नासिक – पंचवटी : जनस्थान / भ्रामरी भद्रकाली शक्तिपीठ भी

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नासिक - पंचवटी (पंच तीर्थ में ): जनस्थान / भ्रामरी भद्रकाली शक्तिपीठ भी

naasik-panchavatee-panch-teerth-mein-janasthaan-bhraamaree-bhadrakaalee-shaktipeeth-bheeनासिक – पंचवटी (पंच तीर्थ में ): हिन्दुओं के पांच प्रसिद्ध तीर्थों में प्रयाग, गया, पुष्कर और नैमिषारण्य के साथ नासिक की भी गणना होती है। यहां से गोदावरी दक्षिण दिशा की ओर बहती है। उसे आगे और भी पवित्र माना जाता है। नासिक के पास सात और छोटी नदियां गोदावरी में मिलती हैं। ब्रह्मा और अस्थिविलय तीर्थ भी यहीं हैं।

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राम, लक्ष्मण और सीता ने अपने वनवास के कई वर्ष नासिक के निकट ही व्यतीत किए थे।पंचवटी में अरुणा नदी के किनारे इंद्रकुंड है। ऐसी मान्यता है कि महर्षि गौतम के शाप से इंद्र के शरीर में छिद्र हो गए थे। यहां स्नान करने से वे छिद्र दूर हो गए। इस कुंड के बाद मुक्तेश्वर का अंतिम कुंड है, जहां मेधातिथि तीर्थ तथा कोटितीर्थ हैं। नासिक और पंचवटी वस्तुत: एक ही नगर हैं। इस नगर के बीच से गोदावरी बहती है। गोदावरी के दक्षिणी तट पर स्थित नगर के मुख्य भाग को नासिक कहा जाता है और गोदावरी के उत्तरी तट पर जो भाग है वह पंचवटी कहलाता है। गोदावरी के दोनों तटों पर मंदिर हैं। तीर्थयात्री प्राय: पंचवटी में ठहरते हैं क्योंकि वहां से तपोवन तथा अन्य तीर्थों का दर्शन करने में सुविधा होती है।

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कुम्भ भी लगता है

प्राचीन काल में नासिक का नाम ‘ नासिक्य ‘ लिखा है। पाणिनि के ‘ पतंजलिभाष्य ‘ में इस शब्द की उत्पत्ति नासिका ( नाक ) से बताई गई है। इस संबंध में एक कथा प्रसिद्ध है कि इस जगह का नाम ऐसा इसलिए पड़ा, क्योंकि इसी जगह रावण की बहन शूर्पणखा की नासिका ( नाक ) और कान लक्ष्मणजी ने इसलिए काट लिए थे कि उसने राम या लक्ष्मण से विवाह करने का अनुचित प्रस्ताव किया था। नासिक में लगभग साठ मंदिर हैं। यह स्थान इस प्रदेश की काशी के नाम से विख्यात है। इसके अनेक कारण हैं – गोदावरी की पवित्र धारा, नासिक और पंचवटी का राम, सीता और लक्ष्मण से संबंध; त्र्यंबकेश्वर के ज्योतिर्लिंग से इसकी निकटता। गोदावरी को दक्षिण की गंगा भी कहते हैं। नासिक में कुंभ मेला भी लगता है।

