कन्याकुमारी शक्तिपीठ: तीर्थ के जल स्पर्श से मनुष्य होता है पापों से मुक्त

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kanyaakumaaree shaktipeeth: teerth ke jal sparsh se manushy hota hai paapon se muktकन्याकुमारी शक्तिपीठ: भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक कन्याकुमारी शक्तिपीठ है। भारत भूमि का सबसे दक्षिणी छोर, जोकि कुमारी अंतरीप के नाम से पूरे संसार में प्रसिद्ध है, इस प्रसिद्धि का कारण यहां स्थित कन्याकुमारी – तीर्थ है। यह स्थान एक धार्मिक स्थान के अलावा कई कारणों से महत्त्वपूर्ण है। तीनों ओर सागरजल से घिरा यह स्थान तीन सागरों का संगमस्थान भी है। पूरब में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में सुदूर दक्षिणी ध्रुव तक हिंदमहासागर का विशाल जल फैला है। अंतरीप के अग्रभाग में स्थित विवेकानंद शिला से अरबसागर को पीली तथा बंगाल की खाड़ी की नीले रंग की लहरें साफ – साफ दिखाई पड़ती हैं। कन्याकुमारी में सूर्योदय तथा सूर्यास्त का दृश्य अतीव रमणीय है। समुद्र के संगम स्थल पर चैत्र पूर्णिमा पर साफ आकाश में एक साथ बंगाल की खाड़ी में चंद्रोदय और अरब सागर में सूर्यास्त का दृश्य अद्भुत होता है। दूसरे दिन प्रात : बंगाल की खाड़ी में सूर्योदय एवं अरब सागर में चंद्रास्त दृश्य भी स्वर्गिक लगता है। सुप्रसिद्ध, तीर्थ कन्याकुमारी भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में केरल की सीमा के पास सागरतट पर स्थित है।

धार्मिक परिचय

प्राचीन ग्रंथों में जो कथा मिलती है, वह इस प्रकार है बाणासुर नामक दैत्य ने महादेव शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने वरदान मांगने के लिए कहा। मौका देखते ही बाणासुर ने अमर होने का वरदान मांग लिया। शिवजी ने ‘ तथास्तु ‘ कहते हुए वचन दिया कि कुमारीकन्या के अलावा तुम्हारा कोई अहित नहीं कर सकेगा। वरदान प्राप्त होते ही बाणासुर निरंकुश तथा उपद्रवी हो गया। उसके अत्याचारों से पूरे संसार के लोग त्राहि – त्राहि करने लगे। ऐसी स्थिति से रक्षा के लिए देवतागण विष्णु भगवान के पास पहुंचे। विष्णु ने देवताओं के साथ मिलकर त्रिभुवन की सुरक्षा के लिए यज्ञ किया। उसी यज्ञ से एक अत्यंत सुंदर कन्या प्रकट हुई। यह कन्या महादेव शिव को प्राप्त करने के लिए दक्षिण तट पर तपस्या करने चली गई। उसकी आराधना से प्रसन्न होकर शिव ने उसका पाणिग्रहण करना स्वीकार कर लिया। विवाह की तिथि भी निश्चित हो गई और सब तैयारियां पूरी हो रही थीं। अब देवताओं को चिंता हुई कि इस दिव्यकन्या का विवाह हो गया, तो फिर बाणासुर नहीं मारा जाएगा, क्योंकि वरदान के अनुसार वह केवल कुमारी कन्या के द्वारा ही मारा जा सकता था। ऐसी स्थिति में महामुनि नारद ने सहयोग प्रदान किया। शिवजी विवाह के लिए दक्षिणसागर की ओर चल पड़े थे। वहां पहुंचने से पहले ही शुचींद्रम नामक स्थल पर नारदजी ने शिवजी से मुलाकात की। इस मुलाकात में काफी समय लगा और विलंब के कारण विवाह का मुहूर्त निकल गया। विवाह टल जाने के कारण साथ लाई गई सारी सामग्री अक्षत, रोली, तिल आदि सागर में विसर्जित कर दी गई। ऐसी मान्यता है कि इन सामग्रियों को बिखेर देने से ही यहां पर सागरतट की बालुकाराशि चावल के दाने की तरह काले और लाल रंग की हो गई है। कुमारीकन्या महादेव शिव को प्राप्त करने के लिए पुनः तपस्या में लीन हो गई। इधर बाणासुर को उसके मनमोहक सौंदर्य की चर्चा सुनने को मिली। वह कुमारीदेवी से विवाह की इच्छा लेकर वहां पहुंचा और प्रणय निवेदन करने लगा। उसके बार – बार ऐसा करने से देवी की तपस्या भंग हुई और कुपित होकर देवी ने उस अत्याचारी दैत्य का वध कर डाला। बाणासुर के वध से सभी को राहत मिली और कुमारी कन्या देवी के रूप में पूजनीय बन गई। इस पावन तीर्थ पर आश्विन नवरात्र के समय पूजा का विशाल उत्सव मनाया जाता है। कन्याकुमारी के मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को एक वस्त्र ( धोती ) धारण करना होता है, सिले हुए कपड़े पहनकर जाने पर प्रवेश नहीं मिलता है। इस तीर्थ के जल – स्पर्श से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

