुगली जिले के खाना कुल कृष्णानगर मार्ग पर स्थित है| यह रत्नावली नदी के तट पर स्थित है| यहाँ माता सति का दांया स्कंध गिरा था| इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम कुमारी देवी है| इसके रक्षक भैरव को शिव कहते हैं|

नोट- सभी स्थान पावन है , पूर्ण श्रद्धा भाव से दर्शन करें….

19    अंबाजी शक्तिपीठ / प्रभासपीठ / चंद्रभागा देवी : प्रभास क्षेत्र में सती का उदर गिरा था, वहीं देवी चंद्रभागा, वक्रतुंड भैरव के साथ अवस्थित हैं। गिरनार पर्वत पर अंबाजी का मंदिर और महाकाली शिखर पर काली मंदिर। दोनों को शक्तिपीठ की मान्यता है ।

.संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ गुजरात के जुनागड़ जिले में सोमनाथ मंदिर के पास स्थित है | यहाँ प्रभास क्षेत्र में माता सति का उदर गिरा था| इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ चन्द्रभागा है| वक्रतुण्ड भैरव इसकी रक्षा करते हैं|

20    रामगिरी शक्तिपीठ / शिवानी : इस शक्तिपीठ को लेकर मतांतर है। कुछ मैहर ( मध्य प्रदेश ) के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। दोनों ही स्थान मध्य प्रदेश में हैं व तीर्थ हैं। रामगिरी पर्वत चित्रकूट में है। यहां देवी के दाएं स्तन का निपात हुआ था। यहां की शक्ति शिवानी तथा भैरव चंड हैं।

यात्रा मार्गः चित्रकूट धाम का कर्वी स्टेशन निजामुद्दीन – जबलपुर रेल लाइन के मध्य स्थित है। लखनऊ से यह 285 किलोमीटर व मानिकपुर से 30 किलोमीटर है।

संक्षेप में…..
यह शक्ति पीठ उत्तरप्रदेश के झांसी मणिपुर रेलवे स्टेशन चित्र कुट के पास रामगिरि में स्थित है|यहाँ माता सति का दांया वक्ष गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति शिवानी है|रक्षक भैरव को चंड भैरव के नाम से जानते हैं|

नोट- दोनों स्थान पावन है , पूर्ण श्रद्धा भाव से दर्शन करें….

21    जालंधर शक्तिपीठ / त्रिपुरमालिनी देवी : प्राचीन जालंधर को त्रिगर्त प्रदेश मानते हैं, क्योंकि इसमें कांगड़ा शक्ति त्रिकोण तीन जाग्रत देवियां – चिंतापूर्णी , ज्वालामुखी व विद्येश्वरी विराजती हैं। यहां विश्वमुखी देवी का मंदिर है, जहां पीठ के स्थान पर स्तनमूर्ति कपड़े से ढकी रहती है और धातु निर्मित मुखमंडल बाहर दिखता है। इसे स्तनपीठ एवं त्रिगर्त तीर्थ भी कहते हैं और इसी को शक्तिपीठ माना जाता है। यहां सती के वामस्तन का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुरमालनी तथा भैरव भीषण हैं।

यात्रा मार्ग : यहां पहुंचने के लिए पठानकोट- बैजनाथ – पपरोला तक के रेल मार्ग से नगरोटा बगवां स्टेशन पर उतर कर मलां आकर पांच किलोमीटर बस से यात्रा करनी पड़ती है। पठानकोट से तथा ऊना से सीधी बस सेवा कांगड़ा जाती है।

संक्षेप में….
यह शक्ति पीठ पंजाब के जालंधर में स्थित है|छावनी स्टेशन के पास देवी तालाब है जहाँ माता सति का बांया वक्ष(स्तन) गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम त्रिपुर मालिनी है|भीषण भैरव इसके रक्षक है|

22     वैद्यनाथ हार्दपीठ / शक्तिपीठ जयदुर्गा हृदयेश्वरी : यहां सती का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ हैं। एक मान्यता अनुसार यहीं पर सती का दाह संस्कार भी हुआ था। पद्मपुराण ‘ के अनुसार हृदयपीठ के समान महत्त्वपूर्ण शक्तिपीठ पूरे ब्रह्मांड में अन्यत्र नहीं है।

यात्रा मार्ग : पटना – कोलकाता रेल मार्ग के मध्य में गिरिडीह स्टेशन पर उतरकर टैंपो द्वारा बैद्यनाथ पहुंचा जाता है। सड़क मार्ग से यह पटना , कोलकाता आदि से सीधा जुड़ा है।

संक्षेप में….
यह शक्ति पीठ झारखंड के देवघर में बैधनाथ धाम नाम से प्रतिष्ठित है|यहाँ माता सति का हृदय गिरा था|इसकी शक्ति जय दुर्गा है|रक्षक भैरव को बैधनाथ कहते हैं|

