जानिए, श्रीयंत्र यानी श्रीचक्र की महिमा, प्राण प्रतिष्ठा विधि, वैज्ञानिक भी हैरान

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जानिए, श्रीयंत्र यानी श्रीचक्र की महिमा क्या है, इसकी, प्राण प्रतिष्ठा विधि क्या है,जिसके प्रभाव को जानकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं । श्री का अर्थ है लक्ष्मी। अत: श्रीयंत्र को लक्ष्मी का यंत्र भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रीयंत्र को घर में पूजा गृह, तिजोरी में रखकर नित्य धूप, दीप आदि से इसकी पूजा करने से व्यक्ति को धन्य-धान्य की कमी नहीं रहती है, बल्कि निश्चित तौर पर धन-धान्य, सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। ब्रह्माडीय मूल उर्जा या शक्ति का यंत्र है श्री यंत्र अथवा श्री चक्र। इसकी अराधना से आदि शक्ति का साक्षात्कार होता है। श्री चक्र एक ऐसा यंत्र है, जिसका प्रयोग श्री विद्या की प्राप्ति में होता है। यह सभी यंत्रों का शिरोमणि यंत्र है। इसे यंत्र राज भी कहा जाता है। इसे श्री यंत्र, श्री चक्र, महामेरु व नव चक्र भी कहा जाता है। वास्तव में यह एक जटिल ज्यामितीय आकृति है। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर सुंदरी हैं। श्री यंत्र की स्थापना और पूजा से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

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विशेष तौर पर नवरात्रि व धनतेरस के दिन श्री यंत्र के पूजन से भगवती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। किसी न किसी रूप में श्री यंत्र ही एक ऐसा यंत्र है, जो सम्पूर्ण पृथ्वी पर सर्वत्र पाया जाता है। अभी हाल में अमेरिका के एक बड़े भूभाग पर एक आकृति उभर आयी थी, जिसे वैज्ञानिकों ने हवाईजहाज से देखा तो वह इसे समझ नहीं पाये कि आखिर एक दिन में ही यह यंत्र इतने बड़े भूभाग पर चित्रित कैसे हो गया? गूगल में इसका प्रमाण भी अब उपलब्ध है। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि ऊॅ के उच्चारण से जो तरंगीय आकृति उभरती है, वह श्री यंत्र की है। जैसे ऊॅँ मूल ध्वनि है, ठीक वैसे श्री यंत्र या श्री चक्र ब्रह्माड की मूल आकृति है। यह ब्रह्मांडीय उर्जा संरचना का संकेतक और आकृति है। वैदिक परम्परा में आदिकाल से इस पावन यंत्र का हमेशा से महत्व रहा है। साधकों में चक्र साधना, चक्र निर्माण ज्यामितीय यंत्रादि का प्रयोग श्री यंत्र या श्री चक्र से ही जुड़ा है।

यह सनातन सत्य है, जिसे विज्ञान भी नकार नहीं पा रहा है। इस श्री यंत्र में सभी देवताओं का स्थान निश्चित है। श्री यंत्र के केंद्र में एक बिंदु है। इस बिंदु के चारों ओर नौ अंतग्रंथिय त्रिभुज है, जो कि नवशक्ति का प्रतीक है। इन नौ त्रिभुजों के अंत:ग्रंथिय होने से 43 त्रिभुज बनते हैं। इस यंत्र में अदृष्य रूप से 2816 देवता विद्यमान हैं। श्री यंत्र तीनों लोकों का प्रतीक है, इसलिए इसे त्रिपुर चक्र भी कहा जाता है। श्री यंत्र का स्वरूप अत्यन्त मनोहर है। उसका विन्यास भी अत्यन्त ही विचित्र और अलौकिक है। इसके बिल्कुल मध्य में एक बिंदु है। सबसे बाहर भूपुर है। भूपुर के चारों ओर चार द्बार हैं। बिन्दु से भूपुर तक दस अवयव हैं, यह दस अवयव है- बिंदु, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, बहिदारशर, अष्टदल, षोडसदल, तीन वृत्त, तीन भूपुर।

आदि शंकराचार्य भी श्री यंत्र की अराधना करते थे। उनके द्बारा स्थापित सभी पीठों की अधिष्ठात्री त्रिपुर सुंदरी हैं। श्री यंत्र उनकी अराधना व साधना का मुख्य यंत्र है। श्री यंत्र की आराध्या देवी त्रिपुर सुंदरी मानी गई हैं। इन्हें विद्या, ललिता, षोडशी, त्रिपुर सुंदरी, बाला त्रिपुर सुंदरी आदि नामों से भी जाना जाता है। पौष मास की संक्रांति के दिन और विशेषकर रविवार को बना हुआ श्री यंत्र अत्यन्त दुर्लभ और सबसे अधिक फल प्रदायक होता है। परन्तु यदि आप इस काल में यंत्र का निर्माण नहीं कर पाये हैं तो किसी भी मास के संक्रांति के दिन या शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन इस पावन यंत्र का निर्माण कर सकते हैं। यह तांबे, चांदी या सोने की प्लेट में बना होना चाहिए। मान्यता है कि सोने का श्री यंत्र हमेशा प्रभावशाली रहता है, जबकि चांदी का श्री यंत्र ग्यारह वर्ष तक असरकारक होता है और ताम्बे का श्री यंत्र दो वर्ष तक असरकारक होता है। श्रीयंत्र यानी श्रीचक्र की महिमा क्या है, इसकी, प्राण प्रतिष्ठा विधि क्या है,जिसके प्रभाव को जानकर अब वैज्ञानिक भी हैरान हैं ।

