पंच सरोवर में है मानसरोवर ( शक्तिपीठ दाक्षायिणी ): ब्रह्म की इच्छा से निर्मित सरोवर

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मानसरोवर ( शक्तिपीठ दाक्षायिणी )

panch sarovar hai maanasarovar ( shaktipeeth daakshaayinee ): brahm kee ichchha se nirmit sarovarपंच सरोवर:  मानसरोवर( शक्तिपीठ दाक्षायिणी ): सनातन मान्यता के अनुसार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है – मन का सरोवर। यहां देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। कहा यह भी जाता है कि पुराणो में जिस क्षीर सागर का वर्णन किया गया है कि क्षीर सागर में श्री विष्णु भगवान रहते हैं,वो यही है!हिमालय के पर्वतीय तीर्थों की यात्रा में मानसरोवर कैलाश की यात्रा ही सबसे कठिन है। मानसरोवर कैलाश की यात्रा में यात्री को लगभग 3 सप्ताह तिब्बत में ही रहना पड़ता है। केवल यही एक यात्रा है, जिसमें यात्री हिमालय को पूरा पार करता है। दूसरी यात्राओं में तो वह हिमालय के केवल एक पृष्ठांश के ही दर्शन कर पाता है। मानसरोवर-कैलाश, अमरनाथ, गंगोत्री, स्वर्गारोहण जैसे क्षेत्रों की यात्रा में, यात्री को समुद्र स्तर से 12000 फुट ऊपर या उससे अधिक ऊंचाई पर जाना पड़ता है। यात्री यदि ऑक्सीजन मास्क साथ ले जाएं, तो हवा पतली होने एवं हवा में ऑक्सीजन की कमी से होने वाले श्वास कष्ट से वे बच जाएंगे।

कैलास पर्वते राम मनसा निर्मितं परम्।

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ब्रह्मणा परशार्दूल तेनेदं मानसं सरः ॥

 ( वा.रा. बालकांड 24।8 )

भावार्थ:  कैलाश पर्वत पर ब्रह्म की इच्छा से निर्मित एक सरोवर है। मन से निर्मित होने के कारण इसका नाम मानसर या मानसरोवर है।

नोट- आने वाले समय में कैलाश मानसरोवर यात्रा अब आसान हो जाएगी। केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार दिसंबर 2023 तक सड़क बनने के बाद श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर की यात्रा आसानी से कर सकेंगे। श्रद्धालुओं को नेपाल या चीन के रास्ते कैलाश मानसरोवर नहीं जाना पड़ेगा। वे पिथौरागढ़ से सीधे सड़क मार्ग से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जा सकेंगे। इसके लिए सड़क को बेहतर बनाया जा रहा है। चीन सीमा को जोड़ने वाली सामरिक महत्व की घट्टाबगड़-लिपुलेख सड़क दो साल में पक्की बन जाएगी। इस सड़क के चौड़ा और हॉटमिक्स होने से स्थानीय गांवों के लोगों और सुरक्षा बलों के जवानों को तो बेहतर आवागमन की सुविधा तो मिलेगी ही कैलाश मानसरोवर यात्रा भी सुगम हो जाएगी। यह हिन्दूहितकारी सरकार की बड़ी पहल है।

 एक परिक्रमा से इस जन्म तो 108 परिक्रमा से मुक्ति 

मानसरोवर की परिक्रमा का बहुत महत्व है। तिब्बती लोग 3 या 13 परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंडप्रणिपात् करके परिक्रमा पूरी करते हैं। धारणा है कि एक परिक्रमा करने में एक जन्म का दस परिक्रमाये करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है, जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं, उन्हें जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है। हिमालय के पार चीन के तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है, इसे गणपर्वत और रजत गिरी भी कहते हैं। वर्ष भर बर्फ से आच्छादित रहने वाले 22,028 फुट ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ मानस खंड भी कहलाता है। माना जाता है कि प्राचीन साहित्य में वर्णित मेरु भी यही है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मारीचि आदि ऋषि एवं रावण, भस्मासुर आदि ने यहां तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने भी की थी। आदि शंकराचार्य भी इस स्थान पर आए थे। जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्व है- वह कैलाश को अष्टापद कहते हैं। कहां जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यही निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध धर्म शास्त्र में मानसरोवर का उल्लेख अनवतप्त के रूप में हुआ है। उसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। बौद्ध अनुश्रुति है कि कैलाश पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है -उसकी उपत्यका ने रत्नखचित कल्पवृक्ष है। डेमचोक (धर्मपाल) वहां के अधिष्ठाता देव हैं- व्याघ्रचर्म धारण करते हैं, मुंडमाल पहनते हैं, उनके हाथ में डमरू और त्रिशूल हैं। बज्र उनकी शक्ति है। कैलाश पर्वत माला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है, जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है- पर्वतों से बने षोड्सदल कमल के मध्य स्थित है।