23    वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ / महिषमर्दिनी वक्रेश्वरी : यह स्थल काफी बड़े इलाके में फैला है। यहां सैकड़ों शिवालय हैं, जो जीर्ण अवस्था में हैं। चूंकि स्थल ग्राम में है , अत : जीर्णोद्धार नहीं हो पाया है। जिस दिन कोई भक्त इसे देखेगा तो इसका उद्धार हो जाएगा और यह एक सुंदर शक्तिपीठ बन जाएगा। इस स्थान पर शिवालयों के अतिरिक्त तप्त जल के अनेक कुंड हैं। एक में वाष्प निकलती है। दूसरा मद्धिम गर्म जल का है तो शेष साधारण जल से भरे है। यह स्थान वाकेश्वर तट पर स्थित है अतः वक्रेश्वर कहलाता है यहाँ का मुख्य मंदिर वक्रेश्वर शिव मंदिर है, जहां सती का मन गिरा था| यहां की शक्ति महिषासुरमर्दिक तथा भैरव वक्त्रनाथ हैं।

यात्रा मार्ग : यह संथिया स्टेशन से लगभग ग्यारह स्थित है पश्चिम बंगाल के नगरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है, विशेषकर शांति निकेतन से।

संक्षेप में….
यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूमि दुबराजपुर से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पाप हर नदी के तट पर स्थित है| यहाँ माता सति का भ्रू मध्य( मन;) गिरा था| इस शक्ति पीठ की शक्ति महिषमर्दिनी है| इसके रक्षक भैरव को वक्र नाथ भैरव कहते हैं|

24    कन्यकाश्रम शक्तिपीठ / कण्य का चक्र शाणि देवी : तीन सागरों- हिंद महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम स्थल पर स्थित कन्याकुमारी के मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर है। यह कुमारी देवी की सखी हैं। यह मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ देवी के देह का पृष्ठ भाग ( मतांतर से ऊर्ध्वदंत ) का पतन हुआ था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमिष या स्थाणु ( मतांतर से संहार ) हैं कन्याकुमारी एक अंतरीप तथा भारत की अंतिम दक्षिणी सीमा है। यह एक पावन तीर्थ बन गया है|

यात्रा मार्ग : नई दिल्ली व दक्षिण की अनेक रेलें सीधे कन्याकुमारी स्टेशन तक जाती हैं|  दक्षिण के अनेक प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग से सीधा जुड़ा है|

संक्षेप में….
यह कन्याआश्रम यहाँ माता सति का पृष्ठ भाग गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति सर्वाणी माता है|रक्षक भैरव को निमिष कहते हैं|

25     बहुला शक्तिपीठ : यहां सतो की देह से वाम बाहु गिरी थी। देवी चंडिका भीरुक भैरव के साथ प्रतिष्ठित हैं। बहुला का स्थान महाक्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है। यह बंगाल के जिला योरभूमि में कटवा नामक स्टेशन के पास केतुब्रह्म गांव में है।

संक्षेप में….
पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिला जिससे 8 किमी दूर कटुआ केतु ग्राम के पास अजेय नदी तट पर स्थित है|यहाँ माता सति का बांया हाथ गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति देवी बहुला चण्डीका है|रक्षक भैरव भीरुक सेवा में स्थापित है|

26     मणिवेदिका शक्तिपीठ / गायत्रीदेवी : सती की दोनों कलाई गिरने से देवी गायत्री रूप में सर्वानंद भैरव के साथ गायत्री पर्वत पर प्रतिष्ठित हैं। यह शक्तिपीठ पुष्कर ( राजस्थान ) में है ( विवरण के लिए देखें पुष्कर सरोवर ) ।

यात्रा मार्ग : दिल्ली – अहमदाबाद मार्ग के मध्य अजमेर जक्शन पर उतरकर टैक्सी द्वारा पुष्कर पहुंचा जा सकता है। पहाड़ी चढ़कर मंदिर स्थल तक जाते हैं।

संक्षेप में….
यह अजमेर के पास पुष्कर के मणिबंध गायत्री पर्वत पर स्थित है|यहाँ माता सति के दो मणिबंध गिरे थे|इसकी शक्ति माँ गायत्री है|रक्षक भैरव को सर्वानंद भैरव कहते हैं|

27      उज्जयिनी शक्तिपीठ / देवी मंगल चंडी : उज्जैन में पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ है। इसके निकट रुद्र सरोवर है, जहां सती की कोहनी का निपात हुआ था, अत : यहां कोहनी की पूजा होती है। यहां की शक्ति मंगल चंडिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं। मंदिर एक चहार – दीवारी से घिरा है। मंदिर के बाहर एक बावड़ी है, जिसके मध्य एक स्तंभ है। मंदिर परिसर में दो बड़े – बड़े दीप स्तंभ हैं। मंदिर में मुख्य प्रतिमा के स्थान पर श्रीयंत्र का पूजन होता है। मंदिर में अनेक देवी की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