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दर्शनीय स्थल परिचय

  • मुख्य मंदिर : कन्याकुमारी का मंदिर ऊंचे चौकोर पथरीले स्थान पर स्थित है, जिसके तीन ओर सागर की फेनिल लहरें मचलती रहती हैं। दक्षिण की परंपरा के अनुसार विशाल तथा कलात्मक गोपुरम के साथ मुख्य मंदिर के चारों ओर ऊंची दीवारें हैं, जिसमें चारों दिशाओं की ओर चार द्वार हैं। इनमें तीन द्वार ही खुले रहते हैं। सागर की ओर पूर्वदिशा का द्वार बंद कर दिया गया है। पूरब की ओर का मुख्य द्वार बंद किए जाने के कारणों के बारे में ऐसा बताया जाता है कि वहां पर समुद्र में कई चट्टानें उभरी हुई हैं, जहां पर नाव चलाना संकटपूर्ण है। पुराने समय में जब यह विशाल द्वार खुला रहता था, तो रात्रि में दूर से आते नाविकों को देवी के शृंगार और दीपों की रोशनी से भ्रम होता था और उनकी नावें चट्टानों से टकरा जाती थीं। इसलिए पूर्व दिशा का दरवाजा बंद कर दिया गया है। प्रस्तर खंडों से बने कलात्मक मंदिर के गर्भगृह में देवी कन्याकुमारी की आकर्षक सुंदर मूर्ति खड़ी है। पूर्व दिशा की ओर मुख किए कुमारी देवी के एक हाथ में माला है। कौमार्य के प्रतीक रूप में नाक में हीरे की सीक तथा रत्नजटित नथ पहन रखी है। आरती के समय पूर्व शृंगार के साथ इस दिव्यमूर्ति की शोभा अद्भुत होती है, विशेषकर नाक के हीरे की चमक दर्शकों को आकर्षित करती है। रात्रि में भी देवी का विशेष शृंगार होता है। विशेष पर्वोत्सवों पर हीरक रनों से देवी का शृंगार किया जाता है।
  • गणेश मंदिर : कन्याकुमारी समुद्रतट पर स्नानघाट के निकट गणेशमंदिर है। उनके दर्शन करके कन्याकुमारी के मुख्य मंदिर के दर्शन किए जाते हैं।
  • भद्रकाली मंदिर : कन्याकुमारी मंदिर के पास ही भद्रकाली का मंदिर है। भद्रकाली को कुमारीदेवी की मुख्य सहेली कहा जाता है। इसकी गणना परंपरागत रूप से प्रसिद्ध 52 शक्तिपीठों में की जाती है।
  • हनुमान मंदिर : इसी अहाते में दीवार के पास संकटमोचन हनुमान की मूर्ति है, जो पूरे संकाय की सुरक्षा के लिए स्थित है।
  • इंद्रकांत विनायक मंदिर : मंदिर में इंद्रकांत विनायक गणपति हैं। कहते हैं कि उसकी स्थापना इंद्र ने की। देवी कन्याकुमारी की आराधना अत्यंत प्राचीनकाल से होती आई है। महाभारत तथा पुराणों में भी इस पावनतीर्थ का उल्लेख मिलता है। सीता की खोज में भटकते श्रीराम भी यहां पहुंचे थे, तो देवी ने गंधमादन पर्वत ( आधुनिक रामेश्वरम् धाम ) की ओर जाने का संकेत दिया था।