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श्री यंत्र मूलत: श्री विद्या त्रिपुर सुंदरी का यंत्र है, तदापि श्रीयंत्र की पूजा के लिए लक्ष्मी जी के बीज मंत्र का प्रयोग भी हो सकता है, इससे निश्चित रूप से अद्भुत लाभ प्राप्त होता है। यदि कल्याण चाहते हैं तो इसमें कतई संदेह नहीं होना चाहिए।

बीज मंत्र है-
ऊॅँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊॅँ महालक्ष्मै नम:।।
या
ऊॅँ श्रीं ह्रीं श्रीं नम:।

अधिकांश लोग श्रीयंत्र को सिर्फ लक्ष्मी या कमला का ही यंत्र समझते हैं, उन्हें फल भी प्राप्त होता है, क्योंकि कमला जो लक्ष्मी रूप हैं, श्री कुल की महाविद्या हैं। इनकी पूजा श्री यंत्र में होती भी है और की भी जा सकती है। यह कथन भी कहा गया है कि महात्रिपुर सुंदरी ने अपनी श्री उपाधि लक्ष्मी जी को प्रदान की थी। तब से लक्ष्मी श्री लक्ष्मी कहलाई जाने लगीं। यह स्वयं सिद्ध है कि लक्ष्मी, त्रिपुरा, कमला, श्री विद्या की अराधना इस चक्र में हो सकती है। देखा जाए तो सभी महाविद्याओं की अराधना इस चक्र में हो सकती है। स्फटिक के श्री यंत्र को शंख से श्री सुक्त पढ़ते हुए पंचामृत अभिषेक करने से अतुल वैभव की प्राप्ति होती है।

श्रीयंत्र की साधना, अराधना और अर्चन विधि अति गूढ़ और कठिन है, इसलिए बिना गुरु के मार्गदर्शन के इसे न करना ही श्रेयस्कर होता है। गुरु से दीक्षा लेकर ही इसे करना चाहिए। लेकिन सामान्य रूप से भी पूजित श्रीयंत्र भी अत्यन्त प्रभावशाली होता है, इस पर संशय नहीं करना चाहिए। श्री विद्या के मूल षोडशी मंत्र की साधना और श्री चक्र की साधना, अर्चन गुरु परम्परा के अनुसार और गुरु दीक्षा से ही होता है। कहा जाता है कि षोडशी मंत्र बिना किसी योग्य गुरु की दीक्षा के नहीं करना चाहिए। लेकिन केवल श्रीयंत्र की पूजा और श्री सूक्त का पाठ, श्री यंत्र अभिष्ोक, कमला मंत्र जप, लक्ष्मी मंत्र जप इस पर हो सकते हैं और यह अत्यन्त लाभकारी होते हैं। इसका किसी भी रूप में उपयोग कल्याणकारी होता है।

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श्री यंत्र की पूजा से पूर्व कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखना अति आवश्यक है, आइये हम आपको उन बातों से अवगत कराते हैं। इनकी पूजा में पवित्रता का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है। पूजन में स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इस यंत्र की पूजा करने वाला ब्रह्मचर्य का पालन करे। स्वयं सुगंन्धित तेल व इत्र आदि का प्रयोग न करे।

 

प्राण प्रतिष्ठा विधि-

दीवाली, होली, रविपुष्य योग अथवा किसी अन्य शुभ योग के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर कुशासन या कम्बलासन पर बैठक शुद्ध सात्विक और श्रद्धायुक्त मन से लक्ष्मी का ध्यान करें।
सर्व प्रथम कच्चे दूध में गंगाजल मिलाकर किसी बर्तन में रखकर श्री यंत्र को उसमें स्नान करायें। तत्पश्चात इसे किसी साफ कपड़े से पोंछ कर स्वच्छ लाल वस्त्र मंडित चौकी पर स्थापित करें। फिर धूप, दीप, लाल पुष्प, चावल, नैवेद्य आदि से इसकी पूजा करें। इसके बाद कमलासन में बैठकर शुद्ध मन लक्ष्मी जी का ध्यान करके लक्ष्मी मंत्र का 1००8 बार जप करना चाहिए। लक्ष्मी का मंत्र जप करने के लिए रुद्राक्ष, लाल चंदन, कमल गट्टा या हल्दी की माला का प्रयोग श्रेष्ठ है। लक्ष्मी का मंत्र निम्न उल्लेखित कर रहे है।

मंत्र है-
ऊॅँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊॅँ महालक्ष्मै नम:।

उपयुक्त मंत्र का जप करने के बाद श्री यंत्र पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। इसके पश्चात इसे गल्ले या तिजोरी आदि में रख दें। श्री यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा के पश्चात नित्य धूप, दीप, पुष्प आदि से इसकी पूजा करनी चाहिए। यह पूजा नियमित रूप से होनी अनिवार्य है। वैसे श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा, साधना, उपासना व पूजन में किसी योग्य व सिद्ध ब्राह्मण का सहयोग लेना श्रेयस्कर होता है। हमारी ओर से अपने साधकों को यह सलाह देना उचित प्रतीत हो रहा है।

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