यात्रा मार्ग : उज्जैन देश के सभी राजमार्गों से जुड़ा है। रेल मार्ग से इंदौर, उज्जैन जाया जा सकता है, जहां दिल्ली से रेलें आती हैं। मध्य प्रदेश के प्रमुख नगरों से यह सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है।

अन्य मान्यता के अनुसार बंगाल में ….
भारत के पश्चिम बंगाल में बर्धमान जिला से 16 किमी दूर गुस्कुर स्टेशन जहाँ उज्जयिनी नामक स्थान पर माता सति की दांयी कलाई गीरी थी|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम मंगल चन्द्रिका है|कपिलांबर भैरव इसके रक्षक भैरव है|

नोट- दोनों स्थान पावन है , पूर्ण श्रद्धा भाव से दर्शन करें….वैसे पश्चिम बंगाल की अन्य मान्यता है…….

28     प्रयाग शक्तिपीठ / देवी ललिता : प्रयाग के ही तीन मंदिरों को शक्तिपीठ माना गया है, पर पुराणों व दिशानुसार अक्षयवट के समीप किले का मंदिर ही मुख्य शक्तिपीठ है। दूसरा मंदिर मीरापुर में है तथा तीसरा मंदिर दारागंज के मुहल्ले में है। यहां सती की हस्तांगुली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति ललिता तथा भैरव भव हैं। अक्षयवट किले में कल्याणी – ललिता देवी मंदिर के समीप ही ललितेश्वर महादेव का भी मंदिर है।

यात्रा मार्ग : यहां के लिए सर्वोत्तम साधन रेल है। वैसे यह सड़क मार्ग से भी देश के विभिन्न नगरों से जुड़ा है। ( वितृप्त वर्णन त्रिस्थली प्रयाग में देखें )।

संक्षेप में….
भारत के उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (प्रयाग) के संगम तट पर यह शक्ति पीठ स्थित है|यहाँ माता सति की अंगुली गिरी थी|इसकी शक्ति ललिता देवी है| रक्षक भैरव को भव भैरव कहते हैं|

नोट- दोनों स्थान पावन है , पूर्ण श्रद्धा भाव से दर्शन करें….वैसे पश्चिम बंगाल की अन्य मान्यता है…….

29      विरजा क्षेत्र शक्तिपीठ / विमला देवी : इसकी मान्यता दो स्थानों पर है। एक जगन्नाथ मंदिर प्रांगण में तथा दूसरी याजपुर में। यहां सती की नाभि का निपात हुआ था। यहां की शक्ति देवी विमला व विरजा है तथा भैरव स्वयं जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।

यात्रा मार्ग : जगन्नाथपुरी देश के विभिन्न स्थानों से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है। याजपुर – हावड़ा वाल्टेयर लाइन पर वैतरणी रोड स्टेशन से लगभग 18 किलोमीटर पर स्थित है। स्टेशन पर बस सेवा उपलब्ध है।

संक्षेप में….
भारत के उड़ीसा प्रदेश के विराज में उत्कल स्थित जगह पर माता सति की नाभि गिरी थी|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम विमला है|इस शक्ति पीठ के रक्षक भैरव को जगन्नाथ कहते हैं|

30      काल माघव शक्तिपीठ / महाकाली : सती का वाम नितंब काल माघव नामक स्थान पर गिरा था। यहां शक्ति देवी काली रूप में और भैरव असितांग हैं। प्राचीन स्थान कहां है, ज्ञात नहीं है और काल माघव नामक स्थल भी वर्तमान भारत में नहीं मिलता है।

एक मान्यता के अनुसार संक्षेप में….
यह मध्यप्रदेश के अमरकंटक के पास कालमाधव स्थित सोन नदी तट पर स्थित है|यहाँ माता सति का बांया नितंब गिरा था|ईस शक्ति पीठ की शक्ति माता काली है| इसके रक्षक भैरव को असितांग भैरव कहते हैं|

31     कांची शक्तिपीठ / देवगर्भा काली: तमिलनाडु के कांजीवरम् नगर में देवी कामाक्षी का भव्य विशाल मंदिर, जिसमें त्रिपुरसुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी की प्रतिमा है। यह दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है। इसे कामकोटि भी कहा जाता है और मान्यता है कि मंदिर का निर्माण शंकराचार्यजी ने ही किया था। यहां देवी का कंकाल गिरा था। शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रूरू हैं।

यात्रा मार्ग : चेन्नई से 75 किलोमीटर दूर है। यह स्थान तिरुपति, बेंगलुरु तथा अन्य नगरों से रेल व सड़क मार्ग से जुड़ा है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार देवगर्भा शक्तिपीठ
यह पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला के बोलापुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोप ई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर स्थित है|यहाँ माता सति की अस्थि गिरी थी| इस शक्ति पीठ की शक्ति देवगर्भा है| इसके रक्षक भैरव को रुरु भैरव कहते हैं|

