पावन सप्त सरिता में पतितपावनी गंगा: पूजन- स्नान से मिलता है भक्तों को अक्षय पुण्य

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पवन सप्त सरिताएं: पतितपावनी गंगा

pavan sapt saritaen mein patitapaavanee ganga: poojan- snaan se milata hai bhakton ko akshay punyगंगा इस संसार की एक मात्र नदी है, जिसमें एक विशिष्ट वायरस पाया जाता है। इस वायरस का नाम वैक्टीरियोफेज़ है, जिसका गुण प्रत्येक गंदी वस्तु के अंदर प्रवेश कर जाना तथा उसे नष्ट कर अपनी संख्या बढ़ाना होता है। इस प्रकार जल की समस्त गंदगी साफ हो जाती है और इनकी संख्या बढ़ती जाती है और जल हमेशा शुद्ध बना रहता है। इसी के कारण वर्षों तक गंगाजल शुद्ध व स्वच्छ बना रहता है। यात्री इसमें साबुन लगा कर स्नान न करें, नहीं तो वायरस आपके शरीर की गंदगी को साफ नहीं कर पाएगा। कपड़े आदि साबुन लगाकर धोने से गंगाजल के वायरस पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

गंगोत्री समुद्र – स्तर से 10,020 फीट की ऊंचाई पर स्थित

यदि यात्री व भारतवासी इसकी ओर ध्यान नहीं देंगे तो गंगाजल अपवित्र होता जाएगा और एक दिन ऐसा आएगा कि गंगा नदी का जल साधारण नदियों के समान ही हो जाएगा। आपकी जिज्ञासा होगी कि जब वायरस समस्त गंदगी साफ कर देता है, तो इसको गंदा करने में क्या हर्ज है?, पर हर गंदगी साफ नहीं हो पाती है और गंदगी यदि वायरस से अधिक हो गई तो गंगाजल का यह महत्त्वपूर्ण गुण स्वत : ही कालांतर में लुप्त हो जाएगा। शासन तथा अन्य संस्थाएं इसी कारण इसको स्वच्छ बनाने हेतु अनेक प्रोजेक्ट भारत में चला रही हैं। भारतवासियों व यात्रियों से अनुरोध है कि गंगा में पूजा की या अन्य सामग्री न डालें। साबुन लगा कर स्नान न करें और न ही कपड़े धोएं। सभी भारतीयों का योगदान प्रार्थनीय व वंदनीय होगा। मान्यता है कि जो गंगा की धार में दूध चढ़ाएगा, वह मां से मनचाहा वर पाएगा। जो धूप दीप जलागर माता गंगा की ज्योत जलाते है। वे मुक्ति पाते हैं।

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गंगा पुण्यजलां प्राप्य त्रयोदश विवर्जयेत। शौचमाचनं सेकं निर्माल्यं मलघर्षणम्।।

गात्रसंवाहनं क्रीडां प्रतिग्रहमयोरतिम्। अन्यतीर्थरतिंचैवः अन्यतीर्थप्रशंसनम् ।।

वस्त्रत्यागमथाघातं सन्तारंच विशेषतः।।

ब्रह्मपुराण के इस श्लोक में, उन मानवीय कार्यों को सूचीबद्ध किया गया है, जो गंगा में निषिद्ध होना चाहिए। इन निषिद्ध कार्यों में शामिल हैं, मलमूत्र आदि का त्याग, मुखप्रक्षालन, पूजा के फूल प्रवाहित करना, शरीर की गंदगी और मैल धोना, जलक्रीड़ा, दानग्रहण, अन्य तीर्थ प्रशंसा, वस्त्र त्याग या कपडे धोना, गंदे शरीर के साथ गंगाजल में प्रवेश करना, झूठ बोलना और कुदृष्टि। ये सभी गंगा स्नान के समय वर्जनीय अर्थात मना हैं। हालांकि, इन वर्षों में इन क्रियाकलापों में काफी कमी आई है और उन चीजों को करना बंद कर दिया गया है जो नदी के लिए अत्यधिक हानिकारक थीं। गंगा जैसी नदी जो कई राज्यों से होकर गुजरती है, उसे साफ करना एक बहुत बड़ा कार्य है, लेकिन इससे भी बड़ा कार्य है उसकी “अविरलता” (प्रवाह) और “निर्मलता” (स्वच्छता) को बनाए रखना है। इसे साफ रखना कोई एक बार में पूर्ण किए जाने वाला कार्य नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है जिसे आने वाली पीढ़ियों को भी पूरी ज़िम्मेदारी से करना होगा।

