कार्तिक मास का हमेशा से हिंदू धर्म में विशेष महत्व रहा है। मान्यता है कि जो जीव कार्तिक मास में प्रतिदिन भगवान का कीर्तन करता है। गीता का पाठ प्रतिदिन करता है। उसके समान दूसरा पुण्य नहीं है। सात समुद्रों तक की पृथ्वी दान करके जो फल प्राप्त होता है, वह कार्तिक मास में स्नान व दान का है, क्योंकि यह संसार अन्न के आधार पर ही जीवित रहता है, इसलिए अन्नदान को श्रेष्ठ माना गया है।
कार्तिक मास को लेकर एक पावन कथा है, जिसे हम आपको बताते है। एक समय ब्रह्मा जी स्वयं नारद जी से बोले कि कार्तिक मास भगवान विष्णु का सदा ही प्रिय रहा है। इस मास में भगवान के निमित्त जो कुछ भी पुण्य किया जाता है, उसका नाश नहीं होता है। मनुष्य योनी दुर्लभ है, इसलिए मनुष्य योनी में जन्म लेकर इस देह से कार्तिक मास में शुभ कर्म करने चाहिए। जिस कारण जीव पुन: नीचे नहीं गिरता है। इस माह में सभी देवता मनुष्य के समीप हो जाते है और इस माह में किए गए दान, पुण्य, स्नान, भोजन, व्रत, स्वर्ण, चांदी, भूमि, वस्त्रादि के दान को देवता विधि पूर्वक ग्रहण करते हैं। भगवत उद्देश्य से मनुष्य जो कुछ भी दान-पुण्य करता है, वह उसे अक्षय रूप में प्राप्त करता है। अन्न दान का सर्वथा महत्व इसलिए है, क्योंकि मनुष्य के पापों का नाश हो जाता है।
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दान करने में असमर्थ मनुष्य को चाहिए कि वह प्रतिदिन प्रसन्नता और भक्तिभाव से भगवान के नामों का स्मरण करें और इस माह में गंगा स्नान करते हुए कार्तिक मास की कथा को भक्तिभाव से पढ़ लें तो नि:संदेह वह अनंत पुण्य का भागी बनता है। इस माह में भगवान की प्रसन्नता के लिए शिव अथवा विष्णु मंदिर मंे जागरण कीर्तन करें। स्वयं दीपदान करे अथवा दूसरे के जलते हुए दीये की रक्षा करे। तुलसी या आँवला के वृक्ष को भगवत स्वरूप मानते हुए उनका पूजन करे तो इससे भगवान का सारुप्य और मोक्ष पद प्राप्त होता है। कार्तिक मास में भूमि पर सोने वालों के पाप युगों-युगों के लिए नष्ट हो जाते हैं। अरुणोदयकाल में जागरण करके गंगा में या किसी भी जलाशय में गंगा की भावना करके स्नान करने मनुष्य के करोड़ों जन्मों के कल्मष धुल जाते हैं।
गोविंद गोविद हरे मुरारी, गोविंद गोविंद मुकुंद कृष्ण।
गोविंद गोविंद रथांगपाण्ो, गोविंद दामोदर माधवेति।।
इस तरह से सम्पूर्ण कार्तिक मास में प्रतिदिन भगवान का कीर्तन करना चाहिए।