32    शोण शक्तिपीठ / देवी नर्मदा : नर्मदा के पावन कुंड से लगभग तीन – चार किलोमीटर दूर सोन नदी का उद्गम स्थल है, जिसे सोनभूड़ा कहा जाता है। यहीं पर देवी शोणाक्षी का एक छोटा मंदिर है, जिसके पास भद्रसेन भैरव स्थित हैं। यहीं शक्तिपीठ है, जहां सती के दक्षिण नितंब का निपात हुआ था। इसके नीचे ही एक गोमुख से पतली धारा के रूप में शोण या सोन नदी का उद्गम हुआ है।

दूसरी मान्यता के अनुसार सासाराम विहार का ताराचंडी मंदिर शोण शक्तिपीठ है। कुछ विद्वान डेहरी आन सोन स्टेशन से कुछ दूर एक देवी मंदिर को शोर शक्ति मानते हैं।

यात्रा मार्ग : छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल अमर कंटक के पास ये शक्तिपीठ स्थित है। बिलासपुर – कटनी के मध्य पेंड्रा रोड इसका निकटस्थ स्टेशन है, जहां से बस या टैक्सी से इसकी दूरी 35 किलोमीटर है। अनूपपुर से 68 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से छत्तीसगढ़ के व मध्य प्रदेश के अनेक नगरों से सीधा जुड़ा है।

संक्षेप में…….
यह मध्यप्रदेश के अमरकंटक स्थित नर्मदा मैया के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर स्थित है|यहाँ माता सति का दांया नितंब गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति माता नर्मदा है|इसके रक्षक भैरव को भद्रसेन कहते हैं|

33     कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ / शक्तिपीठ कामाख्या : असम के गुवाहाटी में नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर अत्यंत प्राचीनकाल से ही तंत्र साधना का जाग्रत शक्तिपीठ रहा है। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर सती का योनिमंडल गिरा था, फलस्वरूप इस पर्वतीय स्थल का रंग नीला हो गया और यह नीलांचल कहलाने लगा। कामाख्या महाशक्तिपीठ के नाम से सुप्रसिद्ध इस स्थल के बारे में पौराणिक साहित्य में अनेक प्रकार की कथाएं हैं, जिनमें देवी की महिमा का बखान किया गया है। ‘ कालिका पुराण ‘ में इस शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा गया है। ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर कामगिरी पर्वत पर शक्तिपीठ स्थित है। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानंद हैं। यात्री पहले कामेश्वरी देवी और कामेश्वर शिव का दर्शन करते हैं, तब महामुद्रा का दर्शन करते हैं। देवी की पीठ दस सीढ़ी नीचे एक अंधकार पूर्ण गुफा में स्थित है।

यात्रा मार्ग : नीलांचल पर्वत पर स्थित कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ पर पहुंचने के लिए कई मार्ग हैं। ऊंचाई पर पहुंचने के लिए पहाड़ी – सीढ़ी का मार्ग है, जिसका इस्तेमाल अब कम होने लगा है। अब अधिकतर यात्री घुमावदार सड़कों से मोटरगाड़ियों या ऑटोरिक्शा से कामाख्या देवी के दर्शन के लिए ऊपर पहुंचते हैं। संपूर्ण पहाड़ी नारियल , बांस तथा सुपारी के जंगलों से ढकी हुई है। कामाख्या मंदिर का नगर गुवाहाटी रेल, वायु मार्ग तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है। इसके निकट ही विशाल नदी ब्रह्मपुत्र बहती है, जिस पर नावें तथा मोटरबोट चला करती हैं। इस मंदिर में रसीद कटाकर जल्दी दर्शन भी किए जा सकते हैं।

संक्षेप में…..

भारत के असम राज्य के गुवाहाटी जिले के कामगिरी क्षेत्र में स्थित नीलांचल पर्वत पर है|इस स्थान पर माता सति का योनि भाग गिरा था|इसकी शक्ति माँ कामाख्या है|इसके रक्षक भैरव को उमानंद भैरव कहते हैं|

34     जयंती शक्तिपीठ / जयंती देवी : भारत के पूर्वीय भाग में स्थित मेघालय एक पर्वतीय राज्य है और गारो, खासी , जयंतिया यहां की मुख्य पहाड़ियां हैं। यहां की जयंतिया पहाड़ी पर ही जयंती शक्तिपीठ है, जहां सती के वाम जंघे का निपात हुआ था। यह शक्तिपीठ शिलांग से 53 किलोमीटर दूर जयंतिया पर्वत के बाउर भाग ग्राम में स्थित है। यहां की शक्ति जयंती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

यात्रा मार्ग : शिलांग रेलमार्ग से नहीं जुड़ा है, अतः निकटस्थ रेलवे स्टेशन गोलपारा टाउन है या लुमडिंग है, जहां से यात्रा सड़क मार्ग से की जा सकती है।