परिचय अन्य दर्शनीय स्थान

  • मंडूकतीर्थ : समुद्र के किनारे मीठे जल वाली बावड़ी है। इसके जल से स्नान किया जाता है। इसे पापविनाशनम् पुष्करिणी भी कहते हैं। यह मंदिर से उत्तर की ओर पास में ही है। कन्याकुमारी में 500 वर्ष पुराना गिरजाघर भी देखा जा सकता है।
  • विवेकानंद रॉक : कुमारी अंतरीप में देवी के मुख्यमंदिर के अलावा अन्य कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें विवेकानंद रॉक उल्लेखनीय है। यह कन्याकुमारी क्षेत्र का एक नवीन आकर्षण का केंद्र है। तट – भूमि से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर समुद्र में दो विशाल चट्टानें उभरी हुई हैं। वहां पहुंचने के लिए मोटर – बोट तथा छोटी नौकाओं का प्रबंध है, जो यात्रियों को केवल दस मिनट में ही सागर – यात्रा करा देती हैं। इस चट्टान पर देवी ने पहली बार तप किया था। वहां पर इनके चरण – चिह्न हैं, जिसकी पूजा की जाती है। यह स्थल ‘ श्री पाद पारै ‘ नाम से प्रसिद्ध है। देवी के परमभक्त स्वामी विवेकानंद सन् 1892 में कन्याकुमारी पहुंचे थे। देवी के चरण – चिह्नों के दर्शन की लालसा से प्रेरित विवेकानंद सागर में तैर कर उस चट्टान पर जा पहुंचे, जहां तीन दिनों तक समाधिस्थ रहकर अपना संपूर्ण जीवन मानव – सेवा में लगाने का पवित्र संकल्प लिया था। उन्हीं की स्मृति में बड़े चट्टान के ऊपर स्मारक का निर्माण किया गया है। विवेकानंद स्मारक में तीन विशेषताएं हैं – प्रथम स्वामीजी की कलात्मक मूर्ति, फिर ‘ सभा मंडप ‘ तथा शांतिदायक ‘ ध्यानमंडप ‘। यहां ‘ ॐ ‘ के रूप में चतुर्दिक मंद नीला प्रकाश फैलता रहता है, जहां ध्यान करने पर एक विशेष प्रकार की आनंददायक अनुभूति होती है। कन्याकुमारी मंदिर के निकट ही सागरमार्ग में दूसरा दर्शनीय स्थल है – ‘ गांधीमंडप ‘। अंतरीप पर सागर – संगम में विसर्जित करने से पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अस्थिकलश यहां दर्शनार्थ रखा गया था। तीन मंजिलों का यह मंडप वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। इसकी विशेषता है गांधी जयंती के दिन, 2 अक्तूबर को सूर्य की किरणें झरोखों से होकर उसी स्थान पर पड़ती हैं, जहां अस्थिकलश रखा गया था। कुमारी अंतरीप ( केप कामोरिन ) की उल्लेखनीय नैसर्गिक विशेषता यह है कि यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है। अद्भुत दृश्य पूर्णिमा की संध्या का होता है, जब  पश्चिम में रक्ताभ सूर्य डूबता रहता है और पूरब में चंद्रोदय होता है।
  • शुचीन्द्रम : कन्याकुमारी से यह स्थान 13 किलोमीटर दूर है। दर्शन करें, वृहत् वर्णन इसी नाम के तीर्थ में पढ़ें।
  • आदि केशव : कन्याकुमारी से 37 किलोमीटर पर स्थित भगवान नारायण का भव्य मंदिर है। मंदिर में भव्य मूर्ति है। मंदिर दर्शनीय है। भगवान नारायण की 16 फीट लंबी शेषशैया पर लेटी यात्रा मार्ग कन्याकुमारी मंदिर और अंतरीप पहुंचने के लिए अब रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग दोनों प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। तिरुनेलवेली तथा त्रिवेंद्रम से भी यहां के लिए अच्छी सड़कें हैं। त्रिवेंद्रम से दक्षिण रेलवे की सीधी लाइन इस तीर्थस्थल तक है, जो कि अधिक सुविधाजनक है। यहां पहुंचने के लिए सर्वाधिक सुविधाजनक पथ तिरुवनंतपुरम ( त्रिवेंद्रम ) से कन्याकुमारी की रेललाइन है। रेल मार्ग द्वारा दूसरा मार्ग चेन्नई से कन्याकुमारी स्टेशन दक्षिण रेलवे का अंतिम स्टेशन है, जहां अच्छे प्लेटफार्म, प्रतीक्षालय तथा यात्री – निवास का निर्माण किया गया है। त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी की यात्रा रेल से की जाए अथवा बस से, रास्ते में हरे – भरे धान के खेत, नारियल, सुपारी, कटहल और काजू के वृक्षों की पंक्तियां देखकर मन मुदित हो उठता है। रास्ते में कई छोटी – बड़ी सरिताएं हैं साथ ही पूरब और उत्तर की ओर लहराते सागर के दर्शन भी होते रहते हैं।

ठहरने के स्थान

सर्दियों का मौसम यहां की यात्रा के लिए उत्तम है। बरसात में भी यात्रा की जा सकती है, पर गर्मी में तेज धूप और उमस रहती है।

सारे पाप धुल जाते हैं कन्याकुमारी शक्तिपीठ के दर्शन से

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