नासिक – पंचवटी के प्रमुख मंदिर 

  • सुंदर नारायण मंदिर : सुंदरनारायण का मंदिर आदितवार में स्थित है। इसका मुख्यद्वार पूर्व की तरफ नैमिषारण्य से हैं। मंदिर में काले पत्थर की तीन प्रतिमाएं हैं। एक तो नारायण की है, जो तीन फुट ऊंची है और बीच में स्थित है। उससे छोटी प्रतिमाएं लक्ष्मी की हैं, जो दोनों ही ओर स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण इस ढंग से हुआ है कि 20 या 21 मार्च को सूर्योदय की किरणें नारायण के चरणों पर पड़ती हैं।
  • गोदावरी घाट : नदी के किनारे पक्के बरान्डे हैं, जो गोदावरी तट से सीढ़ियों द्वारा जुड़े हैं। यात्री स्नान करके यहीं पर पूजा – अर्चना करते हैं।
  • पवित्र कुंड : गोदावरी नदी व बरान्डों के मध्य में छोटे – छोटे अनेक कुंड हैं, जिनके नाम क्रमश : सीता कुंड, राम कुंड, लक्ष्मण कुंड, धनुकुंड तथा हनुमान कुंड हैं। यात्री इन्हीं कुडो में स्नान करके पुण्य प्राप्त करते हैं। हनुमान कुंड के सामने दो मुख वाले हनुमानजी की प्रतिमा स्थित है।
  • प्राचीन मंदिर : नदी के दोनों तटों पर अनेक प्राचीन मंदिर स्थित हैं। राम कुंड के ऊपर गंगाजी का मंदिर है और पास में गोदावरी मंदिर है, जो बारह वर्ष में केवल एक बार ही खुलता है और वह समय कुम्भ का होता है।
  • शिव मंदिर : राम कुंड से कुछ सीढ़ियां ऊपर कम्पालेश्वर महादेव का मंदिर है और ऐसी मान्यता है कि शंकरजी के हाथ में चिपका ब्रह्माजी का सिर गोदावरी स्नान से ही पृथक् हुआ था।
  • पंचवटी : राम मंदिर से कुछ दूर पांच वटवृक्ष का प्रांगण है जिसमें मंदिर न होकर कुछ पुराने मकान हैं जिसमें निम्नलिखित स्थान हैं एक मकान में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां दीवार के ताक में स्थित हैं। इसे राममंदिर कहा जाता है। दूसरे मकान में घुसने पर कई तल्ला नीचे तहखाने तक जाना पड़ता है, वहां पर छोटी गुफा है जिसमें राम, लक्ष्मण और सीता की छोटी मूर्तियां स्थापित हैं। इसे सीता गुफा कहा जाता है। पंचवटी में राम ने अपने वनवास के कुछ वर्ष सुख पूर्वक बिताए। इस क्षेत्र का महत्त्व इसी कारण बहुत अधिक है कि यहां राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया था। इस क्षेत्र के विशाल भाग को दंडकारण्य कहते हैं। पंचवटी ‘ का वनक्षेत्र इसी के अंतर्गत है।
  • काला राम या श्रीरामजी मंदिर : यह पश्चिम भारत के सुंदरतम मंदिरों में गिना जाता है। इसमें एक की काले पत्थर की मूर्तियां हैं।
  • नरुशंकर का मंदिर : जिसे रामेश्वर मंदिर भी कहते हैं, गोदावरी के बाएं किनारे पर है और यह स्थापत्यकला का सुंदर नमूना है।
  • जनस्थान / भ्रामरी भद्रकाली : शक्तिपीठ का मंदिर यहां पर शिखर युक्त नहीं है। केवल भद्रकाली की मूर्ति नवदुर्गाओं के मध्य है। भैरव विकृताक्ष हैं।

दूरस्थ स्थित दर्शनीय स्थल

  • त्र्यंबकेश्वर मंदिर : पंचवटी से लगभग 30 किलोमीटर दूर यह मंदिर है, जो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित है। गोदावरी नदी का उद्गम इसी के पास से हुआ है। अधिक विवरण द्वादश ज्योतिर्लिंगों में दिया गया है।
  • शनि सिंगनापुर स्थान : शनि देव का प्रसिद्ध जागृत मंदिर है, नासिक से 90 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका विवरण भी पृथक् दिया गया है।

यात्रा मार्ग

नासिक रोड स्टेशन मुंबई – दिल्ली मेन लाइन पर स्थित है। यहां से मुंबई 188 किलोमीटर की दूरी पर है। दिल्ली से नासिक 1354 किलोमीटर के अंतर पर है।

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