अन्य मान्यता के अनुसार…….
यह बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गाँव के कालाजोर खासी पर्वत पर स्थित है|यहाँ माता की बांयी जंघा गिरी थी|इस शक्ति पीठ की शक्ति जयंती माता है|रक्षक भैरव को क्रमदीश्वर भैरव से जाना जाता है|

35    मगध शक्तिपीठ / सर्वानंदकरी पटनेश्वरी : पटना की बड़ी पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है। यह मंदिर पटना सिटी चौक से लगभग 5 किलोमीटर पश्चिम में महाराजगंज देवघर में स्थित है। यहां सती के दाहिने जंघे का पतन हुआ था। यहां की शक्ति सर्वानंदकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं। ऐसा माना जाता है कि बिहार के मुंगेर में सती के नेत्रों का पतन हुआ था, जबकि तंत्र चूड़ामणि के अनुसार नेत्रों का पतन करवीर में हुआ था।

यात्रा मार्ग : बिहार की राजधानी पटना हावड़ा दिल्ली रेलमार्ग पर स्थित है।

36     त्रिस्तोता शक्तिपीठ भ्रामरी देवी : सती का बायां पैर त्रिस्तोता के किनारे गिरा और देवी भ्रामरी ईश्वर भैरव के साथ प्रतिष्ठित हुईं। पश्चिम बंगाल का शहर जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी के पास है। जलपाईगुड़ी से शालबाड़ी ग्राम के लिए रास्ता जाता है। यहीं तिस्ता ( त्रिस्तोता ) नदी के किनारे भ्रामरीपीठ है।

संक्षेप में…..त्रिस्रोता भ्रामरी शक्तिपीठ
भारत के पश्चिमी बंगाल के जलपाईगुड़ी के बोडामंडल के सालबाढी़ ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर है| यहाँ माता सति का बांया पैर गिरा था|यह भ्रामरी शक्ति के नाम से प्रसिद्ध है|इसका रक्षक भैरव अंबर भैरव है|

37     त्रिपुरसुंदरी शक्तिपीठ / त्रिपुरसुंदरी देवी : दक्षिण त्रिपुरा के उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज – राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण – पश्चिम ( नैऋत्यकोण ) में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण पाद ( पैर ) का निपात हुआ था । यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को कूर्मपीठ भी कहते हैं। इस मंदिर का प्रांगण कूर्म ( कछुवे ) की तरह है तथा इस मंदिर में लाल – काली कास्टिक पत्थर की बनी मां महाकाली की भी मूर्ति है|

यात्रा मार्ग : उदयपुर – सबरम पक्की सड़क के किनारे स्थापित इस शक्तिपीठ के मंदिर का क्षेत्रफल 24x24x75 फुट है। उदयपुर से माताबाड़ी के लिए बस , टैक्सी, आटोरिक्शा उपलब्ध है तथा मंदिर के निकट अनेक धर्मशालाएं एवं रेस्ट हाउस भी बने हुए हैं। दक्षिणी त्रिपुरा की प्राचीन राजधानी उदयपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर त्रिपुरसुंदरी मंदिर है। वहां जाने के लिए अगरतला तक वायुयान से यात्रा करनी होगी। वहां से सड़क मार्ग ही मुख्य यातायात का साधन है। यहां रेलमार्ग मात्र 64 किलोमीटर तक उपलब्ध है। कोलकाता से लमडिंग, वहां से सिलचर जाकर वायु मार्ग से यात्रा करना सुविधाजनक है। यद्यपि सड़क मार्ग भी उपलब्ध है, पर अधिक सुविधाजनक नहीं है।

संक्षेप में….
यह भारत के त्रिपुरा के उदरपुर के पास राधा किशोरपुर गाँव के माताबाढी़ पर्वत शिखर पर है|यहाँ माता सति का दांया पैर गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति त्रिपुरसुंदरी है|इसके रक्षक भैरव त्रिपुरेश है|

38    विभाष शक्तिपीठ / काली कपालिनी : सती का बायो टखना विभाष क्षेत्र में गिरा। वहां देवी कपालिनी सर्वानंद भैरव के साथ प्रतिष्ठित हैं। पश्चिम बंगाल में तुमलुक में प्रसिद्ध काली मंदिर शक्तिपीठ है।

यात्रा मार्ग : रेल द्वारा बंगाल के आसनसोल जंक्शन पर पहुंचे। वहां से बस द्वारा तुमलुक जा सकते हैं। आसनसोल से मिदनापुर में पंचकुड़ा स्टेशन जाकर वहां से भी बस द्वारा तुमलुक पहुंचा जा सकता है।

संक्षेप में….
यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के पुर्वी मेदिनी पुर केपास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर स्थित है| यहाँ माता सति की बांयी एड़ी गिरी थी| इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम कपालिनी है| इसके रक्षक भैरव शर्वानंद भैरव कहलाते हैं|

