peetaambara siddhapeeth : madhy pradesh ke datiya mein bagalaamukhee va dhoomaavatee ke siddh mandirपीतांबरापीठ – बगलामुखी व धूमावती सिद्ध पीठ मध्य प्रदेश के दतिया नगर में स्थित हैं। इस पीठ की मुख्य देवी बगलामुखी मां हैं और साथ में धूमावती भी यहां स्थित हैं। इस पीठ का निर्माण एक स्वामीजी महाराज ने सन् 1920 में करवाया था। स्वामीजी का पूरा नाम, स्थान और वे कब कहां से आए थे, कुछ भी ज्ञात नहीं है और न ही उन्होंने इस संबंध में भक्तों को कोई जानकारी दी। वे स्वामीजी के नाम से आज भी जाने जाते हैं। उन्होंने एक ट्रस्ट का निर्माण किया और वर्तमान में मंदिर के विकास, विस्तार, पूजा – पाठ आदि के कार्य उसी के द्वारा किए जाते हैं। मंदिर का निर्माण पूज्यपाद स्वामीजी महाराज ने अपनी स्वयं की भक्ति से प्रेरित होकर करवाया था और इसके पीछे केवल साधना और भक्ति ही है। यात्री झांसी में ठहरना अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि इन स्थानों के दर्शन एक दिवस में किए जा सकते हैं। दिल्ली – मुंबई, दिल्ली, चेन्नई आदि मुख्य रेलवे लाइनों के मध्य झांसी से पहले दतिया स्टेशन है, जहां से मंदिर मात्र 3 किलोमीटर दूर है।
पीतांबरापीठ – बगलामुखी व धूमावतीपीठ का धार्मिक महत्त्व
बगलामुखी मां की आराधना शत्रुभय से मुक्ति एवं वाक सिद्धि हेतु की जाती है। देश के बड़े – बड़े राजनेता, व्यवसाई आदि यहां आराधना करने समय – समय पर आते ही रहते हैं।
पीतांबरापीठ – बगलामुखी व धूमावती मंदिर का उल्लेख
यह पावन मंदिर एक बड़े इलाके में दतिया के बड़े तालाब के तट पर स्थित है। मंदिर का मुख्य द्वार मुख्य सड़क पर है, जहां से दर्शनार्थी प्रवेश करते हैं। द्वार के पश्चात् एक बड़ा प्रांगण है, जिसमें कार्यालय है और उसके पीछे के भाग में बाग – बगीचे और उसके चारों ओर आश्रम हेतु कक्ष बने हैं। प्रांगण के पश्चात् एक छोटे और सुंदर द्वार से मंदिर में प्रवेश करने पर बाई ओर मुख्य बगलामुखी मां का एक छोटा मंदिर है। मां के दर्शन एक छोटी खिड़की से ही किए जाते हैं, अंदर जाने की अनुमति नहीं है। खिड़की ही से प्रसाद, पुष्प आदि पुजारी द्वारा चढ़ाए जाते हैं। अंदर सफेद पत्थर से बनी मां की एक छोटी मूर्ति है, जिनका मुख बाईं ओर है।
मंदिर प्रागंण के अन्य दर्शनीय स्थल
- शंकर शिवलिंग : मुख्य मंदिर के समक्ष एक छोटा शिवलिंग स्थापित है, जिसमें भक्तों द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।
- मुख्य मंदिर बरामदा : मंदिर के बाईं ओर एक कक्ष तथा वरामदे में भक्त, संत व पुजारी आदि निरंतर साधना – पूजा आदि में व्यस्त रहते हैं।
- ग्रंथालय : बरामदे से लगे कक्ष में ही एक भव्य संस्कृत ग्रंथों का संग्रह है और इसी के साथ अनेक धर्मग्रथों युक्त कक्ष हैं, जो मंदिर का ग्रंथालय है।
- म्यूजियम : ग्रंथालय के साथ ही वर्तमान में एक छोटा म्यूजियम है, जिसमें मंदिर व स्वामीजी से संबंधित वस्तुएं दर्शन हेतु रखी गई हैं।
