कुंभकोणम् ( नवग्रह मंदिर ): सभी ग्रह दोष से मिलती है मुक्ति

0
4204

kumbhakonam ( navagrah mandir ): sabhee grah dosh se milatee hai muktiकुंभकोणम् ( नवग्रह मंदिर ): तमिलनाडु प्रांत में स्थित कुंभकोणम् स्थल दो कारणों से प्रसिद्ध है। यहां एक पवित्र सरोवर व एक बड़ा ब्रह्माजी का मंदिर है। इसके अतिरिक्त 60 किलोमीटर की परिधि में नौ ग्रहों के बड़े – बड़े सुंदर भव्य मंदिर अलग – अलग स्थानों में हैं, जिनका अपना महत्त्व है। प्रत्येक मानव के जीवनकाल में सभी नौ ग्रहों का पृथक् – पृथक् प्रभाव पड़ता है। कुछ ग्रह समय – समय पर कष्टकारी हो जाते हैं और उनका प्रभाव कम करने हेतु उस ग्रह मंदिर में पूजा – अर्चना करने से लाभ प्राप्त होता है। सभी मंदिरों से कुछ ना कुछ प्राचीन कहानी जुडी दिखाई देती है और सभी कहानिया अद्भुत लगती है। इन सब मंदिरों में भगवान शिव एक नए रूप और अवतार नजर आते है और उनके अवतार की कहानिया भी काफी रोचक लगती है। जिन्हें भी ग्रह दोष हो उन सब ने एक बार इन नौ ग्रहों के देवता के दर्शन जरुर करने चाहिए क्यों की ऐसा करने से उन्हे सभी ग्रह दोष से मुक्ति मिल जाती है। ब्रह्मांड की जब निर्मिती हुई थी उस वक्त सबसे पहले सूर्य समेत सभी ग्रहो की निर्मिती हुई थी। उसमें सबसे पहले सूर्य की निर्मिती हुई और इसके बाद सभी ग्रह अपने आप बनते गए। लेकिन जब यह ग्रह बने तो उनके साथ में इन नौ ग्रहों के देवता भी जन्म ले चुके थे। ब्रह्माण्ड में जितने नौ ग्रह है उनके नौ ग्रहों के नौ देवता भी है। इन नौ ग्रहों की दशा और दिशा के आधार पर लोगो का भविष्य निर्भर करता है, साथ ही उनकी बारा राशिफल का भी पता लग जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु (साप का सिर) और केतु (साप की पूछ) को उत्तर दिशा और दक्षिण दिशा समझा जाता है और बाकी के जो नौ ग्रह है साफ़ तरीके से दिखाई देते है जिसमे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि ग्रह शामिल है।

कुंभकोणम् ( नवग्रह मंदिर ) की धार्मिक कथा 

कुंभकोणम् का संस्कृत नाम कुंभघोणम् है। कहते हैं ब्रह्माजी ने एक घड़ा ( कुंभ ) अमृत से भरकर रखा था। उस कुंभ की नासिका ( घोरण ) अर्थात् मुख के समीप एक छिद्र से अमृत चूकर बाहर निकल गया और उससे यहां की पांच कोस तक की भूमि भीग गई। इसी से इसका नाम कुंभकोणम् ( कुंभकोणा ) पड़ गया। पुराणों में वर्णित कामकोर्णापुरी ही कुंभकोणम् है। प्रलयकाल में सृष्टि की उपादान मूल प्रकृति को कुंभ में रखकर ब्रह्मा ने यहीं से सृष्टि – रचना की। यह भी कहते हैं कि ब्रह्मा के यज्ञ में शंकर अमृत – कुंभ लेकर प्रकट हुए थे। दक्षिण भारत में महिमामयी नदी कावेरी के तट पर स्थित है सनातनधर्म का अत्यंत प्राचीन तीर्थ कुंभकोणम् यह क्षेत्र समस्त संसार में पवित्र भूमि के रूप में मान्य है, जहां एक साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश विराजमान हैं।

Advertisment

कुंभकोणम् ( नवग्रह मंदिर ) के प्रमुख दर्शनीय स्थल

  •  श्री कुंभेश्वरास्वामी मंदिरः इनमें श्रीकुंभेश्वरास्वामी मंदिर सबसे प्राचीन तथा मुख्य पूजा – स्थल है। ऐसे प्रमाण मिले हैं कि सातवीं सदी के चोल राजवंश के शासकों द्वारा इन प्रतिमाओं की पूजा – अर्चना की जाती थी, इस वजह से इन्हें छठी सदी से पूर्व का माना जाता है। कुंभेश्वर मंदिर की महिमा का उल्लेख अनेक शास्त्रों में है। इसका कलात्मक और विशाल गोपुरम करीब 130 फीट ऊंचा है।
  • सारंगपाणि मंदिर: दूसरा प्रमुख दर्शनीय मंदिर सारंगपाणि विष्णु का है। करीब एक सौ पचास फीट ऊंचा इसका भव्य गोपुरम बारह मंजिलों का है तथा वास्तुकला का उत्तम उदाहरण है। इनमें अनेक आकर्षक तथा रंग – बिरंगी प्रतिमाएं पूरी सजावट के साथ दर्शनीय हैं।
  • रामास्वामी मंदिर : यहां पर नायक राजाओं द्वारा निर्मित रामास्वामी मंदिर भी है, जो अपनी अपूर्व शोभा और रामायणकालीन चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त सारंगपाणि, नामेश्वर आदि की भी बहुत महिमा है।
  • महामाघम् सरोवर : कुंभकोणम् में इन विशाल मंदिरों तथा गोपुरम के अलावा महामाघम् सरोबर है। मान्यता है कि प्रयाग के संगम के अनुसार ही यहां भी कुंभस्नान की परंपरा है। प्रत्येक 12 वें वर्ष के माघ के महीने में यहां बहुत बड़े धार्मिक समारोह का आयोजन होता है, जबकि कुंभेश्वरस्वामी के सरोवर में स्नान का कार्य होता है।