39     देवीकूप पीठ / कुरुक्षेत्र पीठ / सावित्री : हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन तथा थानेश्वर ( स्थाणेश्वर ) रेलवे स्टेशन के दोनों ओर से 4 किलोमीटर दूर हांसी रोड पर, द्वैपायन सरोवर के पास, स्थित भद्रकाली का देवीकूप पीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती के दाएं चरण गुल्फ का निपात हुआ था। यह शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से मान्य है। यहां को शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं। इस स्थान का माहात्म्य ‘ तंत्र चूड़ामणि ‘ में भी मिलता है। कहते हैं कि यहां पर पांडवों ने महाभारत युद्ध से पूर्व विजय की कामना से मां काली की उपासना की थी और विजय के पश्चात् स्वर्ण का अश्व चढ़ाया था। आज भी यह प्रथा है कि भक्त यहां पर स्वर्ण का तो नहीं, किंतु काठ का घोड़ा चढ़ाते हैं। किंवदंती है कि कृष्ण तथा बलराम का यहीं पर मुंडन – संस्कार भी संपन्न हुआ था। इस पीठ में भद्रकाली को विलक्षण प्रतिमा है। गणों के रूप में दक्षिणमुखी हनुमान, गणेश तथा भैरव विद्यमान हैं। स्थाणु शिव का अद्भुत शिवलिंग भी है, जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, तिलक एवं सर्प अंकित है। मान्यता है कि पहले स्थाणु शिव का दर्शन करके तब भद्रकाली का दर्शन करना चाहिए। उत्तरी मंदिर के दक्षिण तरफ द्वैपायन सरोवर तथा पश्चिमी किनारे पर सूर्य यंत्र तथा दक्षेश्वर महादेव का मंदिर भी है। नवरात्रों में तथा प्रत्येक शनिवार को यहाँ अपार भक्त समूह पूजा हेतु आता है । यात्रियों के ठहरने के लिए मंदिर परिसर में ही धर्म कक्ष भी मौजूद है।

यात्रा मार्ग : दिल्ली – अमृतसर रेलमार्ग पर कुरुक्षेत्र स्टेशन दिल्ली से 55 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से मंदिर दिल्ली – अंबाला मार्ग जी.टी. रोड प्रियली बस अड्डे से 9 किलोमीटर दूर है।

संक्षेप में….

यह हरियाणा के कुरूक्षेत्र में स्थित है|यहाँ माता सति की एड़ी गिरी थी| इसकी शक्ति सावित्री हैं|रक्षक भैरव को स्थाणु भैरव कहते हैं|

40      युगाद्या शक्तिपीठ / क्षीरग्राम शक्तिपीठ / भूतधात्री युगाद्या : पश्चिम बंगाल के कटवा के क्षीर ग्राम में स्थित है। युगाद्या शक्तिपीठ जहां की शक्ति देवी हैं युगाद्या तथा भैरव हैं क्षीर कंटक। यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। क्षीर ग्राम की भूतधात्री महामाया के साथ देवी युगाद्या की भद्रकाल मूर्ति एक हो गई है, अत : देवी का नाम युगाद्या पड़ गया।

यात्रा मार्ग : पूर्वी रेलवे के बर्द्धमान जंक्शन से 38 किलोमीटर पर कटवा स्थित है और उसके पास क्षीर ग्राम पड़ता है, जहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।

संक्षेप में….
यह पश्चिम बंगाल में बर्धमान जिले में खीर ग्राम स्थित युगाद्धा स्थान पर स्थित है|यहाँ माता सति का दाएँ पैर का अंगूठा गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति भूतधात्री माता है|इसके रक्षक भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं|

41    विराट शक्तिपीठ / अंबिका देवी : जयपुर से 64 किलोमीटर उत्तर में महाभारतकालीन विराट नगर के प्राचीन ध्वंसावशेष के निकट एक गुफा है, जिसे भीम की गुफा कहते हैं। यहीं के वैराट् गांव में शक्तिपीठ स्थित है, जहां सती के दाएं पांव की उंगलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।

यात्रा मार्ग : जयपुर तथा अलवर दोनों स्थानों से विराट ग्राम तक आवागमन के लिए मार्ग हैं, जहां टैक्सी से जाना सुविधाजनक है।

अन्य मान्यता 
यह शक्ति पीठ विराट ( अज्ञात स्थान) है| यहाँ माता सति की पैर की अंगुली गिरी थी| इस शक्ति पीठ की शक्ति अंबिका है| इसके रक्षक भैरव को अमृत भैरव कहते हैं|

42      काली शक्तिपीठ / कालिका देवी : काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, जहां सती के दाएं पांव की 4 उंगलियों ( अंगूठा छोड़कर ) का पतन हुआ था। यहां की शक्ति कालिका व भैरव नकुलेश हैं। इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा मौजूद है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है। मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुंडमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं, पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है। कुछ लोग टॉलीगंज बस अड्डे से लगभग 2 किलोमीटर दूर आदि काली के प्राचीन मंदिर को ही शक्तिपीठ मानते हैं। इस मंदिर का कुछ भाग क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसका जीर्णोद्धार कराया गया है। यहां पर एकादश रुद्र के ग्यारह लिंग भी स्थापित हैं।

