bhuvaneshvar : mandiron kee paavan nagaree, . jagannaath dhaam- konaark – yoginee- baitaal lingraj mandir bhee yahaan भुवनेश्वर मंदिरों का नगर कहलाता है, यह उड़ीसा राज्य की राजधानी है। यहाँ का लिंगराज मंदिर के लिए जगत् में प्रसिद्ध है। धार्मिक कथा है कि देवी पार्वती ने यहां लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिवजी ने एक कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं बिंदुसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मंदिर है। सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर पूर्वोत्तर भारत में शैव संप्रदाय का मुख्य केंद्र रहा है। कहते हैं कि मध्य युग में यहां सात हजार से भी अधिक मंदिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब करीब पांच सौ शेष बचे हैं।
यहां की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिंदुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं। गणेश – पूजा के बाद गोपालनी देवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य पूजा – स्थान में प्रवेश किया जाता है। जहां आठ फीट मोटा तथा करीव एक फीट ऊंचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू लिंग स्थित है। भुवनेश्वर में लिंगराज का विशाल मंदिर अपनी अनुपम स्थापत्यकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर में प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार है। गर्भगृह के अलावा जगमोहन तथा भोगमंडप में सुंदर सिंहमूर्तियों के साथ देवी – देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएं हैं। लिंगराजमंदिर समूह में बिंदुसरोवर तथा अनंत वासुदेव पूजास्थल हैं, जिनका निर्माण – काल नवीं से दसवीं सदी का रहा है।
भुवनेश्वर में प्राचीन व नवीन दर्शनीय स्थल…………….
1. जगन्नाथ धाम: दर्शनीय और महत्त्वपूर्ण स्थान यहां से केवल 62 किलोमीटर दूर स्थित है। जगन्नाथ का आशय है ब्रह्मांड का भगवान। जगन्नाथपुरी मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की पूजा की जाती है। देवताओं की यह मूर्तियां लकड़ी से बनी हैं। हर बारह साल के बाद इन लकड़ी की मूर्तियों को पवित्र पेड़ों की लकड़ी के साथ समारोहपूर्वक बदला जाता है। पूर्वी भारत के उड़ीसा राज्य में बंगाल की खाड़ी के किनारे बसी महान् तीर्थस्थली जगन्नाथपुरी किसी समय प्राचीन कलिंग की राजधानी रह चुकी है। धर्मशास्त्रों में इसे श्रीजगन्नाथपुरी के अलावा शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र और पुरुषोत्तमक्षेत्र भी कहा गया है। भारत के चार धामों में यह भी एक धाम है।
2. कोणार्क मंदिर : दर्शनीय और महत्त्वपूर्ण स्थान यहां से केवल 62 किलोमीटर दूर स्थित हैं। जगन्नाथपुरी से 33 किलोमीटर उत्तर पूर्व समुद्रतट पर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित एक सूर्यमंदिर है। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़ी विशाल पहिए लगे हैं और उसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। यह विशाल मंदिर मूलतः चौकोर दीवार से घिरा था। मंदिर का मुख पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है और इसके तीन प्रधान अंग – देउल ( गर्भगृह ), जगमोहन ( मंडप ) और नाट्यमंडप एक ही अक्ष पर हैं। सबसे पहले नाट्यमंडप में प्रवेश किया जाता है। यह नाना अलंकरणों और मूर्तियों से विभूषित ऊंची जगती पर है। चारों दिशाओं में स्तंभ हैं। पूर्व दिशा में सोपानमार्ग के दोनों ओर गजशार्दूलों की भयावह और शक्तिशाली मूर्तियां बनी हैं। नाट्यमंडप का शिखर नष्ट हो गया है। कोणार्क में नाट्यमंडप के समानाक्ष होकर भी भोगमंदिर पृथक् है। यह दक्षिण पूर्व में है। नाट्यमंडप से उतरकर जगमोहन में आते हैं। पहले यहां एक एकाश्म अरुणस्तंभ था, जो अब जगन्नाथपुरी के मंदिर के सामने लगा है। जगमोहन और देउल एक ही जगती पर खड़े हैं। नीचे गजघर बना है, जिसमें विभिन्न मुद्राओं में हाथियों के दृश्य अंकित हैं। गजघर के ऊपर जगती अनेक मूर्तियों से अलंकृत है।
3. ब्रह्मेश्वर मंदिर
4. भास्करेश्वर मंदिर
5. मुक्तेश्वर मंदिर
6. केदारेश्वर मंदिर
7. सिद्धेश्वर मंदिर
8. परशुरामेश्वर मंदिर।
9. बैताल मंदिर : चामुंडा देवी और महिषासुरमर्दिनी देवी दुर्गा की प्राचीन प्रतिमाओं वाले इस मंदिर में तंत्र साधना करके अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की जाती हैं। इसके साथ ही सूर्य उपासना स्थल हैं, जहां सूर्य – रथ के साथ उषा अरुण और संध्या की प्रतिमाएं हैं।
10. योगिनी मंदिर : नगर से 15 किलोमीटर दूर एक प्राचीन गोलाकार मंदिर है, जिसमें 64 के स्थान पर मात्र 60 योगिनियों की मूर्ति स्थापित है। इसका व्यास 30 फीट है। भारत के चार योगिनियों के मंदिरों में से यह एक है।
11. इस्कान मंदिर : यह भव्य मंदिर भी नगर में ही स्थित है।
12. धौलागिरि : सफेद संगमरमर से बना विशाल मंदिर है, जो बौद्ध कला को प्रदर्शित करता है।
यात्रा मार्ग
उड़ीसा प्रदेश की राजधानी होने के कारण भुवनेश्वर हेतु आवागमन की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
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