नवग्रह मंदिर: नवग्रहों के नौ मंदिर इस नगर के 60 किलोमीटर परिधि के अंदर स्थित हैं। प्रत्येक मंदिर एक – एक ग्रह को पृथक् ढंग से प्रदर्शित करता है।

  1. सूर्यानार कोल: यह भव्य सूर्य मंदिर है, जिसमें सूर्य देवता की मूर्ति है। सात घोड़ों वाले एक पहिये के रथ पर सूर्य विराजमान हैं और उनके हाथों में कमल का पुष्प है। इनकी छाती पर ढालनुमा वस्त्र है और उनके बाल खड़े हैं तथा सिर के चारों ओर परिधि में प्रकाश है। यह मंदिर तिरुमंगलाकुड़ी ग्राम में स्थित है। यह नगर से 15 किलोमीटर पर स्थित है।
  2. टिंगलूर : यह भव्य मंदिर चंद्रमा को प्रदर्शित करता है। प्रतिमा विभिन्न प्रकार के पुष्पों से सजी है और सफेद परिध में है। सिर के चारों ओर प्रकाश का घेरा है। यह तिरुवायूरु नाम के ग्राम में स्थित है। यह नगर से 30 किलोमीटर दूर है।
  3. वैतीसवरन कोविल: यह भव्य मंदिर मंगल ग्रह को प्रदर्शित करता है जिसमें अंगरखा प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के हाथ में गदा, शूली शक्ति आदि औजार हैं जो अभयदान के रूप में हैं और यह आग के समान लाल कपड़ों व आभूषणों से सुसज्जित है। यह सिरकाजी ग्राम में 49 किलोमीटर पर स्थित है।
  4. थिरुफ्रवेनकाडू: यह बुध ग्रह को समर्पित मंदिर है। यह अत्यधिक बड़ा मंदिर है। इसकी प्रतिमा के हाथों में गदा खड्ग आदि हैं तथा ये पीले वस्त्र व आभूषणों से सज्जित हैं। यह मंदिर मायावरम ग्राम में 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  5. एलंगुडी: यह गुरु ग्रह को समर्पित अत्यधिक बड़ा गुरुस्थलम मंदिर है। प्रतिमा के हाथों में कमंडल, डंडा व अक्षमाला है और पीले रंग के वस्त्र व स्वर्ण आभूषणों से सज्जित है। यह एलंगुडी ग्राम से 17 किलोमीटर दूर पर स्थित है।
  6. कंजानूर : यह शुक्र से संबंधित भव्य मंदिर है जिसमें प्रतिमा सफेद वस्त्रों में व आभूषणों में सज्जित है। यह तिरुनलफार ग्राम में 20 किलोमीटर पर स्थित है।
  7. थिरुनालान: यह शनि का भव्य प्रांगण है जिसमें अनेक मंदिर हैं। यह कराइकल ग्राम से 48 किलोमीटर पर स्थित है। प्रतिमाएं काले वस्त्र व काले आभूषणों से सज्जित हैं।
  8. तिरुनागेश्वरम्: यह राहु का भव्य मंदिर है जिसमें चांदी का रथ आठ घोडों द्वारा प्रदर्शित है। प्रतिमाएं चांदी – वस्त्र व आभूषणों से सज्जित हैं। यह कुंभकोणम से मात्र 5 किलोमीटर दर स्थित है।

9 केजनेरम – पालम: यह केतु का भव्य मंदिर है , जिसमें प्रतिमा अभय रूप में है और रथ पर दस घोड़ों पर सवार है । यह मंदिर तिरुवेनकाडु के पास 59 किलोमीटर पर स्थित है।

कुंभकोणम् ( नवग्रह मंदिर ) के अन्य दर्शनीय स्थल

  • चिदंबरम् मंदिर: यह शिव मंदिर महादेव के आकाश तत्व को प्रदर्शित करता है। यह केतु मंदिर से 20 किलोमीटर दूर है अतः इसके दर्शन भी करना चाहिए।
  • तंजौर: सभी मंदिरों के दर्शन के पश्चात् वाहन प्रायः तंजौर , भव्य शिव मंदिर पर छोड़ देते हैं, अत : इस भव्य मंदिर के दर्शन करते हुए इसके शिल्पकारी भी देखें।

यात्रा मार्ग

वायु मार्ग- हवाई अड्डा चेन्नई है. जहां से बस या टैक्सी द्वारा कुंभकोणम् पहुंचा जा सकता है। रेल मार्ग से यह स्थान चेन्नई, तांबरम आदि से जुड़ा है। यात्री कुंभकोणम् से साझा टैक्सी या बस द्वारा प्रातः से भ्रमण आरंभ करें और दिन भर सभी मंदिरों के दर्शन करें और अंत में तंजौर उतरकर वहां होटल लॉज अतिथिगृहों आदि में ठहरें।

जानिये रत्न धारण करने के मंत्र

इस मंत्र के जप से प्रसन्न होते हैं राहु, जाने राहु की महिमा

मोती कब व कैसे करें धारण, जाने- गुण, दोष व प्रभाव

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here