यात्रा मार्ग : पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता ( रेलवे स्टेशन हावड़ा ) मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है, जो देश के सभी भागों से वायु, सड़क तथा रेलमार्ग से जुड़ा है। बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक तक यह भारत की राजधानी भी रहा है। यहां अनेक दर्शनीय स्थल हैं।

एक मान्यता …..
यह बंगाल के कोलकाता में स्थित है|यहाँ कालीघाट में माता सति के बांया पैर का अंगुठा गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ कालिका है| रक्षक भैरव को नकुशील भैरव कहते हैं|

 

43    जयदुर्गा शक्तिपीठ / जयदुर्गा : सती के दोनों कान गिरने से यह स्थान कर्नाटक प्रदेश के नाम से विख्यात हुआ। यहां प्राचीन शक्तिपीठ का ठीक से पता नहीं चलता है।

संक्षेप में …..कर्णाट- जय दुर्गा शक्तिपीठ
कर्णाट यह अज्ञात स्थान है| यहाँ माता सति के दोनों कान गिरे थे| इस शक्ति पीठ की शक्ति जय दुर्गा है| इसके रक्षक भैरव को अभिरु भैरव कहते हैं|

44   मानस शक्तिपीठ / दाक्षायणी मानसपीठ : देवी मां का शक्तिपीठ चीन अधिकृत तिब्बत मानसरोवर के पास स्थित है, जहां सती की बाईं हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं। रामायण के अनुसार, यह ब्रह्मा के मन से निर्मित होने के कारण ही मानसरोवर कहा गया।

यात्रा मार्ग : अत्यधिक कठिन, खर्चीला व अनेक दिवस का है। ( विस्तृत वर्णन हेतु मानसरोवर में देखें )।

संक्षेप में …..
यह तिब्बत में स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता सति का दांया हाथ गिरा था|इस शक्ति पीठ की शक्ति दाक्षायणी है|इस शक्ति पीठ के रक्षक भैरव अमर भैरव कहलाते हैं|

45   लंका शक्तिपीठ / इंद्राक्षी देवी : श्री लंका में जहां सती का नूपुर गिरा था, उस स्थल का पता ज्ञात नहीं है। यहां की शक्ति इंद्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं।

अन्य मान्यता …..लंका- इंद्राक्षी शक्तिपीठ
यह शक्ति पीठ श्रीलंका में त्रिकोमाली में स्थित है| यहाँ माता सति की पायल गिरी थी| इसके रक्षक भैरव को राक्षसेश्वर भैरव कहते हैं| इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम इंद्राक्षी है|

46     यशोरपीठ / यशोरेश्वरी : सती की हथेली गिरने से देवी यशोरेश्वरी रूप में चंड भैरव के साथ ग्राम ईश्वरीपुर में अवस्थित हैं। यह स्थान बांग्लादेश में यशोहार ( जैस्सोर ) प्रसिद्ध नगर के पास स्थित है। यहां मुख्यतया कंघियों का काम होता है।

संक्षेप में …..
यह शक्ति पीठ बांग्लादेश खुलना जिले के ईश्वरपुर में यशोर स्थान पर स्थित है| यहाँ माता सति के हाथ और पैर ( पाणिपद्म) गिरे थे| इस शक्ति पीठ की शक्ति यशोरेश्वरी है| इसके रक्षक भैरव को चण्ड भैरव कहते हैं|

47    सुगंधापीठ / उग्रतारापीठ : बरीसाल बांग्लादेश में शिकारपुर ग्राम में सुगंधा नदी के तट पर स्थित उग्रतारा देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है। इस स्थान पर सती की नासिका का निपात हुआ था। यहां की देवी सुनंदा व भैरव त्र्यम्बक हैं।

संक्षेप में …..
यह बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिशाल से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे पर प्रतिष्ठित है|जहाँ माता सति की नासिका गिरी थी|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम सुनंदा है और त्र्यम्बक भैरव इसके रक्षक है|

48     करतोया घाट शक्तिपीठ / अपर्णा देवी : यहां पर सती का बायां तलुवा गिरा था। देवी अपर्णा रूप में वामन भैरव के साथ स्थित हैं। एक छोटे से बीहड़ गांव में अति प्राचीन भग्नावशेष मंदिर है।

यात्रा मार्ग : बनगांव ( बांग्लादेश ) से ही लौटते हुए बीच में एक स्टेशन है बोगरा। यहां से लगभग 35 किलोमीटर दूर भवानीपुर  नामक ग्राम में करतोया नदी के तट पर यह देवी मंदिर स्थित है। बोगरा स्टेशन से इस गांव के पास तक वस या बैलगाड़ी द्वारा जाया जा सकता है। पुनः 5-6 किलोमीटर पैदल का रास्ता है।

