kitane-hindoo-virodhee-hote-ja-rahe-hain-raahul-baabaइंदिरा गांधी के शासनकाल में जिस तरह से गौवंशकी रक्षा की लड़ाई लड़ रहे साधु संतों पर तत्कालीन सत्ता ने क्रूरता का प्रदर्शन किया था। वह आज भी कांग्रेस के क्रूर शासन परम्परा का जीवन्त उदाहरण है। इमेर्जेंसी में संविधान को कुचला गया। आम जन के जनतांत्रिक अधिकारों का दमन किया गया। आजादी के बाद से कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति को प्रश्रय दिया, जो आज भी देश की सियासत का कलंक है और समय-समय पर हिंदू जनमानस की भावनाओं को सिरे से कुचलने का प्रयास किया। आज जब कांग्रेस अपने पतन के आखिरी पायदान पर खड़ी है तो उसे लोकतांत्रिक परम्पराएं याद आ रही है। उसे यह याद नहीं आ रहा है कि किस तरह से भारत के बंटवारे के समय लाखों हिंदू मारे गए? इसके लिए जिम्मेदार कौन था?
उन्हें यह भी याद नहीं आ रहा कि इमेर्जेंसी के दौर में कांग्रेस की आयरन लेडी कही जाने वाली इंदिरा गांधी ने देश भर किस-किस प्रकार का जन उत्पीडऩ किया है। हां, अब जब देश में सत्ता पर बैठी एक दक्षिणपंथी सरकार यहां के बहुसंख्यक के खिलाफ हुए अन्याय को खत्म कर उन्हें न्याय दिलाने का प्रयास कर रही है तो कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी को भाजपा की यह पहल ही देश की जड़ों में किरोसिन तेल छिडक़ना नजर आ रहा है। है न, आश्चर्य की बात। यह राहुल गांधी रसातल में पहुंची वैचारिक समझ को दर्शाने के लिए काफी है। यह बताने के लिए काफी है कि दो दशक तक सक्रिय राजनीति में रहने के बावजूद उनकी सोच कितनी सतही सोच है।
सही बात तो यह है कि वह यह भी समझ नहीं सकें कि भारत क्या है? भारत की सांस्कृतिक विरासत क्या है? भारत की आत्मा क्या है? और हिंदू का भारत से क्या संबंध है। हिंदू बिना भारत के क्या मायने हैं? उनकी सतही सोच यह जरूर जगजाहिर करती है कि उन्होंने भारत को समझने के जिस गुरु से क्रेश कोर्स किया है। वह कितना अधकचरा है? वामपंथ की चादर ओढ़ें गुरु ने कैसा शिष्य तैयार किया है?, जो उस भ्रमजाल से नहीं निकल पा रहा है, जिस मकडज़ाल में फंस कर कांग्रेस सर्वनाश के मुहाने तक पहुंच चुकी है।
आज भी गृह मंत्री अमित शाह के शब्दों में राहुल बाबा उसी भ्रम को सच मान रहे हैं। विदेश में बैठकर ही उस झूठे सच का जगह-जगह ढिंढोरा पीट रहे हैं। लंदन में भारत विरोधी फोरम में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर पूरे देश में केरोसिन छिड़कने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘केवल चिंगारी लगाने की जरूरत है।’
अब उन्हें कौन बताए कि वे जिसे केरोसिन समझ रहे हैं, वह देश की बहुसंख्यक जनता के लिए गंगाजल है। यह सदियों के अपमान को धोने के लिए है। इसलिए चिंगारी लगाने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा। अगर यह केरोसिन साबित होगा तो केवल राहुल गांधी और उनकी पार्टी के लिए। मुसलमानों को रिझाकर वे कोई राजनीतिक फसल नहीं काट सकते हैं। वे कांग्रेस से बहुत दूर जा चुके हैं।
बंगाल में ममता बनर्जी से लेकर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव तक कांग्रेस के इस वोट बैंक को उससे अलग कर चुके हैं। यह बात सिर्फ राहुल गांधी को समझ में नहीं आ रही है कि वे कितने हिंदू विरोधी होते जा रहे हैं। उनकी पार्टी के बड़े नेता भी यह जानते हैं, लेकिन कह नहीं सकते हैं। विडंबना देखिए कि उन्हीं राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही है। दूसरी तरफ, उन पर अक्षमता का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ने वाले संभावनाशील युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने की सूची लंबी होती जा रही है।