तीर्थ के दर्शनीय स्थल 

पूरे हिमालय को पार करके तिब्बती पठार में लगभग 50 किलोमीटर जाने पर पर्वतों से गिरे दो पावन सरोवर मिलते हैं।

  • दाक्षायिणी शक्तिपीठ: यहां सती की दाहिनी हथेली गिरी थी अतः या एक शक्तिपीठ है। मानसरोवर के किनारे डोलमा पर्वत के पास एक चट्टान को ही पार्वती वाक्यों का रूप माना जाता है।
  • मानसरोवर: इस काजल अत्यंत स्वच्छ और अद्भुत नीलाभ है। इसका आकार लगभग गोल या अंडाकार है। मानसरोवर के आसपास कहीं कोई वृक्ष नहीं, कोई पुष्प नहीं। इस क्षेत्र में छोटी घास और अधिक से अधिक सवा फुट तक ऊंची उठने वाली एक कटीली झाड़ी को छोड़कर और कोई पौधा नहीं मिलता है। मानसरोवर का जल सामान्य शीतल है। उसमें मजे से स्नान किया जा सकता है। उसके तट पर रंग-बिरंगे पत्थर और कभी-कभी इस स्फटिक के छोटे टुकड़े भी पाए जाते हैं।
  • राक्षस ताल: राक्षस ताल विस्तार में बहुत बड़ा है। वह गोल या चौकोर नहीं है। उसी कई भुजाएं मीलों दूर तक टेढ़ी-मेढ़ी होकर पर्वतों में चली गई हैं। कहा जाता है कि किसी समय राक्षस राज रावण ने यही खड़े होकर देवाधिदेव भगवान शंकर की आराधना की थी।
  • कैलास: मानसरोवर से कैलाश लगभग 35 किलोमीटर दूर है। वैसे उस के दर्शन मानसरोवर पहुंचने से बहुत पूर्व ही होने लगते हैं। तिब्बत के लोगों में कैलाश के प्रति अपार श्रद्धा है। अनेक तिब्बती श्रद्धालु पूरे कैलाश की परिक्रमा दंडवत प्रणिपात पार्क करते हुए पूरी करते हैं। शिवलिंगाकार कैलाश पर्वत आसपास के समस्त शिखरों से अधिक ऊंचा है। वह कसौटी के ठोस काले पत्थर का है और ऊपर से नीचे तक दुग्धोज्जवल बर्फ से ढका रहता है, किंतु उससे लगे हुए वे  पर्वत जिनके शिखर कमलाकार हो रहे हैं, कच्चे लाल मटमैले पत्थर के हैं। आसपास के सभी पर्वत इस प्रकार के कच्चे पत्थरों के हैं। कैलाश अकेला ही यहां ठोस काले पत्थर का शिखर है। कमलाकार शिखर क्योंकि कच्चे पत्थर के हैं, इसलिए गिरते रहते हैं। एक ओर के चार पंखुड़ियों जैसे शिखर इतने गिर गए हैं कि अब उनके शिखरों के भाग कदाचित कुछ वर्षों में बराबर हो जाएं। एक बात और ध्यान देने योग्य है कि कैलाश के शिखर के चारों कोनों में ऐसी  मंदिराकृति प्राकृतिक रूप से बनी है, जैसी बहुत से मंदिरों के शिखरों पर चारों ओर बनी होती है। कैलाश के दर्शन करते ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वह एक असामान्य पर्वत है- देखते हुए समस्त हिम शिखरों में सर्वथा भिन्न और दिव्य।
  • परिक्रमा: कैलाश की परिक्रमा लगभग 50 किलोमीटर की है। जिसे यात्री प्रायः  3 दिनों में पूरा करते हैं। यह (परिक्रमा) कैलाश शिखर के उसके चारों ओर के कमलाकार शिखरों के साथ होती है, क्योंकि कैलाश शिखर तो अस्पृश्य है और उसका स्पर्श यात्रा मार्ग से लगभग ढाई किलोमीटर सीधी चढ़ाई पार करके ही किया जा सकता है और या चढ़ाई पर्वतारोहण की विशिष्ट तैयारी के बिना संभव नहीं है। कैलाश शिखर की ऊंचाई समुद्र से 22000 फुट कही जाती है। कैलाश के दर्शन एवं परिक्रमा करने पर अद्भुत शांति एवं पवित्रता का अनुभव होता है।

 मानसरोवर यात्रा मार्ग

यहां की यात्रा चीन से अनुमति मिलने के पश्चात ही की जा सकती है। जिसके लिए पहले से ही निवेदन करना पड़ता है। यात्रा के पूर्व स्वास्थ्य परीक्षण आदि कराया जाता है। मानसरोवर यात्रा के विज्ञापन सरकार की जारी किए जाते हैं।

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