आवश्यकताएं : पूजा आदि के लिए आवश्यक सामग्री भारत से ही ले जाएं, वहां उपलब्ध नहीं होगी।

संक्षेप में …..
यह शक्ति पीठ बाग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानी पुर गाँव के पास करतोया तट पर स्थित है|यहाँ माता सति की पायल गिरी थी| इस शक्ति पीठ की शक्ति अपर्णा माता है| वामन भैरव इसकी रक्षा करते हैं|

49     चट्टलपीठ / भवानी : यहां सती की देह से दक्षिण बाहु पर्वत शिखर पर गिरी थी। देवी भवानी चंद्रशेखर भैरव के साथ प्रतिष्ठित हुई।

यात्रा मार्ग : बांग्लादेश में चटगांव प्रसिद्ध स्थान है। चटगांव से रेल द्वारा 40 किलोमीटर यात्रा करने पर सीताकुंड स्टेशन है। इसी कस्बे में चंद्रशेखर पर्वत पर देवी का मंदिर है।

संक्षेप में …..

यह बांग्लादेश के चटगांव जिला के सीताकुंड स्टेशन के पास चन्द्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल) में स्थित है| यहाँ माता सति की दांयी भुजा गिरी थी|इसकी शक्ति माता भवानी है|रक्षक भैरव को चन्द्र शेखर कहते हैं|

50     गंडकी शक्तिपीठ / मुक्तेश्वरी गंडकी देवी : यहां पर सती की देह से उनका दक्षिण गंड ( गाल ) गिरा था। देवी गंडकी चक्रपाणि भैरव के साथ प्रतिष्ठित हैं। मंदिर मुक्तिनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।

यात्रा मार्ग : मध्य नेपाल में गंडक नदी के उद्गम स्थल पर मुक्तिनाथ मंदिर स्थित है। यही सिद्धपीठ है। राजधानी काठमांडू से मुक्तिनाथ जाने का मार्ग है।

संक्षेप में …..
यह नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर है| यहाँ माता की गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी|इस मंदिर की शक्ति माता गंडकी चण्डी है|चक्रपाणि भैरव इसके रक्षक है|

51      गुह्येश्वरी शक्तिपीठ / गुह्येश्वरी महामाया : सती के दोनों घुटने नेपाल में गिरे थे। देवी महामाया कपाल भैरव के साथ बागमती नदी के तट पर प्रतिष्ठित हुईं। नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के पास बागमती नदी के तट पर गुह्येश्वरी देवी का मंदिर है। तीर्थयात्री सड़क अथवा वायु मार्ग से वहां तक पहुंच सकते हैं। ( विस्तृत विवरण के लिए देखें पशुपतिनाथ )

संक्षेप में …..
यह नेपाल में पशुपति नाथ मंदिर के पास स्थित है|यहाँ माता सति के घुटने गिरे थे|इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम महाशिरा है|इसके रक्षक भैरव को कपाली भैरव कहते हैं|

52     कोट्टरी शक्तिपीठ / भैरवी देवी शक्तिपीठ हिंगलाज : सती का ब्रह्मरंध्र यहां गिरा था और देवी भैरवी भीमलोचन भैरव के साथ यहां प्रतिष्ठित हैं। पाकिस्तान में खतरनाक मरुभूमि को पार कर यहां पहुंचा जा सकता है। भैरवी के स्थान से बाहर एक उबलता हुआ पानी का कुआं है। किसी भी पाप का सत्य उल्लेख कर नारियल चढ़ाया जाता है। पाप से मुक्ति मिलने पर नारियल वापस नहीं लौटता है। झूठ बोलने पर नारियल कुएं में से वापस बाहर आ जाता है , ऐसी लोकमान्यता है। कूप के पास गुफा में देवी भैरवी ज्योतिरूप में प्रतिष्ठित हैं। सत्य मानस से संकल्प करने से ही ज्योति प्रसाद ग्रहण करती है।

संक्षेप में …..
माता का हिंगलाज शक्ति पीठ करांची से 125 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है| मान्यता है यहाँ माता का सिर गिरा था| ब्रह्मरन्ध्र गिरा था|इसकी शक्ति भैरवी कोट्टवीशा और भीम लोचन भैरव इस शक्ति पीठ की रक्षा करते हैं|

कुछ स्थानों पर निम्न शक्तिपीठ का उल्लेख मिलाता है ..........

सर्वशैल स्थान- राकिनी शक्तिपीठ
यह शक्ति पीठ आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री में गोदावरी नदी तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास शर्वशैल स्थान पर स्थित है| यहाँ माता सति के गाल( वाम गंड) गिरे थे| इस शक्ति पीठ की शक्ति का नाम राकिनी शक्ति है| इस शक्ति पीठ के रक्षक भैरव वत्सनाभम कहलाते हैं|

 

भगवती दुर्गा के 51 शक्तिपीठ, जो देते हैं भक्ति-मुक्ति, ऐसे पहुचें दर्शन को

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