सप्तशृंगी सिद्धपीठ ( नासिक ): अष्टभुजी तेजस्वी प्रतिमा दर्शन करता हैं मनोकामना पूरी

0
817

saptashrngee siddhapeeth ( naasik ): ashtabhujee tejasvee pratima darshan karata hain manokaamana pooreeसप्तशृंगी सिद्धपीठ ( नासिक ) देवी को ब्रह्मरूपिणी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा देवता के कमंडल से निकली गिरजा महानदी देवी सप्तश्रृंगी का ही रूप हैं। सप्तश्रृंगी की महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के त्रिगुण स्वरूप में भी आराधना की जाती है। कहते हैं कि जब भगवान राम सीता और लक्ष्मण नासिक पधारे थे। तब इस देवी के द्वार पर भी आए थे। ऐसी दंतकथा है कि किसी भक्त द्वारा मधुमक्खी का छत्ता तोड़ते समय उसे इस देवी की मूर्ति दिखाई दी थी। पर्वत में बसी देवी की मूर्ति 8 फीट ऊंची है। इसकी आठ भुजाएं हैं। देवी के सभी हाथों में हैं। जोकि देवताओं द्वारा महिषासुर के वध के लिए उन्हें प्रदान किए गए थे। इनमें भगवान शंकर का त्रिशूल, भगवान विष्णु का चक्र। वरुण का शंख, अग्नि का दाहकत्व, वायु का धनुष वाण और इंद्र का घंटा और वज्र, दक्ष प्रजापति की स्फटिक माला, ब्रह्मदेव का कमंडल, सूर्य की किरणें, कालस्वरूनी देवी की तलवार, शिवसागर का हार, कुंडल और कड़ा। विश्वकर्मा का तीक्ष्ण परशु व कवच। समुद्र का कमल हार, हिमालय का सिंह व रत्न शामिल हैं। सिंदूरी होने के साथ ही रक्त वर्ण हैं जिनकी आंखें तेजस्वी हैं। इस पर्वत पर पानी के 108 कुंड हैं।  सप्तशृंगी गिरिक्षेत्र नासिक जिले के डिडोंरी और कलवण तालुकों की सीमा पर सहयाद्रि पर्वतमाला के एक पर्वत भाग पर सप्त शृंगगढ़ के उत्तुंग पर्वत के रूप में है, जो समुद्र तल से 5250 फीट की उंचाई पर है। इसके दो भाग हैं। पहला 2500 फीट ऊंचा, दूसरा वहां से 2750 फीट ऊंचा। भगवती का स्थान इसी दूसरे भाग में है। इसकी सात चोटियां सींग की तरह हैं। इसी से इसे सप्तशृंगी कहते हैं। इसकी तलहटी में वणी नामक गांव है, जो गढ़ से 3 किलोमीटर दूर है। यहां से कई किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने पर समतल गांव मिलता है, जहां अनेक तीर्थ कुंड हैं। आगे लगभग 750 सीढ़ियां चढ़कर एक विशाल गुफा में मां सप्तशृंगी का भव्य विग्रह है। कुछ स्थानीय विद्बानों के अनुसार, इसे शक्तिपीठ के रूप में मान्यता दी गई है। निश्चित तौर पर यह परम पावन धाम दैवीय कृपा प्रदान करने वाला है, मनोकामनाओं को पूर्ण कराने वाला है, लेकिन देशभर के अधिकांश विद्बानों ने इसे 51 शक्तिपीठों में शामिल नहीं किया है।  कुछ विद्वान् इसे अर्ध शक्तिपीठ मानते हैं। हलाकि सिद्धपीठ के रूप में देशभर में मान्यता है। इस पावन धाम की देशभर में बहुत महत्ता है। सिंदूर चर्चित पूर्णाकृति 12 फीट ऊंची है। इनका स्वरूप अष्टादश भुजाओं वाली देवी का है। इनका स्वरूप प्रातः मध्याह्न तथा सायं वेला में परिवर्तित होता रहता है। इस पर्वत के उच्च शिखर पर जिसे ऊंकार पर्वत कहते हैं, देवी का मूल स्थान है, किंतु अत्यंत दुर्गम होने से वहां कोई नहीं जाता है। पौराणिक आख्यानानुसार ऋषि मार्कंडेय ने इसी दुर्गम शिखर पर तपस्या की थी और जगदंबा का साक्षात्कार किया था। स्थानीय मान्यता के अनुसार, उल्लेखनीय है कि मातापुर महाकाली पीठ ‘ म ‘ कार है, कोल्हापुर महालक्ष्मी पीठ ( अकार ) है तथा तुलजापुर सस्वती – पीठ ( उकार) है , जबकि सप्तशृंगी पीठ महासरस्वती की अर्द्धमात्रा पीठ है, जो विशुद्ध संविदा स्वरूप हैं। इस तरह अ + उ + म + त् , ( प ) की पूर्ति होती है। मांडूक्य ‘ उपनिषदानुसार साढ़े तीन मात्रा वाले कार के प्रतीक भूत इन पीठों पर साधक को मुक्ति – भुक्ति स्वतः प्राप्त हो जाती है।

यात्रा मार्ग

Advertisment

यहां पहुंचने के दो मार्ग हैं। सरल सुविधाजनक मार्ग नासिक रोड स्टेशन से होकर है। नासिक से सप्तशृंग गढ़ तक बस सेवा है, जिसके लिए एक मार्ग गढ़ के दक्षिणी भाग से है, दूसरा उत्तरी भाग से दक्षिण भाग से जाने पर यात्री पंडों के यहां ही ठहरते हैं। उत्तरी भाग से जाने पर नंदूरीग्राम से सीधा समतल मार्ग मिलता है।

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here