- ध्यान हाल : शंकर मंदिर के पीछे ही एक 80 गुणित 40 फीट का बड़ा हाल, जिसमें एक भी स्तंभ नहीं है। इसमें स्वामीजी की पद्मासन में एक भव्य सुंदर मूर्ति स्थापित है। इसके समक्ष बैठक व्यवस्था है, जिसमें भक्तगण ध्यान लगाते हैं या मौन पाठ करते है।
- पवित्र कुंड : हाल के पीछे एक गहरा सरोवर निर्मित है, जिसके चारों ओर सीढ़ियां व छतरियां निर्मित हैं। इसमें सुरक्षा की दृष्टि से जल नहीं भरा है। ऐसा माना जाता है कि यहां तंत्र – मंत्र किया जाता था, पर वर्तमान में इस प्रकार की क्रिया वर्जित है और पास जाने की अनुमति भी नहीं है।
- धूमावती मंदिर : हाल के बाईं ओर जाने से 100 कदम पर एक छोटा धूमावती का मंदिर है। इसके आगे अनेक कतार – युक्त रेलिंग लगी हैं, जिनमें से होकर भक्त मां धूमावती के दर्शन करते हैं। दर्शन प्रात : आठ बजे व सायं आठ बजे ही हो सकते हैं, जब उनकी आरती की जाती है। शेष समय दर्शन नहीं होते हैं। आरती के समय दर्शन हेतु प्रांगण में टी.वी. स्क्रीन लगे हैं, जिनमें मां के दर्शन किए जा सकते हैं।
- यज्ञ मंडप : मंदिर के सामने एक बड़ी यज्ञशाला है, जिसमें अनेक यज्ञ मंडप निर्मित हैं। विशेष पर्वो पर ही यज्ञ किए जाते हैं।
- वनखंडेश्वर नाथ मंदिर : यज्ञ मंडप के आगे और मुख्य मंदिर के दाईं ओर एक आंगन युक्त चौकोर स्थल है, जिसका एक द्वार धूमाबाई मां की ओर और दूसरा बगला मां की तरफ खुलता है। आंगन के मध्य में एक प्राचीन छोटा शिवलिंग स्थापित है और इसके चारों ओर पांच अत्यधिक छोटे – छोटे सुंदर मंदिर स्थित हैं। ये मंदिर 2 से 3 फीट तक ही ऊंचे हैं और डेढ़ फीट गुणित डेढ़ फीट चौड़े हैं। ये मिनी मंदिर सुंदर कलाकारी युक्त हैं। इनमें एक में गणेशजी, दूसरे में कार्तिकेय, तीसरे में अष्टभुजी दुर्गाजी, चौथे में वनखंडेश्वर महादेव व 5 वें में अन्नपूर्णा मां विराजमान हैं। महादेव के सामने एक छोटी नंदी मूर्ति भी है और ये सभी मंदिर एक सुंदर कलात्मक संगमरमर की रेलिंग के अंदर स्थित हैं।
इस छोटे मंदिर प्रांगण के चारों ओर 3x2x1 फीट के आले बने हैं, जो कांच के दरवाजे से बंद हैं। प्रत्येक में शिव के छ : विभिन्न ध्यान मुद्रा के रूपों को दर्शाया गया है। ये रूप हैं- ध्यान तत्त्व, प्रारूप शिव, ध्यान नीलकंठ, ध्यान अघोर, ध्यान सद्योजात तथा ध्यान श्री वामदेव।
प्रांगण के कोने में हनुमान भगवान की एक बड़ी मूर्ति स्थापित है, जिसका साज – शृंगार प्रतिदिन बदलता रहता है। इसी प्रांगण की दीवारों पर गणेश तथा अन्य देवी – देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस प्रकार का मिनी मंदिर प्रांगण भारत में अकेला ही होगा और यात्री तथा भक्त इसे देखकर मंत्रमुग्ध होकर स्वयं ही श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं
- अन्य मूर्तियां : मुख्य मंदिर के दाईं ओर तीन छोटे – छोटे मंदिर हैं, जिनमें भगवान गणेश, महाकाल व बटुक भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं।