पुण्यभूमि अग्रोहा : अग्रवाल बंधुओं का प्रमुख  पुण्य तीर्थस्थल

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punyabhoomi agroha : agravaal bandhuon ka pramukh puny teerthasthalअग्रोहा अग्रवाल बंधुओं का प्रमुख  पुण्य तीर्थस्थल है। भारत के हरियाणा प्रदेश में एक जनपद है, हिसार। इसके उत्तर – पश्चिम में लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर, दिल्ली – सिरसा रोड पर एक रमणीय ग्राम स्थित है – अग्रोहा। नि : संदेह किसी समय यह बड़ा ही समृद्धिशाली नगर था। यहां की रजकण को प्रत्येक अग्रवाल अपने मस्तक पर धारण करते है। यही वह स्थल है, जहां से हजारों वर्ष पूर्व अग्रवालों के पूर्वज निकलकर भारतवर्ष के अन्य भागों में फैले और व्यवस्थित हुए हैं। वैश्य अग्रवाल जाति के संस्थापक राजा अग्रसेन ने इस नगर की नींव रखी थी। यह बात लगभग दो हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी है। इस गांव के निकट ही एक पुराना खेड़ा है। वहां आज भी नष्ट हुए विशालनगर के भग्नावशेष पड़े हुए हैं। खेड़ा के ऊपर एक किला बना हुआ है। उस किले को देखते ही नानूमल दीवान की स्मृति सजीव हो उठती है, जिन्होंने इस किले का निर्माण करवाया था। एक किंवदंती के अनुसार अग्रोहा में धुंगनाथ नामक संन्यासी ने अपने शिष्य कीर्तिनाथ के साथ आकर समाधि लगा ली। उनका शिष्य कीर्तिनाथ वहीं धूनी लगाता रहा तथा भिक्षा मांगकर निर्वाह करता रहा। कुछ दिनों के बाद कीर्तिनाथ को घरों से भिक्षा मिलनी बंद हो गई, अतः वह जंगल से लकड़ियां लाता, धूनी जलाता और भूखा ही सो जाता। एक कुम्हारिन को उस पर दया आ गई। उसने कीर्तिनाथ को भरपेट भोजन कराया और लकड़ी काटने के लिए एक कुल्हाड़ी दी। अब कीर्तिनाथ लकड़ी काटकर और उसे बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। इस प्रकार छह मास का समय बीत गया। एक दिन बाबा धंगनाथ ने आंखें खोली और कीर्तिनाथ से समाचार पूछा। कीर्तिनाथ ने बताया कि यहां के लोग साधु – संन्यासियों से अच्छा व्यवहार नहीं करते। यहां तक कि कोई भिक्षा नहीं देता, बल्कि ये लोग धमकाते हैं। यह सुनकर बाबा को बहुत क्रोध आया और उन्होंने शाप दे दिया कि यह नगर चौबीस घंटे में जलकर राख हो जाएगा और बाबा अपने शिष्य कीर्तिनाथ को साथ लेकर किसी दूसरे स्थान की ओर चल दिए। चलते समय कीर्तिनाथ ने बाबा से बताया कि यहां एक कुम्हारिन है, जिसने मेरी मदद की थी। बावा ने आदेश दिया कि उसे सूचित कर दो। बाबा से आदेश लेकर कीर्तिनाथ कुम्हारिन के पास गया और उससे बोला कि हमारे गुरु ने इस नगर को शाप दिया है कि यह नगर चौबीस घंटे के अंदर जलकर नष्ट हो जाएगा। तुम सपरिवार यहां से तुरंत निकल जाओ। यह कहकर कीर्तिनाथ बाबा के पास वापस लौट आया। कीर्तिनाथ की बात पर विश्वास करके कुम्हारिन का परिवार नगर छोड़कर निकल पड़ा। लोगों ने पूछा, तो कुम्हारिन ने सारा वृत्तांत लोगों को कह सुनाया। जंगल की आग की तरह सारे नगर में यह खबर फैल गई, लेकिन किसी को विश्वास नहीं हुआ। बल्कि लोगों ने इस बात का मजाक उड़ाया। अचानक भयंकर आंधी चलनी शुरू हो गई। देखते- ही – देखते बाबा की धूनी की राख से अंगारे बन – बनकर उड़ने लगे और चौबीस घंटे के अंदर ही नगर आग की लपटों की चपेट में आ गया। अग्रोहा जलकर भस्म हो गया। ऐसी एक नहीं, बल्कि अनेक किंवदंतियां अग्रोहा की धार्मिक पृष्ठभूमि के साथ जुड़ी हुई हैं, तभी से अग्रोहा तीर्थस्थल बन गया। वैभवशाली खंडहरों के पास आज भी एक फाख्तानुमा ग्राम है – अग्रोहा। यहां की आबादी लगभग दो हजार है।

अवघड़दानी भोले बाबा का एक सुंदर मंदिर

अग्रोहा में एक धर्मशाला के अंदर अवघड़दानी भोले बाबा का एक सुंदर – सा मंदिर बना हुआ है। यहां दूर दूर से भक्त आकर ‘ बम – बम भोले! दानी हो बड़े तुम शिवशंकर ! ‘ का समवेत पाठ तो करते ही हैं, साथ ही ‘ ओऽम् नमः शिवाय ‘ मूल मंत्र का जप भी करते हैं, ताकि शिव प्रसन्न हों। इस शिवमंदिर के एक भाग में महाराजा अग्रसेन की एक सुंदर – सी संगमरमर की प्रतिमा भी स्थापित है। शिवमंदिर के अतिरिक्त शीला की समाधि, रिसालू टिब्बा, लक्खी तालाब एवं अन्य सतियों के मंदिर दर्शनीय हैं। अब एक बहुत ही सुंदर माता वैष्णोदेवी की गुफा बनाई गई है, जो बेहद दर्शनीय है। इन सभी दर्शनीय स्थलों की अपनी अलग – अलग कहानी है, जिसके कारण इन सबका निर्माण हो सका और अग्रोहा एक तीर्थस्थल बन गया।

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