saptapuree-mein-ujjain-yaani-yaani-avanti-muktidhaam-hai सनातन परम्परा में सप्तपुरियों का विशेष महत्व है। सप्तपुरियों को मोक्षदायिनी नगरी माना जाता है। इन परम पवित्र नगरियों में काशी, कांची अर्थात कांचीपुरम, अयोध्या, द्बारका, मथुरा, माया अर्थात हरिद्बार व अवंतिका अर्थात उज्जयिनी शामिल हैं। उज्जैन यानि उज्जयिनी भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी या शिप्रा नदी के किनारे पर बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी । उज्जैन को कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। ई.पू सन 600 वर्ष पूर्व के तत्कालीन समय में भारत में जो सोलह जनपद थे, उनमें ‘अवंति ‘ जनपद भी एक था। अवंति उत्तर एवं दक्षिण इन दो भागों में विभक्त होकर उत्तरी भाग की राजधानी उज्जैन थी तथा दक्षिण भाग की राजधानी महिष्मति थी। उस समय चंद्रप्रद्योत नामक सम्राट सिंहासनारूदह थे। प्रद्योत के वंशजों का उज्जैन पर ईसा की तीसरी शताब्दी तक प्रभुत्व था। द्वापर युग में विद और अनुविंद उज्जयिनी के शासक बताये गये हैं, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। बौद्धकाल में यह एक विस्तृत राज्य के रूप में था, जिसमें उज्जयिनी एक बड़ी व्यापारिक मण्डी के रूप में विकसित थी। शिवपुराण में वर्णित महाकाल की कथा इस प्रकार है – अवंती नाम की नगरी, भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है और समस्त देहधारियों को मोक्ष प्रदान करने वाली है। इसी नगरी में एक धर्मात्मा ब्राह्मण वास करता था। उसके चार पुत्र थे रत्नमाला पर्वतवासी दूषण नाम के एक राक्षस ने नगर को घेर कर जनता को त्रस्त करना आरंभ किया। जनता उस ब्राह्मण की शरण में गई। ब्राह्मण ने भगवान शंकर का तप किया। उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान महाकाल पृथ्वी फाड़कर प्रकट हुए और उन्होंने राक्षस का संहार किया। भक्तों ने भगवान से प्रार्थना की – ‘ हमें पूजा की सुविधा देने के लिए, आप यहीं निवास करने की कृपा कीजिए। ‘ भक्तों के आग्रह पर महाकाल ज्योतिलिंग के रूप में वहीं स्थित हो गए।
उज्जयिनी यानि ‘अवंति’ के दर्शनीय स्थल
- महाकलेश्वर मंदिर: उज्जैन में सुप्रसिद्घ स्थल है-भगवान महाकाल का मंदिर। यह भगवान शंकर के बारह ज्येतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर एक झील के पास है और इसके पांच तल्लों में से एक तल्ला भूमग्न है। मुख्य मंदिर के मार्ग में बड़ा अंधेरा रहता है। अत: वहां निरंतर दीप जलते रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को जो भी सामग्री चढ़ाई जाती है, वह निर्माल्य बन जाती है, जिससे उसका पुन: प्रयोग करना वर्जित है, क्योकि यह बात इस ज्योतिर्लिंग के साथ नहीं है। यहां न केवल चढ़ाया हुआ प्रसाद ही लिया जाता है, अपितु एक बार चढ़ाये गए विल्वपत्र भी धोकर पुन: चढ़ाए जा सकते हैं। मंदिर प्रांगण अति भव्य है। मुख्य मंदिर पांच मंजिला है, जिसके ऊपरी मंजिल में ओंकारेश्वर विद्यमान हैं। नीचे की मंजिल या भूतल पर महाकालेश्वर का ज्योतिर्लिंग स्थापित है। लिंग मूर्ति अति विशाल है व इसके चारो ओर से चांदी की जलहरी है। इसके ऊपर एक नाग परिवेष्ठिïत है। इसके एक ओर गणेश व दूसरी ओर पार्वतीजी व तीसरी ओर कार्तिकजी की मूर्तियां स्थापित हैं।
२. कोटितीर्थ सरोवर: मंदिर से पहले एक बड़ा सरोवर है, जिसके आस-पास अनेक छोटी-छोटी शिव छतरियां हैं। यात्री इसमें स्नान करने के पश्चात ही दर्शन करने जाते हैं।