माँ गंगा का भूलोक अवतरण की कथा 

सूर्यवंशी सम्राट भगीरथ के अथक प्रयासों से देवलोक की यह पावनधारा भारतभूमि पर लाई गई थी। उत्तरांचल में हिमालय के गंगोत्री नामक हिमनद में स्थित गोमुख में इसका उद्गम है। गंगा की श्रेष्ठता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि वर्षों तक रखे रहने पर भी गंगाजल दूषित नहीं होता है। गंगा के तट पर अनेक प्रसिद्ध नगर और तीर्थस्थल हैं। इनमें देवप्रयाग, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, प्रयागराज वाराणसी, बक्सर, पटना, भागलपुर, कोलकाता मुख्य हैं। पावन नदी गंगा को वेद और पुराणों में अनेक नामों से संबोधित किया गया है, यथा- देवसरिता, भागीरथी, जाह्नवी, त्रिपथगा आदि।

संगम स्थल क्या होता है 

उत्तर भारत की प्रमुख जलधारा गंगा में स्थान – स्थान पर कई सरिताएं मिलती हैं। इस मिलन – स्थल को संगम कहा जाता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना तथा सरस्वती का संगम है। त्रिवेणी नाम से सुप्रसिद्ध इस स्थान को परम पवित्र माना जाता है।  यहीं पर बारह वर्षों पर कुंभ का आयोजन होता है। हिंदू – परंपरा में त्रिवेणी संगम पर स्नान और ध्यान का विशेष महत्त्व हैं। यमुना के अलावा गंगा की अनेक सहायक नदियां हैं, जिनमें अलकनंदा, रामगंगा, टोंस, गोमती, घाघरा, सोन, गंडक, पुनपुन, किऊल, कोसी और महानंदा मुख्य हैं। शाखा के रूप में हुगली, प्रवाहपथ में मिलने वाली सरिताओं में अजय, दामोदर, द्वारकेश्वरी और रूपनारायण सरिताएं मुख्य हैं।

गंगातट व संगमस्थल पर कल्पवास से होते हैं प्रभु प्रसन्न

अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी में गंगासागर तक गंगा की जलधारा की कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है। गंगोत्री समुद्र – स्तर से 10,020 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां गंगा चालीस फीट चौड़ी और तीन फीट गहरी है। इसकी एक शाखा बिहार और पश्चिम बंगाल की सीमा से बाहर निकलकर बांग्लादेश में चली जाती है, जहां इसका नाम पद्मा हो गया है। अनेक सहायक नदियों का जल तथा भारी मात्रा में रेत और गाद लेकर गंगानदी सागर में मिलने के पहले कई शाखाओं और उपशाखाओं में बंट जाती है। ये शाखाएं बंगाल में ब्रह्मपुत्र के साथ मिलकर एक विशाल डेल्टा ( पंकिल वनाच्छादित इलाका ) बनाती हैं, जिसका नाम सुंदरवन है। दो विशाल नदियों की जलधाराओं द्वारा निर्मित यह सुंदरवन डेल्टा संसार का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है। गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक पावन गंगा के तटों पर अनेक महत्त्वपूर्ण तीर्थ हैं। धार्मिक ग्रंथों में गंगा दर्शन, पूजन और स्नान का बहुत महत्त्व बताया गया है। गंगातट तथा संगमस्थल पर श्रद्धालुओं द्वारा कल्पवास से प्रभु प्रसन्न होते हैं तथा भक्तों को अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।

पवित्र सप्त सरिताएं में पतितपावनी गंगा:

धातुः कमंडलुजलं तदुरुक्रमस्य पादावनेजन पवित्रतया नरेंद्र।

अर्थात् ‘ साक्षात् भगवान त्रिविक्रम विष्णु के तीन पगों ( पृथ्वी, स्वर्ग आदि ) को लांघते हुए वामपाद के अंगुष्ठ से निकलकर उनके चरणकमल को धोती हुई, भगवती गंगा जगत् | के पापों का नाश करती हुई, स्वर्ग से हिमालय के ब्रह्मसदन में अवतीर्ण हुई। ‘

अन्य दर्शनीय स्थल

  • गंगाजी का मंदिर : यह गंगोत्री का मुख्य मंदिर है। यहां शंकराचार्य ने गंगा की मूर्ति प्रतिष्ठित की। यहां भगीरथ, यमुना, सरस्वती एवं शंकराचार्य की मूर्ति भी प्रतिष्ठित है।
  • भगीरथ शिला : इस शिला पर भगीरथ ने तप किया। यहां गंगा मैया को तुलसी चढ़ाई जाती है। इस शिला पर पिंडदान भी किया जाता है।
  • मार्कंडेय क्षेत्र : मार्कंडेय ऋषि की तपस्थली है। शीतकाल में गंगोत्री के हिमाच्छादित होने पर चल मूर्ति यहां लाई जाती है और यहीं उनकी पूजा – अर्चना होती है।
  • गौरी कुंड : यहां कुंड में स्थित शिवलिंग पर बहुत ऊंचाई से गंगा गिरती हैं।`

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