vindhyaachal siddh deveepeeth: yahaan trishaktiyon – mahaalakshmee, mahaakaalee va mahaasarasvatee ne apana aavaas banaayaविंध्याचल क्षेत्र अति पुरातन काल से ही महर्षियों योगियों, तापसों की श्रद्धा, आस्था एवं सात्विक ऊर्जा का केंद्र, सौख्य एवं मुक्ति प्रदाता, परम पावन मंगल क्षेत्र रहा है। यहां अनेक सिद्ध तापसों ने तपस्या की थी। यहां असंख्य मंदिरों का होना इस तथ्य की प्रामाणिकता सिद्ध करते हैं। यहां त्रिशक्तियों – महालक्ष्मी, महाकाली व महासरस्वती ने अपना आवास बनाया। पार्वतीजी ने यहीं तपस्या कर अपर्णा नाम पाया तथा शिव को प्राप्त किया। श्रीराम ने यहीं के रामगंगा घाट पर अपने पितरों को श्राद्ध तर्पण किया तथा रामेश्वर लिंग की स्थापना की और रामकुंड का निर्माण किया।
इसी तपोवन में विष्णु भगवान को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति हुई। वस्तुतः विंध्य पर्वतमाला के अंचलों में श्रीयंत्र पर स्थापित विंध्याचल अनादिकाल से ही शक्ति की लीला भूमि, शाश्वत भूमि रही है। कुछ कथाओं के अनुसार इसे शक्तिपीठ भी माना गया है। मान्यता के अनुसार, कुछ विद्वान मानते हैं कि इस स्थान पर देवी की पीठ गिरी थी, हालांकि इसे 51 शक्तिपीठों में शामिल नहीं किया गया है। बेशक इसे शक्तिपीठों में शामिल नहीं किया गया हो, लेकिन इस पावन स्थल की बहुत मान्यता है। भगवान श्री कृष्ण से भी इस पावन मंदिर से सम्बन्ध माना जाता है। मंदिर में यदि कोई सच्चे मन से पूजन-अर्चन व दर्शन करता है, तो उसके क्लेशों का नाश होता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। विंध्याचल रेलवे स्टेशन दिल्ली – हावड़ा मुख्य रेल मार्ग पर इलाहाबाद से 85 किलोमीटर दूर है। यहां से मंदिर एक किलोमीटर दूर है। मिर्जापुर स्टेशन पर उतरना अधिक उचित है।
विंध्याचल सिद्ध देवीपीठ मंदिर
विंध्याचल में मां लक्ष्मी विराजती हैं। इनका मंदिर विंध्याचल के मध्य एक ऊंचे स्थान पर है। मंदिर में सिंहारूढ अढ़ाई हाथ का देवी विग्रह है। मंदिर के पश्चिम में स्थित प्रांगण के पश्चिमी भाग में बारहभुजी देवी हैं। दूसरे भाग में सर्परेश्वर शिव हैं, दक्षिण की और महाकाली की मूर्ति है और उत्तर की ओर धर्मध्वजा देवी स्थित हैं। मंदिर का एक बड़ा प्रांगण है और मूर्ति के ऊपर काफी ऊंचा शिखर है। मंदिर के अंदर अनेक कक्ष हैं और अंदर व बाहर आने के मार्ग पृथक्-पृथक् है|
अन्य दर्शनीय स्थल
- काली मंदिर : मुख्य मंदिर से तीन किलोमीटर दूर भूतल पर काली खोह स्थान पर महाकाली विराजमान हैं। यहां मां काली की आसीन मुद्रा में उर्ध्वमुखी अत्यंत प्राचीन प्रतिमा विद्यमान है। यह मंदिर छोटा, पर बड़े ऊंचे शिखर युक्त है।
- जलकूप : मंदिर प्रांगण में एक जलकूप विद्यमान है और उसका जल आरोग्य प्रदायक माना जाता है।
- सरस्वती मंदिर : ये अष्टभुजी पहाड़ी पर 2.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां यात्री पैदल और वाहन मार्ग से पहुंचते हैं। यहां मां अष्टभुजी नाम से प्रख्यात हैं।
- गेरुहवा सरोवर : अष्टभुजी से एक किलोमीटर दूर एक छोटा तालब या सरोवर है, जहां यात्री विश्राम करते हैं और वहां स्थित श्रीकृष्ण मंदिर के दर्शन करते हैं।
- गंगाघाट : यहां गंगा गहरी व विशाल पाट वाली है और उस पर अनेक घाट बने हैं, जहां यात्री स्नान करके देवी दर्शन हेतु जाते हैं।
- अन्य मंदिर : पूरे नगर में अनेक देवी – देवताओं के छोटे – बड़े असंख्य मंदिर हैं। यदि यात्री के पास समय हो तो उनका पुण्य प्राप्त किया जा सकता है।