३. सभा मंडप: मंदिर के पास एक बड़ा सभा मंडप भी है, जिसमें श्रीराम मंदिर और इसके पीछे अवंतिकापुरी या उज्जैन की अधिष्ठत्री अवंतिका देवी का मंदिर है।
४. बड़ा गणेश मंदिर: मुख्य मंदिर के पास ही बड़े गणे की आधुनिक बहुत बड़ी सुंदर मूर्ति स्थापित है।
५. हनुमान मंदिर: गणेश मंदिर के पास एक मंचमुखी हनुमान जी का मंदिर है। मूर्ति सप्तधातु की बनी है।
६. अन्य मंदिर: मंदिर प्रांगण के अंदर अनेक छोटे बड़े मंदिर है।
अन्य पावन तीर्थ
- शिप्रा नदी: पवित्र नदी जिसकी उत्पत्ति विष्णु जी के शरीर से मानी गई है। यहां पर बहती है। इसके किनारे चार-पांच पक्के घाट हैं। जहां यात्री सुविधापूर्वक स्नान कर सकते हैं। शिप्रा नदी के किनारे बहुत से मंदिर है। जो पृथक-पृथक देवी देवताओं के हैं तथा दर्शनीय हैं और प्राचीन भी हैं।
- दत्त का अखाड़ा: प्रसिद्घ अखाड़ा नदी के पुल के उस पार जाने पर अवस्थित है।
- हरसिद्घि मंदिर: उज्जैन का दूसरा प्रसिद्घ मंदिर हरसिद्घि है। स्कंदपुराण की कथा के अनुसार भगवान शंकर एक बार कैलाश में अपनी पत्नी गौरी के साथ पासा खेल रहे थे। चंड और प्रचंड नाम के दो असुरों ने उनके खेल में बाधा डाली तथा नदी को घायल कर दिया। ‘हर अर्थात भगवान शिव ने देवी का ध्यान किया और उन राक्षसों का संहार करने की प्रार्थना की। भगवती ने प्रकट होकर ‘हर का कार्य सिद्घ किया। इसी कारण उन्हें हरसिद्घि कहा जाता है। भगवती दुर्गा के मुख्य स्वरूपों में से एक है। कहा जाता है कि हरसिद्घि सम्राट विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं। यहां सती की केहुनी गिरी थी। इसे मंगत्व चंडिका शक्तिपीठ कहा जाता है।
- सिद्घवट: यात्री ‘सिद्घवट नाम के एक वटवृक्ष के भी दर्शन करने जाते हैं। यह आकार में बहुत ही छोटा है। कहा जाता है कि वर्षों से उसका यही आकार है। यह शिप्रा नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है।
- महाकाली-गढ़ कालिका मंदिर: यह प्राचीन मंदिर नदी के कुछ पहले स्थित है। कथा है कि कवि कालिदास ने यहीं से प्रसिद्घि प्राप्त की थी।
- भर्तृहरि स्था: उपरोक्त मंदिर से कुछ दूर एक संकरी गुफा है, जिसमें प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं, जिसे भर्तृहरि की समाधि माना जाता है।
- ज्योतिष विद्या केन्द्र: शिप्रा के दक्षिणी तट के पास जीर्ण दशा में यह वेधशाला है, जिसके कुछ यंत्र अब भी शेष हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल
- निष्कलंकेश्वर मंदिर: नगर से लगभग दस किलोमीटर पर एक ग्राम में स्थित है। यहां भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति है। इसके पास पार्वतीजी और सामने की ओर नंदी विराजमान हैं। गणेश की मूर्ति द्वार पर स्थित है। मंदिर के पास एक सरोवर भी है।
- कनकावती मंदिर: यह मंदिर भी नगर से 30 किलोमीटर दूर है और यहां अष्टïभुजा देवी का मंदिर है।
- चित्रगुप्त मंदिर: उज्जैन शपास ही एक ग्राम में एक चबूतरा बना है और कहा जाता है यहां चित्रगुप्त जी ने यज्ञ किया था। प्राचीन मंदिर में चित्रगुप्त की प्रतिमा स्थित है।
- अन्य मंदिर: उज्जैन में मंगलानाथ-मंदिर, गोपाल मंदिर, श्रीनाथ मंदिर, शनि मंदिर, मंठाल मंदिर, कालियादह महल और सांदीपनि आश्रम आम दर्शनीय स्थल हैं।
यात्रा- ठहरने के स्थान
उज्जैन में ठहरने के लिए अनेक धर्मशालाएं हैं। हवाई जहाज से वहां जाने के लिए इंदौर के एयरपोर्ट पर उतरना होता है, जिसकी दूरी उज्जैन से मात्र 53 किलोमीटर है। मध्य प्रदेश के हर बड़े शहर से उज्जैन के लिए बसें है।